क्रिप्टो जोखिम

क्रिप्टो पर प्रतिबंध उचित होगा या अनुचित?
क्रिप्टोकरेंसी या क्रिप्टो-परिसंपत्तियां नियामकीय नीति के लिए भले ही दु:स्वप्र हों लेकिन एक स्तंभकार के लिए वे प्रसन्नता का विषय हैं। हाल के दिनों में इस विषय पर अनेक लेख प्रकाशित हुए हैं। बहरहाल, यह विषय महत्त्वपूर्ण है।
क्रिप्टो-परिसंपत्तियों की बात करें तो इन्हें एक समान रूप से वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है और एक टोकन उदाहरण के लिए बिटकॉइन के गुण और उपयोगिता एक्सआरपी जैसे किसी अन्य टोकन से एकदम अलग हो सकते हैं। गुणों में यह विविधता इनके वर्गीकरण को लेकर भ्रम उत्पन्न करती है। इसके कुछ गुण प्रतिभूतियों के समान हैं तो कई उससे मेल नहीं खाते।
इसकी बुनियाद भले ही विनिमय के माध्यम के रूप में सरकारी मुद्रा का बेहतर प्रतिस्थापन हो लेकिन भारत में एक परिसंपत्ति के रूप में क्रिप्टो की कीमत के संदर्भ में कठिन नीतिगत और नियामकीय सवाल भंडारण मूल्य के रूप में उठ रहे हैं। इन पर प्रतिबंध की मांग करने वालों की दलील यह है कि ये डिजिटल परिसंपत्तियां हैं जिनका कोई मूल्य नहीं है, इनका कारोबार अटकलबाजी पर केंद्रित है और इसलिए ये खुदरा निवेशकों के लिए अप्रत्याशित रूप से अस्थिर परिसंपत्तियां हैं। बहरहाल, खूबसूरती की तरह इसका मूल्य भी क्रिप्टो जोखिम धारण करने वाले की आंखों में होता है। यदि दो करोड़ भारतीयों (ज्यादातर युवा) ने यह परिसंपत्ति रखी है तो आर्थिक स्वतंत्रता की इस अभिव्यक्ति की इज्जत करनी चाहिए और इस पर प्रतिबंध की दलील सावधानीपूर्वक सामने रखी जाए। देश में बीते कई दशक में वित्तीय क्षेत्र के नियमन में ऐसे विध्वंसकारी नवाचार के समय एक खास तरह का रुख देखने को मिला है। समाजवाद के उभार के समय आमतौर पर यही रुख था कि उन परिसंपत्तियों को प्रतिबंधित कर दिया जाए जो सामाजिक रूप से वांछित नहीं थीं। उदाहरण के लिए वायदा अनुबंध (नियमन) अधिनियम, 1952 स्पष्ट रूप से 'एक ऐसा अधिनियम था जो वस्तु कारोबार में विकल्पों पर रोक लगाने के लिए था' जिसे सितंबर 2015 में खत्म कर दिया गया। हालांकि जोखिम प्रबंधन के विशेषज्ञ हमें बताते हैं कि वस्तुओं के मामले में विकल्प एक अहम आर्थिक उद्देश्य पूरा करते हैं और आखिरकार जनवरी 2020 में देश में वस्तुओं में विकल्प कारोबार की इजाजत दी गई।
उदारीकरण के बाद भारत ने सीधे प्रतिबंधों से दूरी बना ली। उदाहरण के लिए सन 1998 की डेरिवेटिव से संबंधित विशेषज्ञ समिति ने अनुशंसा की थी कि इस बाजार को नियंत्रित तरीके से खोला जाए और कुछ डेरिवेटिव मसलन व्यक्तिगत वायदा शेयरों पर रोक लगाई जाए। चार वर्ष बाद जब नियामक अन्य देशों के बाजारों के उदाहरण से यह सुनिश्चित हो गया कि इस 'नवाचार' से कोई नुकसान नहीं है तो इसकी इजाजत दे दी गई। नैशनल स्टॉक एक्सचेंज का शेयर वायदा बाजार अब रोजाना 85,000 करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार करता है।
