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डॉलर की मजबूती

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सीतारमण ने कहा कि 24 द्विपक्षीय बैठकें हुईं है. इसके अलावा सचिवों और मुख्य आर्थिक सलाहकार ने अपने समकक्षों के साथ 25 बैठकें कीं हैं. उन्होंने आगे कहा कि हमने कई जी20 सदस्यों के साथ द्विपक्षीय चर्चा की है, हम ऐसे समय में अध्यक्षता कर रहे हैं जब बहुत सारी चुनौतियां हैं, हमें अन्य सदस्यों के साथ मिलकर काम करना होगा. इससे हम सर्वोत्तम तरीके से नेविगेट कर सकते हैं.

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Rupee VS Dollar : मजबूत डॉलर से क्‍या पूरी दुनिया में मंदी लाएगा अमेरिका? क्‍यों पैदा हो रहा ये डर

डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा अभी 82 रुपये के आसपास है.

डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा अभी 82 रुपये के आसपास है.

भारतीय मुद्रा सहित दुनियाभर की करेंसी इस समय डॉलर के सामने पानी भर रही है. इसका कारण ये नहीं कि किसी देश की मुद्रा कमजो . अधिक पढ़ें

  • News18Hindi
  • Last Updated : October 19, 2022, 07:40 IST
अमेरिका को डॉलर के अंतरराष्ट्रीय करेंसी होने से जबरदस्त फायदे होते हैं.
अमेरिका अपने इंपोर्ट के गैप को कम करने के लिए इसका इस्तेमाल करता है.
दुनियाभर में होने वाला 40 फीसदी व्‍यापारिक लेनदेन डॉलर में ही किया जाता है.

नई दिल्‍ली. डॉलर के मुकाबले कमजोर होते रुपये का संकट भारत के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर उभरा है. दुनियाभर के बाजारों में मंदी के बावजूद भारतीय बाजार किसी तरह अपने पैरों पर खड़ा होता नजर आ रहा है, लेकिन कमजोर करेंसी बाजारों को भूत की तरह डरा रही है. अब सवाल उठता है कि क्या अमेरिका जानबूझकर डॉलर को मजबूत कर रहा है या फिर अमेरिका को अपनी मंदी से ज्यादा डॉलर के कमजोर होने का डर है.

'डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत'

Dollar Vs Rupee : अंतर-बैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में डॉलर के मुकाबले रुपया 81.18 के भाव पर मजबूती के साथ खुला और थोड़ी ही देर में यह 81.14 के स्तर तक भी पहुंच गया.

दुनिया की प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले डॉलर के कमजोर पड़ने और घरेलू शेयर बाजार में जारी तेजी को बदौलत आज अंतरबैंकिंग मुद्रा बाजार में रुपया 43 पैसे मजबूत होकर 81.92 रुपये प्रति डॉलर पर पहुंच गया.

मजबूत डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हो गया है. डॉलर एक सप्ताह में उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है. अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने संकेत दिया है कि ब्याज दरें वर्तमान में बाजार की अपेक्षा से अधिक हो सकती हैं. ब्लूमबर्ग ने बुधवार को 82.7850 के करीब की तुलना में 82.8175 पर खुलने के बाद रुपये को आखिरी बार 82.9150 प्रति डॉलर पर रखा.

डॉलर में मजबूती से रुपया कमजोर, अर्थव्यवस्था को दोष नहीं दे सकते: डॉलर की मजबूती गोयल

डॉलर में मजबूती से रुपया कमजोर, अर्थव्यवस्था को दोष नहीं दे सकते: गोयल वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने गुरुवार को कहा कि रुपये की कमजोरी के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था को दोष नहीं दिया जाना चाहिए, क्योंकि यह मुख्य रूप से डॉलर के मजबूत होने के कारण है। टाइम्स नाउ शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए, मंत्री ने, बढ़ती मुद्रास्फीति के बावजूद, एक आशावादी टिप्पणी की, यह देखते हुए कि कई देशों में आसमान छूती मुद्रास्फीति की तुलना में, जहां यह 8 से 10 प्रतिशत के बीच है, भारत ने मुद्रास्फीति और ब्याज के बीच एक उचित संतुलन बनाए रखा है। देश में दरें और मूल्य वृद्धि दूसरों की डॉलर की मजबूती तुलना में बहुत कम है।

