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मुद्रा के मूल्य से क्या अभिप्राय है

मुद्रा के मूल्य से क्या अभिप्राय है
मुद्रा का अधिमूल्यन

मुद्रा के मूल्य से क्या अभिप्राय है

प्रश्न 36. मुद्रा स्फीति अथवा मुद्रा प्रसार का अर्थ बताइए। मुद्रा स्फीति की परिभाषा दीजिए।

उत्तर- मुद्रा स्फीति का अर्थ- 'मुद्रा-प्रसार' दो शब्दों से मिलकर बना है- 'मुद्रा' तथा 'प्रसार' । 'प्रसार' का अर्थ है 'फैलाव' अथवा 'वृद्धि', अतः मुद्रा-प्रसार का शाब्दिक अर्थ हुआ 'मुद्रा की मात्रा में वृद्धि' । लेकिन मुद्रा की मात्रा में प्रत्येक वृद्धि को 'मुद्रा प्रसार” अथवा मुद्रा-स्फीति की संज्ञा नहीं दी जा सकती है। मुद्रा की मात्रा में केवल वही वृद्धि प्रसार' कहलाती है, जिसके कारण मूल्यों में वृद्धि होती है। यदि मुद्रा की मात्रा में वृद्धि के कारण मूल्य-स्तर में वृद्धि होती है, तो उस स्थिति को मुद्रा-प्रसार अथवा मुद्रा-स्फीति कहा जा सकता है।

मुद्रा-स्फीति की परिभाषा-

1. केमरर के अनुसार- मुद्रा स्फीति वह दशा है जिसमें किये जाने वाले व्यापार की तुलना में मुद्रा के मूल्य से क्या अभिप्राय है चलन तथा जमा की गई मुद्रा की मात्रा अधिक होती है।"

2. क्राउथर के अनुसार “मुद्रा- स्फीति वह दशा है जिसमें मुद्रा का मूल्य गिरता रहता है अर्थात् वस्तुओं की कीमतें बढ़ती रहती हैं।"

मुद्रा के कार्य

मुद्रा की सबसे महत्वपूर्ण कार्य है लेनदेन को सुविधाजनक बनाना. इसका इस्तेमाल लेनदेन के सन्दर्भ मुद्रा के मूल्य से क्या अभिप्राय है में आसानी से किया जा सकता है.

मुद्रा एक ऐसा मूल्यवान रिकॉर्ड है या आमतौर पर मुद्रा के मूल्य से क्या अभिप्राय है वस्तुओं और सेवाओं के लिए भुगतान के रूप में स्वीकार किया जाने वाला तथ्य है. यह सामाजिक-आर्थिक संदर्भ के अनुसार ऋण के पुनर्भुगतान के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

मुद्रा का मुख्य कार्य हैं:

• विनिमय का माध्यम
• खाते की एक इकाई
• मूल्य की एक दुकान
• आस्थगित भुगतान का एक मानक

विनिमय का माध्यम

मुद्रा का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है लेनदेन को सुविधाजनक बनाना. इसका इस्तेमाल लेनदेन के सन्दर्भ में आसानी से किया जा सकता है. बिना मुद्रा के किसी भी प्रकार के लेनदेन को संभव नहीं बनाया जा सकता है. साथ ही अगर हम किसी भी वस्तु के बदले कोई वस्तु न लेना चाहे तो यह मुद्रा ही है जिसके माध्यम से हम व्यापारिक गतिविधियों को संपन्न कर सकते हैं. वस्तु विनिमय प्रणाली के अंतर्गत एक वस्तु का किसी मुद्रा के मूल्य से क्या अभिप्राय है अन्य वस्तु से तभी हस्तांतरण किया जा सकता है जब दोनों दलों की तरफ से किये जाने वाले लेनदेन का मूल्य बराबर हो और उनकी मांग समान हो. मुद्रा इन्हीं समस्याओं को समाप्त करता है और दोनों तरफ के विनिमय को संभव बनाता है. इसके द्वारा दोनों दलों को किसी भी प्रकार की समस्या से न केवल निजात मिलेगी बल्कि वस्तुओ और सेवाओ के लेनदेन की प्रक्रिया आसन होगी.

खाते की इकाई

मुद्रा खाते की एक इकाई के रूप में भी कार्य करता है. यह वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य को मापने का एक आम उपाय भी है. इसके माध्यम से किसी भी वस्तु या सेवा के मूल्य को जाना जा सकता है. साथ ही कोई खरीदार या बेंचने वाला किसी वस्तु की कितनी कीमत अदा कर रहा है या कितनी कीमत वसूल कर रहा है यज सब कुछ मुद्रा के मूल्य के आधार पर ही निर्धारित किया जा सकता है.

मूल्य के स्टोर

मूल्य की एक दुकान के रूप में मुद्रा कोई अद्वितीय चीज नहीं है. उल्लेखनीय है की हर चीज की मूल्य में वृद्धि होती है और घटती भी है जैसे कला, भूमि, डाक टिकटों आदि मनी के रूप में मूल्यांकित नहीं किये जा सकते हैं लेकिन मुद्रा का मूल्य मुद्रा स्फीति मुद्रा के मूल्य से क्या अभिप्राय है पर कम होता है. इसके माध्यम से किसी भी चीज तक आसानी से पहुंचा जा सकता है.मुद्रा के मूल्य से क्या अभिप्राय है

स्थगित भुगतान के मानक

इसका इस्तेमाल किसी भी ऋण को देने में किया जा सकता है. साथ ही न्यायलय में वैध निविदा के रूप में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है. बैंको में भी इसका इस्तेमाल ऋण देने और व्याज से मुक्ति हेतु इस्तेमाल किया जा सकता है.