वित्तीय क्षेत्र में ऐसे 'नवाचार' को लेकर प्रतिबंधात्मक नियंत्रण अक्सर उचित होता है क्योंकि निवेशकों के संरक्षण को प्राथमिकता देना उचित माना जाता है। यह ठीक है लेकिन नियामकों को इसे स्वचालित रास्ता नहीं बना लेना चाहिए। ऐसा इसलिए कि इससे नवाचारों का दम घुट सकता है और इससे तमाम अवसर गंवाए जा सकते हैं। यह याद करना उचित होगा कि आज जो फिनटेक उत्पाद वित्तीय समावेशन और वित्तीय सेवाओं की आपूर्ति में मददगार हैं उन्हें एक समय इस काबिल नहीं माना जाता था। उस समय इन पर भी प्रतिबंध की मांग होती थी जिन्हें खुशकिस्मती से स्वीकार नहीं किया गया। यह भी याद रखना उचित होगा कि फिनटेक की तरह क्रिप्टो-परिसंपत्तियों और आईटी सेवाओं के बीच भी गहरा संबंध है। इंटरनेट ऐंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया बनाम आरबीआई के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने जो कहा वह नियामकों और कानून निर्माताओं को याद दिलाता है कि किसी पेशे, व्यापार या कारोबार को प्रतिबंधित करने वाले कदम के पीछे उचित कारण होने चाहिए और वह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (जी) के अनुरूप हो। दूसरे शब्दों में जब तक प्रतिबंध का कोई बड़ा कारण न हो तब तक न्यायिक निगरानी कठिन होगी। साबित करने का बोझ सरकार पर होता है। उसे ही यह दिखाना होता है कि जनता का बड़ा हिस्सा इन परिसंपत्तियों पर रोक चाहता है। यदि प्रतिबंध के बजाय नियमन के साथ आगे बढ़ा जाता है तो उन कारणों को समझना आवश्यक होगा कि आखिर क्यों भारतीय नियामकों ने इस तेजी से उभरते परिसंपत्ति वर्ग को तत्काल नियमित नहीं किया तथा ऐसे विधान क्यों नहीं बनाए गए कि वे क्या कर सकते हैं और क्या नहीं। जब हम क्रिप्टो-परिसंपत्तियों की बात करते हैं तो न तो आरबीआई और न ही भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड को इनसे निपटने के लिए सशक्त बनाया गया है।
शायद इसी बात को ध्यान में रखते हुए मार्च में वित्तीय क्षेत्र विधायी सुधार आयोग ने 2013 में कहा था कि मौजूदा व्यवस्था में खामियां हैं जहां किसी नियामक के पास प्रभार नहीं है। उसने यह भी कहा था, 'बीते वर्षों के दौरान ये समस्याएं तकनीकी और वित्तीय नवाचारों से और बिगड़ जाएंगी।' इस आधार पर तथा अन्य बातों पर विचार करते हुए रिपोर्ट में अनुशंसा की गई कि एक एकीकृत वित्तीय एजेंसी बनाई जाए जो उपभोक्ता संरक्षण कानून लागू करे तथा बैंकिंग और भुगतान से इतर सभी वित्तीय फर्म के लिए माइक्रो प्रूडेंशियल कानून क्रिप्टो जोखिम बनने चाहिए। अब वक्त आ गया है कि हम सभी एकीकृत वित्तीय नियामक ढांचे पर विचार करें ताकि हमें भविष्य में समस्या न हो। लब्बोलुआब यह है कि आमतौर पर नवाचार तभी होता है जब कानूनी प्रक्रिया में कुछ छूट ली जाती है। अक्सर नियामकीय ढांचे को नियमन का तरीका तलाश करना होता है। क्रिप्टो-परिसंपत्तियों की विशेषताओं को देखते हुए नियामकों को इन परिसंपत्तियों के तकनीकी और आर्थिक पहलुओं को देखते हुए परिसंपत्ति तैयार करनी होगी। जब ऐसी परिसंपत्तियों का नियमन होता है तो सुरक्षित निवेशक और उपभोक्ता इस बात पर निर्भर होंगे कि नियामक को परिसंपत्तियों की कितनी समझ रखता है। बुनियादी तौर पर क्रिप्टो-परिसंपत्ति के मामले में उपभोक्ताओं के लिए बाजार विफलता के जोखिम वैसे ही हैं जैसे कि अन्य वित्तीय उत्पादों और सेवाओं के मामले में। ये हैं साइबर सुरक्षा भंग होना, बचत का गंवाना, अनुचित व्यवहार आदि।
