प्रवृत्ति की दिशा का निर्धारण

समुद्री जलधारा | महासागरीय धाराएं एवं प्रभाव
समुद्री जलधारा समुद्री जल की क्षैतिज गति है और समुद्री सतह पर परिभाषित मार्ग का अनुसरण करती है। यह हजारों किमी तक चलने वाली जल प्रवाह है, जो समुद्री जल के तापीय तथा रासायनिक गुणों को संतुलित रखने की दिशा में कार्य करती है। इसकी उत्पत्ति कई कारकों के अंतरक्रिया का परिणाम है। इन कारकों को हम चार वर्गों में रखते हैं।
- खगोलीय कारक
- वायुमंडलीय कारक
- समुद्री कारक
- उच्चावच एवं स्थलाकृति कारक
खगोलीय कारक
जल धाराओं की उत्पत्ति के तीन महत्वपूर्ण खगोलीय कारण हैं।
- पृथ्वी की घूर्णन गति
- गुरुत्वाकर्षण
- विक्षेप बल
- पृथ्वी की घूर्णन गति – पृथ्वी के घूर्णन के कारण पृथ्वी पर स्थित सभी पदार्थ तरल या ठोस पृथ्वी के घूर्णन की दिशा के विपरीत गतिशील हो जाते हैं। घूर्णन का सर्वाधिक प्रभाव निम्न अक्षांश क्षेत्रों में होता है, क्योंकि वहां घूर्णन की गति सर्वाधिक होती है। इसी कारण निम्न अक्षांशीय प्रदेश में समुद्री धाराएं पृथ्वी की घूर्णन की दिशा के विपरीत गतिशील रहती हैं, जैसे-विषुवतीय गर्म जल धाराएं।
- गुरुत्वाकर्षण – के प्रभाव के कारण समुद्री जल में नीचे बैठने की प्रवृत्ति होती है। क्योंकि समुद्र की तली ठोस है अतः यह नीचे नहीं जा पाते तथा नीचे ना जा पाने के कारण क्षैतिज अपवाह विकसित करते हैं।
- विक्षेप बल – पृथ्वी के घूर्णन से तरल एवं हल्के पदार्थों में पृथ्वी की सतह को छोड़ने की प्रवृत्ति होती है। फेरल के नियम से ऐसे बाहर फेंकते हुए पदार्थ उत्तरी गोलार्ध में अपनी मूल दिशा से दाएं तरफ तथा दक्षिणी गोलार्ध में बाएं तरफ मुड़ जाती है। यही कारण है कि कोई भी जलधारा सीधी रेखा (दिशा) में गतिशील नहीं है। वे प्रचलित वायु के समान उत्तरी गोलार्ध में मूल दिशा से दाएं तरफ तथा दक्षिणी गोलार्ध में बाएं तरफ मुड़ जाती है, एवं उसी दिशा में अपवाहित होती हैं।
वायुमंडलीय कारक
जल धाराओं के विकास में वायुमंडलीय कारकों का अभूतपूर्व प्रभाव पड़ता है। वायुमंडलीय कारकों में वायु प्रवाह की दिशा तथा गति सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। वस्तुतः विश्व की सभी प्रमुख जल धाराएं प्रचलित वायु की दिशा की ओर अपवाहित होती है। जैसे उत्तरी अटलांटिक महासागर में पछुआ वायु का मार्ग तथा उत्तरी अटलांटिक प्रवाह दोनों एक ही मार्ग का अनुसरण करते हैं। पुनः उत्तरी पूर्वी एवं दक्षिणी पूर्वी संमार्गी वायु तथा उत्तरी एवं दक्षिणी विषुवतीय जलधारा समान मार्ग का अनुसरण करती है। विषुवतीय प्रदेश में व्यापारिक पवनों के अभिसरण के फलस्वरुप एक विषुवतीय पछुआ वायु चलती है, इसी के अनुरूप विषुवतीय प्रतिरोधी गर्म जलधारा भी चलती है।