मूल्य का मानक

मूल्य का एक मानक सभी व्यापारियों और आर्थिक संस्थाओं को वस्तुओं और सेवाओं के लिए समान मूल्य निर्धारित करने की अनुमति देता है। मूल्य का मानक किसी देश के विनिमय के माध्यम, जैसे डॉलर या पेसो में लेनदेन के लिए सहमत मूल्य है। स्थिर बनाए रखने के लिए यह मानक आवश्यक हैअर्थव्यवस्था. आम तौर पर, मूल्य का एक मानक एक वस्तु पर आधारित होता है जिसे व्यापक रूप से जाना जाता है और उपयोग किया जाता है, जिससे इसे अन्य वस्तुओं के लिए एक उपाय के रूप में काम करने की इजाजत मिलती है। उदाहरण के लिए, चांदी, सोना, तांबा और कांस्य जैसी धातुओं का उपयोग पूरे इतिहास में मुद्रा के रूप और मूल्य के मानकों के रूप में किया गया है।

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मूल्य का मानक व्यावसायिक मूल्यांकन में पाए जाने वाले मूल्य को काफी हद तक प्रभावित करेगा क्योंकि अलग-अलग परिस्थितियों में अलग-अलग खरीदार और विक्रेता मूल्य को अलग तरह से देखेंगे।

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मुद्रा का अधिमूल्यन | Overvaluation of Money in Hindi

मुद्रा का अधिमूल्यन

मुद्रा का अधिमूल्यन

मुद्रा का अधिमूल्यन-Overvaluation of Money in Hindi

मुद्रा के अधिमूल्यन का अर्थ है कि अपने देश की मुद्रा के मूल्य को उसके वास्तविक मूल्य से अधिक मूल्य पर निर्धारित करना है। दूसरे शब्दों में, जब कोई देश अपने देश की मुद्रा का मूल्य, मुद्रा बाजार के सामान्य मूल्य से अधिक मूल्यांकित करता है तो उसे मुद्रा का अधिमूल्यन कहा जाता है। प्रत्येक देश की मुद्रा का मूल्य विदेशी मुद्रा की मात्रा में मुद्रा बाजार में निश्चित कर दिया जाता है और इसी दर मुद्रा के मूल्य से क्या अभिप्राय है से विदेशी विनिमय का कार्य किया जाता है। अर्थात् यदि किसी देश को विदेशों में भुगतान करना है तो मुद्रा बाजार में उस देश की मुद्रा की जो दर निश्चित होती है उसी के आधार पर भुगतान करना होता है परन्तु कभी-कभी कुछ विशेष परिस्थितियों में एक देश अपने देश की मुद्रा का मूल्य उस निश्चित दर से अधिक कर देता है और इसी को मुद्रा का अधिमूल्यन कहते हैं।

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परिस्थितियाँ, जब अधिमूल्यन उचित है-

(1) जब देश में व्यापारिक लेन-देनों में भयावह असन्तुलन पैदा हो गया हो तो मुद्रा के अधिमूल्यन की आवश्यकता होती है। ऐसी स्थिति में मुद्रा की माँग की अपेक्षा मुद्रा की पूर्ति अधिक रहती है और मुद्रा का मूल्य बाजार में कम हो जाता है ऐसी स्थिति में मुद्रा के मूल्य को सामान्य से अधिक कर इस स्थिति पर नियन्त्रण किया जा सकता है।

(2) बुद्ध काल अथवा युद्धकाल की समाप्ति के पश्चात् जब देश को अधिक मात्रा में विदेशी वस्तुओं की आवश्यकता होती है तब भी मुद्रा के अधिमूल्यन को उचित ठहराया जा सकता है। इन परिस्थितियों में यदि मुद्रा का मूल्य कम रहता है तो आयातित सामग्री का मूल्य बहुत अधिक चुकाना होगा। परिणामस्वरूप आयात महंगे होंगे परन्तु यदि इन परिस्थिति में मुद्रा के मूल्य में अधिमूल्यन कर दिया जाये तो विदेशी आयात सस्तें होंगे और कम भुगतान में अधिक आयात होगा। अतः जब कोई देश युद्ध के उपरान्त अधिक विदेशी आयात करने की स्थिति से सामना करता है तो उसे अपने देश की मुद्रा का अधिमूल्यन करने की आवश्यकता होती है।

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(3) मुद्रा का अधिमूल्यन उस स्थिति में भी जायज ठहराया जा सकता है जब देश में मुद्रा प्रसार की स्थिति उत्पन्न हो गयी हो। जब देश में मुद्रा प्रसार की स्थिति होती है तो देश की मुद्रा का मूल्य कम हो जाता है। चूँकि विदेशी व्यापार देश की आर्थिक स्थिति के लिए अति आवश्यक भूमिका निभाता है अतः मुद्रा के मूल्य में गिरावट के कारण विदेशी आयात के लिए हमें अधिक मूल्य चुकाना होता है। इस स्थिति से निपटने के लिए मुद्रा का अधिमूल्यन आवश्यक हो जाता है। यदि इन परिस्थितियों में मुद्रा का अधिमूल्यन न किया जाये तो आयात महंगे और निर्यात सस्ते हो जाने की सम्भावना बनी रहती है ।

(4) जब किसी देश को विदेशी ऋणों का भुगतान बड़ी मात्रा में करना हो तो भी देश की मुद्रा का अधिमूल्यन उचित होता है। जब देश की मुद्रा का मूल्य कम होता है तो हमें विदेशी ऋणों के भुगतान के रूप में अधिक मूल्य देना होता है। अतः मुद्रा का अधिमूल्यन कर इस हानि से बचा जा सकता है।

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