बहरहाल, क्रिप्टो-परिसंपत्ति प्रबंधन की विकेंद्रीकृत व्यवस्था बाजार विफलता के विशिष्ट बिंदु उत्पन्न कर सकती है। इस गतिविधि को समझने और इसकी निगरानी करने के लिए नियामकीय क्षमता विकसित करना अहम है। ऐसा करके ही ग्राहकों का संरक्षण किया जा सकता है तथा नवाचार और उद्यमिता को प्रोत्साहन दिया जा सकता है।
क्रिप्टो बज़ से बेखबर? रिपोर्ट में दावा- क्रिप्टोक्राइम से दुनिया को हर साल 30 बिलियन डॉलर का लगेगा चूना
अमेरिकी शोध फर्म की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 2025 तक साइबर अपराध 10.5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा और 2031 तक साइबर क्राइम पीड़ितों को रैंसमवेयर हमलों से होने वाला नुकसान का आंकड़ा 265 बिलियन डॉलर सालाना हो जाएगा.
क्रिप्टोकरेंसी की प्रतीकात्मक तस्वीर | विकीमीडिया कॉमन्स
नई दिल्ली: क्रिप्टो करेंसी से जुड़े अपराध, जिन्हें आमतौर पर क्रिप्टो क्राइम कहा जाता है, इनके कारण 2025 तक वैश्विक अर्थव्यवस्था को 30 बिलियन डॉलर का नुकसान उठाना पड़ सकता है. यह अनुमान एक नई रिपोर्ट में लगाया गया है.
वैश्विक साइबर अर्थव्यवस्था पर केंद्रित अमेरिकी शोध फर्म साइबरस्पेस वेंचर्स की बुधवार को जारी रिपोर्ट में साइबर क्राइम और साइबर सुरक्षा पर तमाम क्रिप्टो जोखिम तथ्यों और आंकड़ों का ब्योरा दिया गया है.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘डिसेंट्रलाइज फाइनेंस (डीएफआई) सेवाओं के उपयोग में तेजी आने से वैश्विक वित्तीय प्रणालियों के बीच एक नए तरह का जोखिम उत्पन्न हो रहा है जो अपराधियों को क्रिप्टोक्राइम के नए तरीके अपनाने को बढ़ावा दे रहा है. साइबर सिक्योरिटी वेंचर का अनुमान है कि ‘रग पुल’ क्रिप्टो जोखिम और अन्य तरह के साइबर हमलों से दुनिया को अकेले 2025 में करीब 30 बिलियन डॉलर का नुकसान उठाना पड़ सकता है.’
‘रग पुल’ शब्द का इस्तेमाल क्रिप्टो वर्ल्ड क्रिप्टो जोखिम में एक घोटाले के संदर्भ में किया जाता है जहां क्रिप्टो टोकन डेवलपर्स अनजान उपयोगकर्ताओं को एक परियोजना में निवेश के लिए प्रोत्साहित करते हैं, लेकिन फिर इसे बंद कर देते हैं, और निवेशक एकदम खाली हाथ रह जाते हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, कुल मिलाकर साइबर क्राइम की वजह से होने वाला नुकसान वैश्विक स्तर पर हर साल क्रिप्टो जोखिम 15 प्रतिशत बढ़कर 2025 तक 10.5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच जाने की उम्मीद है, जबकि 2015 में यह 3 ट्रिलियन डॉलर था.
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इसमें यह भविष्यवाणी भी की गई है कि कि रैंसमवेयर (एक मैलिसियस सॉफ्टवेयर जो फिरौती चुकाने तक आपके कंप्यूटर तक पहुंच बाधित कर देता है) का इस्तेमाल कर 2031 तक हर दो सेकंड पर किए जाने वाले एक हमले के साथ पीड़ितों को 265 बिलियन डॉलर सालाना का चूना लग सकता है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2021 में रैंसमवेयर से संबंधित नुकसान 20 बिलियन डॉलर आंका गया था और हर 11 सेकंड एक हमला हुआ था.