अन्य जलवायु कारकों में वायुदाब और वर्षा का भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। उच्च वायुदाब प्रदेश में जल की ऊपरी सतह नीचे जाने की प्रवृत्ति रखती है, जबकि तुलनात्मक रूप से निम्न वायु भार प्रदेश में जल ऊंचाई पर होता है तथा वे उच्च वायु भार प्रदेश की ओर गतिशील होता है। जैसे उत्तरी अटलांटिक में कनारी शीतल जलधारा। पुनः वर्षा प्रदेशों में जल की आपूर्ति अधिक होती है। ऐसी स्थिति में जल का प्रवाह अन्य प्रदेश में होता है। विषुवतीय प्रदेशों में वर्षा जल की अधिकता के कारण ही इस प्रदेश से गर्म धाराएं दूसरे प्रदेश की तरफ अपवाहित होती हैं, जैसे- गल्फस्ट्रीम। पेरू जलधारा को दक्षिणी चिली के भारी वर्षा से अधिक जल की प्राप्ति होती है।
समुद्री कारक
समुद्री कारकों में समुद्री जल का तापमान, दबाव, प्रवणता, लवणता तथा हिमशिला खण्डो का पिघलना भी महासागरीय जल में गति उत्पन्न करते हैं। वे समुद्री क्षेत्र जहां तापीय प्रभाव अधिक होता है, वहां समुद्री जल में फैलाव होता है। इसके विपरीत निम्न ताप और उच्च भार के क्षेत्र में समुद्री जल में नीचे जाने की प्रवृत्ति होती है। ऐसी स्थिति में अधिक तापीय प्रदेश का जल निम्न या मध्य तापीय प्रदेश की ओर अपवाहित होता है, जैसे गल्फस्ट्रीम एवं क्यूरोशिवो गर्म जलधारा। अधिक गर्म जल में समुद्री दबाव कम होता है, तथा ठंडे जल में दबाव अधिक होता है।
अतः जो दाब प्रवणता उत्पन्न होती है, वही जल धाराओं की उत्पत्ति का कारण बनता है। अधिक लवणता के समुद्री जल तुलनात्मक रूप से अधिक घनत्व रखते हैं तथा उसमें भी बैठने की प्रवृत्ति रहती है। इसके विपरीत कम लवणता के जल में बैठने की प्रवृत्ति नहीं होती है, तथा वे अधिक लवणता के जल की तरह गतिशील हो जाते हैं, जैसे अटलांटिक महासागर से भूमध्य सागर की ओर जल प्रवाह।
उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों के समुद्र में बड़े-बड़े हिमशिला खंड होते हैं, उनके पिघलने से जल की आपूर्ति अचानक बढ़ जाती है। परिणाम स्वरूप ठंडी जलधारा उत्पन्न होती है, जैसे लैब्रोडोर और ओयाशिवो जलधारा। हिम के पिघलने से जब जल की मात्रा बढ़ जाती है, तो वे गतिशील हो जाते हैं। यह ठंडे जल धाराओं की उत्पत्ति का कारण है।
उच्चावच एवं स्थलाकृति कारक
स्थलाकृतिक संरचना का पर्याप्त प्रभाव समुद्री धाराओं पर पड़ता है। यह उनकी उत्पत्ति में सहायक नहीं है, लेकिन उनके दिशा निर्धारण में सहायक होते हैं। इसे संशोधक कारक भी कहा जाता है। जैसे अटलांटिक महासागर में उत्तरी विषुवतीय गर्म जलधारा का अपवाह क्षेत्र 0 डिग्री से 12 डिग्री उत्तरी अक्षांश के बीच है। लेकिन जब यह धाराएं मध्य कटक के पास आती है। तब इसकी दिशा उत्तर की तरफ मुड़ जाती है, और यह 25 डिग्री N अक्षांश तक प्रवाहित होती है। जब मध्य कटक की ऊंचाई में कमी आती है, तब ये धाराएं मध्यवर्ती कटक को पार कर पूर्व के मार्ग पर अर्थात 0 डिग्री से 12 डिग्री N अक्षांश के मध्य चलने लगती है।