गोयल ने यह भी कहा कि भले ही वैश्विक विपरीत परिस्थितियों और कई देशों में मंदी के संकेतों के कारण मौजूदा भू-राजनीतिक स्थिति अस्थिर डॉलर की मजबूती बनी हुई है, भारत तेजी से सुधार के रास्ते पर है और इसकी विकास दर 7 प्रतिशत है, जो एक सकारात्मक संकेत है।

‘मैं इसे रुपए में गिरावट नहीं बल्कि डॉलर की मजबूती के रूप में देखती हूं’- निर्मला सीतारमण

वित्त मंत्री निर्मला डॉलर की मजबूती सीतारमण | फोटो: दिप्रिंट

नई दिल्ली: केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने रुपए के प्रदर्शन पर टिप्पणी करते हुए कहा कि वह इसे रुपए में गिरावट के रूप डॉलर की मजबूती में नहीं बल्कि डॉलर के मजबूत होने के रूप में देखती हैं.

सीतारमण ने अमेरिका की आधिकारिक यात्रा के दौरान एक सवाल के जवाब में कहा, ‘रुपया कमजोर नहीं हो रहा, हमें इसे ऐसे देखना चाहिए कि डॉलर मजबूत हो रहा डॉलर की मजबूती है लेकिन दूसरी मार्केट करेंसी देखें तो रुपया डॉलर की तुलना में काफी अच्छा कर रहा है.’

शनिवार को सीतारमण ने कहा कि भू-राजनीतिक तनाव बढ़ने के बीच भारतीय रुपए ने कई अन्य उभरती बाजार मुद्राओं की तुलना में डॉलर के मुकाबले काफी बेहतर प्रदर्शन किया है.

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उदाहरण के तौर पर नेपाल ने भारत के साथ फिक्सड पेग एक्सचेंज रेट अपनाया है. इसलिए एक भारतीय रुपये की कीमत नेपाल में 1.6 नेपाली रुपये होती है. नेपाल के अलावा मिडिल ईस्ट के कई देशों ने भी फिक्स्ड एक्सचेंज रेट अपनाया है.

डॉलर दुनिया की सबसे बड़ी करेंसी है. दुनियाभर में सबसे ज्यादा कारोबार डॉलर में ही होता है. हम जो सामान विदेश से मंगवाते हैं उसके बदले हमें डॉलर देना पड़ता है और जब हम बेचते हैं तो हमें डॉलर मिलता है. अभी जो हालात हैं उसमें हम इम्पोर्ट ज्यादा कर रहे हैं और एक्सपोर्ट कम कर रहे हैं. जिसकी वजह से हम ज्यादा डॉलर दूसरे देशों को दे रहे हैं और हमें कम डॉलर मिल रहा है. आसान भाषा में कहें तो दुनिया को हम सामान कम बेच रहे हैं और खरीद ज्यादा रहे हैं.

फॉरेन एक्सचेंज मार्केट क्या होता है?

आसान भाषा में कहें तो फॉरेन एक्सचेंज एक अंतरराष्ट्रीय बाजार है जहां दुनियाभर की मुद्राएं खरीदी और बेची जाती हैं. यह बाजार डिसेंट्रलाइज्ड होता है. यहां एक निश्चित रेट पर एक करेंसी के बदले दूसरी करेंसी खरीदी या बेची जाती है. दोनों करेंसी जिस भाव पर खरीदी-बेची जाती है उसे ही एक्सचेंज रेट कहते हैं. यह डॉलर की मजबूती एक्सचेंज रेट मांग और आपूर्ति के सिंद्धांत के हिसाब से घटता-बढ़ता रहा है.