क्रिप्टो क्राइम में तेजी
रिपोर्ट के मुताबिक, 2025 तक क्रिप्टो क्राइम के कारण सालाना 30 बिलियन डॉलर के नुकसान का अनुमान है, जो 2021 के 17.5 बिलियन डॉलर के आंकड़े की तुलना में लगभग दोगुना है.
इसमें कहा गया है कि क्रिप्टो क्राइम और इसके कारण चुकाई जाने वाली कीमत आने वाले वर्षों में सालाना क्रिप्टो जोखिम 15 प्रतिशत की दर से बढ़ने के आसार हैं.
इसमें कहा गया है, ‘साइबर अपराधी कई तरीकों से क्रिप्टो क्राइम को अंजाम देने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं.’
इनमें हैकर्स का क्रिप्टो एक्सचेंजों को निशाना बनाने के कई उदाहरण शामिल हैं, क्रिप्टो एक्सचेंज वो वर्चुअल प्लेटफॉर्म होते हैं जहां क्रिप्टोकरेंसी खरीदी और बेची जा सकती है. उदाहरण के तौर पर, जनवरी 2022 में क्रिप्टो एक्सचेंज प्लेटफॉर्म क्रिप्टो डॉट कॉम ने स्वीकार किया कि हैकर्स ने यूजर्स की 30 मिलियन डॉलर मूल्य की क्रिप्टोकरेंसी चुरा ली थी.
अन्य क्रिप्टो क्राइम में मनगढ़ंत तथ्यों के आधार पर जानबूझकर यूजर्स की क्रिप्टोकरेंसी हथिया लेने वाले घोटाले शामिल हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘अकेले पिछले साल क्रिप्टो घोटालों की बदौलत स्कैमर्स ने पीड़ितों से 7.7 बिलियन डॉलर का चूना लगाया.’ साथ ही कहा गया कि यह 2020 की तुलना में 81 प्रतिशत अधिक है.
यूएस फेडरल ट्रेड कमीशन ने भी कहा था कि 2021 में क्रिप्टो क्राइम के कारण नुकसान पिछले 12 महीनों में दस गुना बढ़ गया.
‘मनीलॉन्ड्रिंग भी क्रिप्टो क्राइम की एक बड़ी वजह’
दिग्गज टेक कंपनी आईबीएम की तरफ से इस साल जुलाई में जारी एक रिपोर्ट में भारत के बारे में कहा गया था, ‘डेटा ब्रीच अब तक सबसे शीर्ष स्तर पर पहुंचकर 2022 में औसतन 176 मिलियन (रुपये) रहा है. यह पिछले साल की तुलना में 6.6 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है.’
आईबीएम की रिपोर्ट ने डेटा ब्रीच के कारण होने वाले नुकसानों को चार श्रेणियों में रखा—लॉस्ट बिजनेस, डिटेक्शन एंड एस्केलेशन, नोटिफिकेशन और पोस्ट-ब्रीच रिस्पांस. इसमें पाया गया कि भारतीय अर्थव्यवस्था ने पोस्ट ब्रीच रिस्पांस पर 71 मिलियन रुपये (7.1 करोड़ रुपये) का नुकसान उठाया. आईबीएम की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘पोस्ट ब्रीच रिस्पांस के कारण होने वाली क्षति 2021 में 67.20 मिलियन रुपये से बढ़कर 2022 में 71 मिलियन रुपये हो गई.’
यद्यपि साइबरस्पेस वेंचर्स की 2022 की रिपोर्ट भारत पर फोकस नहीं करती, ब्लॉकचेन प्लेटफॉर्म पर डेटा मुहैया कराने वाली न्यूयॉर्क स्थित एक कंपनी चैनालिसिस की फरवरी 2021 की रिपोर्ट में भारत से जुड़े एक मामले का उल्लेख है जिससमें क्रिप्टोकरेंसी को कथित तौर पर आतंकवाद को वित्तपोषित करने के लिए उपयोग किया गया.