तटवर्ती स्थल आकृतियों के प्रभाव से भी जलधाराएं संशोधित हो जाती हैं। जैसे दक्षिणी पूर्वी मानसूनी जलधाराएं तथा विषुवतीय जलधारा जो महाद्वीपीय स्थलाकृति के पास आते ही संशोधित हो जाती है। महाद्वीपीय अवरोध न होने के कारण दक्षिणी गोलार्ध में पश्चिमी वायु प्रवाह की जलधारा एक विश्व स्तरीय जलधारा है। यह एकमात्र जलधारा है जो विश्व स्तरीय जलधारा है और जो पूरे गोलार्ध में प्रवृत्ति की दिशा का निर्धारण घूमती है। जबकि विषुवतीय जलधाराएं तथा पछुआ वायु के प्रभाव से चलने वाली जलधाराएं स्थल आकृतियों द्वारा संशोधित होती है।
कई जल धाराओं पर द्वीपों की स्थिति का प्रभाव पड़ता है जैसे उत्तरी विषुवतीय जलधारा, उत्तरी अटलांटिक में कैरीबियन सागर की तरफ मूड़ती है, तो वहां अनेक द्वीपों की स्थिति के कारण वे कई भागों में विभक्त हो जाती है।
पुनः मेक्सिको की खाड़ी में द्वीपों की कमी आने पर वह धाराएं मिल जाती है तथा गल्फ स्ट्रीम जैसी जलधारा बनाती है। इसी प्रकार क्यूरोशिवो गर्म जलधारा ताइवान एवं जापान के द्वीपों के प्रभाव से संशोधित हो जाती है। अतः ऊपर के तथ्यों से स्पष्ट है, कि जल धाराओं की उत्पत्ति विस्तार तथा दिशा निर्देशन क्रियाएं कई कारकों की अंतरक्रिया का परिणाम है।
समुद्री जलधारा | महासागरीय धाराएं एवं प्रभाव
समुद्री जलधारा समुद्री जल की क्षैतिज गति है और समुद्री सतह पर परिभाषित मार्ग का अनुसरण करती है। यह हजारों किमी तक चलने वाली जल प्रवाह है, जो समुद्री जल के तापीय तथा रासायनिक गुणों को संतुलित रखने की दिशा में कार्य करती है। इसकी उत्पत्ति कई कारकों के अंतरक्रिया का परिणाम है। इन कारकों को हम चार वर्गों में रखते हैं।
- खगोलीय कारक
- वायुमंडलीय कारक
- समुद्री कारक
- उच्चावच एवं स्थलाकृति कारक
खगोलीय कारक
जल धाराओं की उत्पत्ति के तीन महत्वपूर्ण खगोलीय कारण हैं।
- पृथ्वी की घूर्णन गति
- गुरुत्वाकर्षण
- विक्षेप बल
- पृथ्वी की घूर्णन गति – पृथ्वी के घूर्णन के कारण पृथ्वी पर स्थित सभी पदार्थ तरल या ठोस पृथ्वी के घूर्णन की दिशा के विपरीत गतिशील हो जाते हैं। घूर्णन का सर्वाधिक प्रभाव निम्न अक्षांश क्षेत्रों में होता है, क्योंकि वहां घूर्णन की गति सर्वाधिक होती है। इसी कारण निम्न अक्षांशीय प्रदेश में समुद्री धाराएं पृथ्वी की घूर्णन की दिशा के विपरीत गतिशील रहती हैं, जैसे-विषुवतीय गर्म जल धाराएं।
- गुरुत्वाकर्षण – के प्रभाव के कारण समुद्री जल में नीचे बैठने की प्रवृत्ति प्रवृत्ति की दिशा का निर्धारण होती है। क्योंकि समुद्र की तली ठोस है अतः यह नीचे नहीं जा पाते तथा नीचे ना जा पाने के कारण क्षैतिज अपवाह विकसित करते हैं।