करेंसी का डिप्रीशीएशन तब होता है जब फ्लोटिंग एक्सचेंज रेट पर करेंसी की कीमत घटती है. करेंसी का डिवैल्यूऐशन तब होता है जब कोई देश जान बूझकर अपने देश की करेंसी की कीमत को घटाता है. जिसे मुद्रा का अवमूल्यन भी कहा डॉलर की मजबूती जाता है. उदाहरण के तौर पर चीन ने अपनी मुद्रा का अवमूल्यन किया. साल 2015 में People’s Bank of China (PBOC) ने अपनी मुद्रा चीनी युआन रेनमिंबी (CNY) की कीमत घटाई.<

मुद्रा का अवमूल्यन क्यों किया जाता है?

करेंसी की कीमत घटाने से आप विदेश में ज्यादा सामान बेच पाते हैं. यानी आपका एक्सपोर्ट बढ़ता है. जब एक्सपोर्ट बढ़ेगा तो विदेशी मुद्रा ज्यादा आएगी. आसान भाषा में समझ सकते हैं कि एक किलो चीनी का दाम अगर 40 रुपये हैं तो पहले एक डॉलर में 75 रुपये थे तो अब 80 रुपये हैं. यानी अब आप एक डॉलर में पूरे दो किलो चीनी खरीद सकते हैं. यानी रुपये की कीमत गिरने से विदेशियों को भारत में बना सामान सस्ता पड़ेगा जिससे एक्सपोर्ट बढ़ेगा और देश में विदेशी मुद्रा भंडार भी बढ़ेगा.

डॉलर की कीमत सिर्फ रुपये के मुकाबले ही नहीं बढ़ रही है. डॉलर की कीमत दुनियाभर की सभी करेंसी के मुकाबले बढ़ी है. अगर आप दुनिया के टॉप अर्थव्यवस्था वाले देशों से तुलना करेंगे तो देखेंगे कि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत उतनी नहीं गिरी है जितनी डॉलर की मजबूती बाकी देशों की गिरी है.

यूरो डॉलर के मुकाबले पिछले 20 साल के न्यूनतम स्तर पर है. कुछ दिनों पहले एक यूरो की कीमत लगभग एक डॉलर हो गई थी. जो कि 2009 के आसपास 1.5 डॉलर थी. साल 2022 के पहले 6 महीने में ही यूरो की कीमत डॉलर के मुकाबले 11 फीसदी, येन की कीमत 19 फीसदी और पाउंड की कीमत 13 फीसदी गिरी है. इसी समय के भारतीय रुपये में करीब 6 फीसदी की गिरावट आई है. यानी भारतीय रुपया यूरो, पाउंड और येन के मुकाबले कम गिरा है.

डॉलर क्यों मजबूत हो रहा है?

रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से दुनिया में अस्थिरता आई. डिमांड-सप्लाई की चेन बिगड़ी. निवेशकों ने डर की वजह से दुनियाभर के बाज़ारों से पैसा निकाला और सुरक्षित जगहों पर निवेश किया. अमेरिकी निवेशकों ने भी भारत, यूरोप और दुनिया के बाकी हिस्सों से पैसा निकाला.

अमेरिका महंगाई नियंत्रित करने के लिए ऐतिहासिक रूप से ब्याज दरें बढ़ा रहा है. फेडरल रिजर्व ने कहा था कि वो तीन तीमाही में ब्याज दरें 1.5 फीसदी से 1.75 फीसदी तक बढ़ाएगा. ब्याज़ डॉलर की मजबूती दर बढ़ने की वजह से भी निवेशक पैसा वापस अमेरिका में निवेश कर रहे हैं.

2020 के आर्थिक मंदी के समय अमेरिका ने लोगों के खाते में सीधे कैश ट्रांसफर किया था, ये पैसा अमेरिकी लोगों ने दुनिया के बाकी देशों में निवेश भी किया था, अब ये पैसा भी वापस अमेरिका लौट रहा है.

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