मार्च 2020 में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने ओखला से एक कश्मीरी जोड़े—जहांजेब सामी और हिना बशीर बेग को गिरफ्तार किया था. बाद में दोनों पर 2019 और 2020 के बीच कथित तौर पर हथियारों और विस्फोटकों की खरीद के लिए ‘सीरिया में बैठे आईएसआईएस ऑपरेटिव से मिले एक बिटकॉइन एड्रेस पर क्रिप्टोकरेंसी का डोनेशन कराने का आरोप लगाया गया था.
चैनालिसिस की रिपोर्ट इस पर भी जोर देती है कि ‘मनी लॉन्ड्रिंग क्रिप्टो करेंसी आधारित अपराध का एक बड़ा साधन क्रिप्टो जोखिम है.’
चैनालिसिस की रिपोर्ट में कहा गया है कि साइबर अपराधी, जो क्रिप्टो करेंसी चुराते हैं या इसे अवैध सामानों के भुगतान के रूप में स्वीकार करते हैं, ‘अपनी क्रिप्टो संपत्ति को बदलने के लिए आश्चर्यजनक रूप से सेवा प्रदाताओं के छोटे समूह पर भरोसा करते हैं.’
इसमें कहा गया है कि इनमें कुछ प्रदाता ‘मनी लॉन्ड्रिंग सेवाओं के विशेषज्ञ हैं, जबकि अन्य केवल बड़ी क्रिप्टो करेंसी सेवाएं और मनी सर्विसेज व्यवसाय (एमएसबी) हैं, जिनके काम करने का कोई ठोस आधार नहीं है.’
इस सबके बीच भारत में अपना आधार बनाने वाले क्रिप्टो एक्सचेंज और क्रिप्टो निवेश ऐप, मसलन क्वाइनडीसीएक्स, क्वाइनस्विच कुबेर और वजीरएक्स के खिलाफ विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम के संभावित उल्लंघनों को लेकर प्रवर्तन निदेशालय की जांच चल रही है.
द इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इन कथित उल्लंघनों में ‘व्यापार-आधारित मनी लॉन्ड्रिंगट और ‘ई-हवाला’ का उपयोग शामिल है.
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Crypto विज्ञापन पर ASCI की सख्त गाइडलाइन, न बढ़ा-चढ़ाकर, न रिटर्न की गारंटी दे सकेंगे, जोखिम की बात भी लिखनी होगी
ASCI Guidelines: क्रिप्टो विज्ञापनों के साथ रिस्क की जानकारी दी जाएगी. ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि ग्राहकों को किसी भी तरह के भ्रामक दावों से दूर रखा जाए.
ASCI Guidelines: एडवरटाइजिंग स्टैंडर्ड काउंसिल ऑफ इंडिया (ASCI) ने वर्चुअल डिजिटल एसेट के लिए गाइडलाइन जारी कर दी हैं. अब विज्ञापनों पर ये गाइडलाइंस 1 अप्रैल 2022 से लागू हो जाएंगी. गाइडलाइंस को सरकार और दूसरे स्टेकहोल्डर्स के साथ विचार-विमर्श के बाद तय किया गया. विज्ञापनों के लिए नई गाइडलाइंस को लेकर लंबे समय से सरकार के साथ चर्चा की जा रही थी. नई गाइडलाइन के लिए तहत, क्रिप्टो विज्ञापनों को ग्राहकों को स्पष्ट तौर पर निवेश से जुड़े जोखिमों की जानकारी देनी होगी.
निवेश से जुड़े जोखिम बताना जरूरी
ASCI के मुताबिक, क्रिप्टो विज्ञापनों के साथ रिस्क की जानकारी दी जाएगी. ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि ग्राहकों को किसी भी तरह के क्रिप्टो जोखिम भ्रामक दावों से दूर रखा जाए. साथ ही मुनाफे के बढ़ा-चढ़ाकर किए जाने वाले दावों पर भी सचेत किया जा सके. बता दें कि देश में विज्ञापनों को नियंत्रित करने के लिए ASCI एक सेल्फ रेग्युलेटरी बॉडी है.