- विक्षेप बल – पृथ्वी के घूर्णन से तरल एवं हल्के पदार्थों में पृथ्वी की सतह को छोड़ने की प्रवृत्ति होती है। फेरल के नियम से ऐसे बाहर फेंकते हुए पदार्थ उत्तरी गोलार्ध में अपनी मूल दिशा से दाएं तरफ तथा दक्षिणी गोलार्ध में बाएं तरफ मुड़ जाती है। यही कारण है कि कोई भी जलधारा सीधी रेखा (दिशा) में गतिशील नहीं है। वे प्रचलित वायु के समान उत्तरी गोलार्ध में मूल दिशा से दाएं तरफ तथा दक्षिणी गोलार्ध में बाएं तरफ मुड़ जाती है, एवं उसी दिशा में अपवाहित होती हैं।
वायुमंडलीय कारक
जल धाराओं के विकास में वायुमंडलीय कारकों का अभूतपूर्व प्रभाव पड़ता है। वायुमंडलीय कारकों में वायु प्रवाह की दिशा तथा गति सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। वस्तुतः विश्व की सभी प्रमुख जल धाराएं प्रचलित वायु की दिशा की ओर अपवाहित होती है। जैसे उत्तरी अटलांटिक महासागर में पछुआ वायु का मार्ग तथा उत्तरी अटलांटिक प्रवाह दोनों एक ही मार्ग का अनुसरण करते हैं। पुनः उत्तरी पूर्वी एवं दक्षिणी पूर्वी संमार्गी वायु तथा उत्तरी एवं दक्षिणी विषुवतीय जलधारा समान मार्ग का अनुसरण करती है। विषुवतीय प्रदेश में व्यापारिक पवनों के अभिसरण के फलस्वरुप एक विषुवतीय पछुआ वायु चलती है, इसी के अनुरूप विषुवतीय प्रतिरोधी गर्म जलधारा भी चलती है।
अन्य जलवायु कारकों में वायुदाब और वर्षा का भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। उच्च वायुदाब प्रदेश में जल की ऊपरी सतह नीचे जाने की प्रवृत्ति रखती है, जबकि तुलनात्मक रूप से निम्न वायु भार प्रदेश में जल ऊंचाई प्रवृत्ति की दिशा का निर्धारण पर होता है तथा वे उच्च वायु भार प्रदेश की ओर गतिशील होता है। जैसे उत्तरी अटलांटिक में कनारी शीतल जलधारा। पुनः वर्षा प्रदेशों में जल की आपूर्ति अधिक होती है। ऐसी स्थिति में जल का प्रवाह अन्य प्रदेश में होता है। विषुवतीय प्रदेशों में वर्षा जल की अधिकता के कारण ही इस प्रदेश से गर्म धाराएं दूसरे प्रदेश की तरफ अपवाहित होती हैं, जैसे- गल्फस्ट्रीम। पेरू जलधारा को दक्षिणी चिली के भारी वर्षा से अधिक जल की प्राप्ति होती है।
समुद्री कारक
समुद्री कारकों में समुद्री जल का तापमान, दबाव, प्रवणता, लवणता तथा हिमशिला खण्डो का पिघलना भी महासागरीय जल में गति उत्पन्न करते हैं। वे समुद्री क्षेत्र जहां तापीय प्रभाव अधिक होता है, वहां समुद्री जल में फैलाव होता है। इसके विपरीत निम्न ताप और उच्च भार के क्षेत्र में समुद्री जल में नीचे जाने की प्रवृत्ति होती है। ऐसी स्थिति में अधिक तापीय प्रदेश का जल निम्न या मध्य तापीय प्रदेश की ओर अपवाहित होता है, जैसे गल्फस्ट्रीम एवं क्यूरोशिवो गर्म जलधारा। अधिक गर्म जल में समुद्री दबाव कम होता है, तथा ठंडे जल में दबाव अधिक होता है।
अतः जो दाब प्रवणता उत्पन्न होती है, वही जल धाराओं की उत्पत्ति का कारण बनता है। अधिक लवणता के समुद्री जल तुलनात्मक रूप से अधिक घनत्व रखते हैं तथा उसमें भी बैठने की प्रवृत्ति रहती है। इसके विपरीत कम लवणता के जल में बैठने की प्रवृत्ति नहीं होती है, तथा वे अधिक लवणता के जल की तरह गतिशील हो जाते हैं, जैसे अटलांटिक महासागर से भूमध्य सागर की ओर जल प्रवाह।
उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों के समुद्र में बड़े-बड़े हिमशिला खंड होते हैं, उनके पिघलने से जल की आपूर्ति अचानक बढ़ जाती है। परिणाम स्वरूप ठंडी जलधारा उत्पन्न होती है, जैसे लैब्रोडोर और ओयाशिवो जलधारा। हिम के पिघलने से जब जल की मात्रा बढ़ जाती है, तो वे गतिशील हो जाते हैं। यह ठंडे जल धाराओं की उत्पत्ति का कारण है।
उच्चावच एवं स्थलाकृति कारक
स्थलाकृतिक संरचना का पर्याप्त प्रभाव समुद्री धाराओं पर पड़ता है। यह उनकी उत्पत्ति में सहायक नहीं है, लेकिन उनके दिशा निर्धारण में सहायक होते हैं। इसे संशोधक कारक भी कहा जाता है। जैसे अटलांटिक महासागर में उत्तरी विषुवतीय गर्म जलधारा का अपवाह क्षेत्र 0 डिग्री से 12 डिग्री उत्तरी अक्षांश के बीच है। लेकिन जब यह धाराएं मध्य कटक के पास आती है। तब इसकी दिशा उत्तर की तरफ मुड़ जाती है, और यह 25 डिग्री N अक्षांश तक प्रवाहित होती है। जब मध्य कटक की ऊंचाई में कमी आती है, तब ये धाराएं मध्यवर्ती कटक को पार कर पूर्व के मार्ग पर अर्थात 0 डिग्री से 12 डिग्री N अक्षांश के मध्य चलने लगती है।
तटवर्ती स्थल आकृतियों के प्रभाव से भी जलधाराएं संशोधित हो जाती हैं। जैसे दक्षिणी पूर्वी मानसूनी जलधाराएं तथा विषुवतीय जलधारा जो महाद्वीपीय स्थलाकृति के पास आते ही संशोधित हो जाती है। महाद्वीपीय अवरोध न होने के कारण दक्षिणी गोलार्ध में पश्चिमी वायु प्रवाह की जलधारा एक विश्व स्तरीय जलधारा है। यह एकमात्र जलधारा है जो विश्व स्तरीय जलधारा है और जो पूरे गोलार्ध में घूमती है। जबकि विषुवतीय जलधाराएं तथा पछुआ वायु के प्रभाव से चलने वाली जलधाराएं स्थल आकृतियों द्वारा संशोधित होती है।
कई जल धाराओं पर द्वीपों की स्थिति का प्रभाव पड़ता है जैसे उत्तरी विषुवतीय जलधारा, उत्तरी अटलांटिक में कैरीबियन सागर की तरफ मूड़ती है, तो वहां अनेक द्वीपों की स्थिति के कारण वे कई भागों में विभक्त हो जाती है।
पुनः मेक्सिको की खाड़ी में द्वीपों की कमी आने पर वह धाराएं मिल जाती है तथा गल्फ स्ट्रीम जैसी जलधारा बनाती है। इसी प्रकार क्यूरोशिवो गर्म जलधारा ताइवान एवं जापान के द्वीपों के प्रभाव से संशोधित हो जाती है। अतः ऊपर के तथ्यों से स्पष्ट है, कि जल धाराओं की उत्पत्ति विस्तार तथा दिशा निर्देशन क्रियाएं कई कारकों की अंतरक्रिया का परिणाम है।