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क्या है गाइडलाइंस?
- 1 अप्रैल 2022 से सभी वर्चुअल डिजिटल एसेट-संबंधी विज्ञापनों पर लागू होंगी. VDA प्रोडक्ट्स और VDA एक्सचेंजों या VDA की विशेषता वाले सभी विज्ञापनों में निम्नलिखित अस्वीकरण होना चाहिए. साफ लिखना होगा क्रिप्टो और NFT अनरेगुलेटेड प्रोडक्ट हैं और भारी जोखिम हो सकता है.
- VDA प्रोडक्ट और सर्विसेज के विज्ञापनों में "करेंसी", "सिक्योरिटीज", "कस्टोडियन" और "डिपॉजिटरी" शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है, क्योंकि उपभोक्ता इन शर्तों को रेगुलेटेड प्रोडक्ट के साथ जोड़ते हैं.
- कॉस्ट कितनी होगी इसकी साफ साफ जानकारी देनी होगी. विज्ञापन कौन दे रहा है इसकी साफ जानकारी देनी होगी. सेलिब्रिटीज को विज्ञापन से पहले जोखिम को समझना होगा.
- विज्ञापनों में दी गई जानकारी उस सूचना या चेतावनियों का खंडन नहीं करेगी, जो रेगुलेटेड संस्थाएं समय-समय पर VDA प्रोडक्ट के मार्केटिंग के लिए ग्राहकों को बताती हैं.
- VDA प्रोडक्ट की कॉस्ट या प्रॉफिट के बारे में साफ स्पष्ट जानकारी देनी होगी. विज्ञापनों में स्पष्ट, सटीक, पर्याप्त और अपडेट जानकारी होनी चाहिए. उदाहरण के लिए, 'Zero Cost' में उन सभी कॉस्ट को शामिल करना होगा, जिससे उपभोक्ता को ऑफर या ट्रांजैक्शन से संबंधित पूरी जानकारी मिल सके.
- पिछले प्रदर्शन की जानकारी किसी भी आंशिक या पक्षपातपूर्ण तरीके से नहीं दी जा सकेगी. 12 महीने से कम की अवधि के लिए रिटर्न शामिल नहीं किया जाएगा. क्रिप्टो जोखिम
- VDA प्रोडक्ट के हर विज्ञापन में स्पष्ट रूप से विज्ञापनदाता का नाम होना चाहिए और उनसे संपर्क करने का एक आसान तरीका (फोन नंबर या ईमेल) दिया जाना चाहिए. यह क्रिप्टो जोखिम जानकारी इस तरह से प्रस्तुत की जानी चाहिए कि उपभोक्ता आसानी से समझ सके.
- किसी भी विज्ञापन में ऐसे बयान नहीं होंगे जो भविष्य में मुनाफे में वृद्धि का वादा या गारंटी देते हों.
- VDA प्रोडक्ट की तुलना किसी दूसरी रेगुलेटेड एसेट से नहीं की जा सकती है.
- एक जोखिम भरी श्रेणी है, VDA विज्ञापनों में दिखाई देने वाली मशहूर हस्तियों या प्रमुख हस्तियों को यह सुनिश्चित करने के लिए विशेष ध्यान रखना चाहिए कि उन्होंने विज्ञापन में दिए गए बयानों और दावों के बारे में अपना उचित परिश्रम किया है, ताकि उपभोक्ताओं को गुमराह न किया जा सके.
बजट में किया गया है बड़ा बदलाव
बजट 2022 में सबसे ज्यादा चर्चा वर्चुअल डिजिटल एसेट्स (VDA) को लेकर ही हुई. बजट में प्रस्ताव किया गया है कि वर्चुअल डिजिटल एसेट्स की बिक्री/ट्रांसफर से होने वाली कमाई पर 30 फीसदी टैक्स लगाया जाएगा. साथ ही वर्चुअल डिजिटल एसेट्स के ट्रांसफर के दौरान एक सीमा से ज्यादा के लेन-देन पर एक फीसदी टीडीएस (TDS) भी लगेगा. तब से इसके फ्रेमवर्क को भी लेकर चर्चा थी.