प्रवृत्ति की दिशा का निर्धारण
चीन के कागज उद्योग के विकास की स्थिति और प्रवृत्ति निर्धारण
पुरानी उत्पादन क्षमता को खत्म करने के लिए कागज उद्योग उद्योग एकीकरण के दौर से गुजर रहा है; वर्तमान उत्पादन क्षमता अच्छी तरह से नियंत्रित है, और समग्र बाजार कम आपूर्ति में है।
चीन पारंपरिक कागज बनाने वाला देश है। सुधार और खुलने के बाद से, राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के निरंतर और तेजी से विकास के साथ, चीनी कागज उद्योग ने धीरे-धीरे प्रारंभिक उत्पादन क्षमता फैलाव और व्यापक प्रक्रिया उत्पादन से गहन विकास मॉडल में संक्रमण का अनुभव किया है। तकनीकी उपकरणों और घरेलू स्वतंत्र नवाचार की शुरूआत के संयोजन के माध्यम से, चीन में कुछ उत्कृष्ट उद्यमों [जीजी] # 39; कागज उद्योग ने पारंपरिक कागज उद्योग से आधुनिक कागज उद्योग में परिवर्तन पूरा कर लिया है, और दुनिया के रैंकों में प्रवृत्ति की दिशा का निर्धारण प्रवेश किया है [ GG] #39; की उन्नत पेपर कंपनियां। इसी समय, चीन वैश्विक कागज उत्पादों के उत्पादन और बिक्री में एक प्रमुख देश बन गया है, और इसका कुल कागज उत्पादन और खपत दुनिया में पहले प्रवृत्ति की दिशा का निर्धारण स्थान पर पहुंच गया है। चाइना पेपर एसोसिएशन के आंकड़ों के अनुसार, 2014 के बाद से, मेरे देश में निर्दिष्ट आकार से ऊपर के कागज निर्माण उद्यमों की संख्या में समग्र गिरावट देखी गई है। 2020 के अंत तक, मेरे देश में निर्दिष्ट आकार से ऊपर के कागज निर्माण उद्यमों की संख्या 2500 तक गिर गई है, जो 2014 से 400 से अधिक की कमी है।
2014 से 2019 तक, चीन [जीजी] #39; का कागज उद्योग ओवरसप्लाई रहा है। 2020 में, मेरे देश' के पेपर और पेपरबोर्ड की खपत 118.27 मिलियन टन होगी, जो साल-दर-साल 10.49% की वृद्धि होगी। कुल मिलाकर, उद्योग की खपत उत्पादन से अधिक है, और पहली बार आपूर्ति कम आपूर्ति में है।
1. कागज उद्योग की क्षेत्रीय वितरण विशेषताएँ
चीनी कागज कंपनियों का उत्पादन मुख्य रूप से पूर्वी क्षेत्र में वितरित किया जाता है। 2020 में, उत्पादन 82.43 मिलियन टन तक पहुंच जाएगा, जो राष्ट्रीय उत्पादन प्रवृत्ति की दिशा का निर्धारण का 73.2% है।
विशिष्ट प्रांतों के संदर्भ में, 2020 में, ग्वांगडोंग प्रांत, शेडोंग प्रांत, जिआंगसु प्रांत, झेजियांग प्रांत, फ़ुज़ियान प्रांत, हेनान प्रांत, हुबेई प्रांत, चोंगकिंग शहर, अनहुई प्रांत, हेबेई प्रांत, सिचुआन प्रांत, तियानजिन शहर, गुआंग्शी ज़ुआंग स्वायत्त क्षेत्र, जियांग्शी प्रांत, हुनान प्रांत, लिओनिंग प्रांत और हैनान प्रांत के 17 प्रांतों (स्वायत्त क्षेत्रों और नगर पालिकाओं) में पेपर और पेपरबोर्ड का उत्पादन 1 मिलियन टन से अधिक है, कुल उत्पादन 108.59 मिलियन टन के साथ, कुल उत्पादन का 96.44% है। देश में कागज और पेपरबोर्ड।
2. कागज उद्योग का प्रतिस्पर्धी परिदृश्य
माई कंट्री [जीजी] #39; की प्रमुख पेपर कंपनियों में नाइन ड्रैगन्स पेपर, ली [जीजी] amp शामिल हैं; मैन पेपर, शेडोंग चेनमिंग, आदि। उनमें से, नौ ड्रैगन्स पेपर का सबसे बड़ा उत्पादन है, जो 15 मिलियन टन से अधिक है, जो उत्पादन में अन्य प्रमुख पेपर कंपनियों से बहुत आगे है। पेपर उद्योग का प्रतिस्पर्धी परिदृश्य, चाइना पेपर एसोसिएशन द्वारा प्रवृत्ति की दिशा का निर्धारण जारी किए गए आंकड़ों को देखते हुए, चीन की प्रमुख कागज उद्योग कंपनियों को मोटे तौर पर चार क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है: उनमें से, नौ ड्रैगन्स पेपर का सबसे बड़ा उत्पादन है, जो 16 मिलियन टन से अधिक है, जो कि दूर है उत्पादन में अन्य प्रमुख पेपर कंपनियों से आगे; दूसरे सोपानक का प्रतिनिधित्व ली [जीजी] amp जैसी कागज कंपनियां करती हैं; मैन पेपर, शेनिंग इंटरनेशनल और सन पेपर। वार्षिक कागज उत्पादन 2-6 मिलियन टन के बीच है और कंपनियों की संख्या लगभग 10 है; तीसरा सोपान मध्यम आकार के कागज निर्माता हैं जैसे कि जिंदोंग और लियानशेंग। 1 मिलियन टन से अधिक के वार्षिक पेपर उत्पादन उत्पादन के प्रवृत्ति की दिशा का निर्धारण साथ कंपनियों का प्रतिनिधित्व किया जाता है, और कंपनियों की संख्या लगभग 13 है; चौथा सोपानक कागज उद्योग में छोटे और मध्यम आकार के उद्यम हैं, जिनका वार्षिक कागज उत्पादन 1 मिलियन टन से कम है, और चौथे क्षेत्र में कंपनियों की संख्या सबसे अधिक है। पर्यावरण संरक्षण और क्षमता में कमी के बाद, कुछ छोटे और मध्यम आकार के पिछड़े उत्पादन क्षमता को समाप्त कर दिया गया है, और उद्योग की एकाग्रता में वृद्धि हुई है। जैसा कि उद्योग के नेता धीरे-धीरे उत्पादन क्षमता का विस्तार करना शुरू करते हैं, यह देखा जा सकता है कि कागज उद्योग की एकाग्रता में और वृद्धि होने की उम्मीद है।
3. कागज उद्योग का नीति विश्लेषण
[जीजी] उद्धरण के अनुसार; चौदहवीं पंचवर्षीय योजना और 2035 विज़न लक्ष्य रूपरेखा [जीजी] उद्धरण;, पारंपरिक उद्योगों को बदलने और अपग्रेड करने, पेट्रोकेमिकल्स, स्टील जैसे कच्चे माल के उद्योगों के अनुकूलन और संरचनात्मक समायोजन को बढ़ावा देने का प्रस्ताव है। , अलौह धातु और निर्माण सामग्री, प्रकाश उद्योग और वस्त्र जैसे उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों की आपूर्ति का विस्तार करते हैं, और रासायनिक उद्योग और पेपरमेकिंग जैसे प्रमुख उद्योगों में उद्यमों के परिवर्तन और उन्नयन से हरित निर्माण प्रणाली में सुधार होगा। [जीजी] उद्धरण के अनुसार;औद्योगिक संरचना समायोजन मार्गदर्शन कैटलॉग (2019 संस्करण) [जीजी] उद्धरण; कागज उद्योग के लिए प्रोत्साहित उद्योगों में शामिल हैं: एकल रासायनिक लकड़ी लुगदी 300,000 टन / वर्ष और अधिक, रासायनिक यांत्रिक लकड़ी लुगदी 100,000 टन / वर्ष और उससे अधिक, रासायनिक बांस लुगदी 100,000 टन / वर्ष और उससे अधिक की वन-पेपर एकीकृत उत्पादन लाइन का निर्माण और संबंधित सहायक पेपर और कार्डबोर्ड उत्पादन लाइनें (अखबार प्रिंट और लेपित पेपर को छोड़कर); स्वच्छ उत्पादन तकनीक, कच्चे माल के रूप में गैर-लकड़ी फाइबर, एकल 100,000 टन / वर्ष और ऊपर लुगदी उत्पादन लाइन का निर्माण; उन्नत पल्पिंग और पेपरमेकिंग उपकरण का विकास और निर्माण; मौलिक क्लोरीन मुक्त (ईसीएफ) और कुल क्लोरीन मुक्त (टीसीएफ) रासायनिक लुगदी विरंजन प्रक्रियाओं का विकास और अनुप्रयोग।
स्थानीय नीतियां: [जीजी] उद्धरण के दौरान;14वीं पंचवर्षीय योजना [जीजी] उद्धरण; अवधि, मेरे देश [जीजी] #39; के प्रमुख प्रांतों ने भी कागज उद्योग के लिए विकास लक्ष्यों का प्रस्ताव रखा। उनमें से, लिओनिंग प्रांत ने उच्च प्रदर्शन वाली फिल्म सामग्री और उत्पादों, डिग्रेडेबल बायोमास पैकेजिंग सामग्री और उत्पादों, और पारिस्थितिक और पर्यावरण के अनुकूल घरेलू कागज और कागज उत्पाद उद्योगों के विकास का प्रस्ताव रखा; उसी समय, गुइझोउ ने शराब विरोधी जालसाजी पैकेजिंग, खाद्य पैकेजिंग और अन्य उद्योगों को सख्ती से विकसित करने का भी प्रस्ताव रखा। झेजियांग, हैनान और अन्य स्थानों ने स्पष्ट रूप से कागज उद्योग की उच्च ऊर्जा खपत को कम करने का प्रस्ताव दिया है; इसके अलावा, अन्य प्रांतों ने भी ऊर्जा संरक्षण और उद्योग के हरित परिवर्तन के लिए निर्माण लक्ष्यों या योजनाओं का प्रस्ताव दिया है। नीति विश्लेषण की दृष्टि से कागज उद्योग ऊर्जा की बचत, पर्यावरण संरक्षण और हरित की दिशा में विकास कर रहा है।
प्रवृत्ति की दिशा का निर्धारण
#रेतसमाधि #गितांजलिश्री #समीक्षा
‘रेत समाधि’ किसी भी दृष्टि से आसान उपन्यास नहीं है। यदि आप इसमें कोई सुदीर्घ और बाँधे रखने वाले घटनाक्रम से नियोजित कथासूत्र ढूँढेंगे तो आप को निराशा होगी। इस उपन्यास की ताक़त है इसके संवादों और वर्णन-शैली का चमत्कार जो सच में चमत्कृत करता है।
एक बूढ़ी अम्मा हैं जो अपने पति की मृत्यु के बाद खटिया पकड़ लेती हैं, और घर वालों की ओर पीठ कर लेटी रहती हैं। और फिर एक दिन सब छोड़-छार कर उड़ चलती हैं। उड़ कर जा बैठतीं हैं उस डाल पर जिसपर उनकी आज़ाद ख़याल बेटी अकेली रहती है। बेटी अम्मा की उड़ान देख कर कभी चमत्कृत होती है तो कभी आश्चर्यमिश्रित खुशी से भर जाती है, कभी कभी झुँझलाती भी है। अफ़सर बेटा, उसकी प्रवृत्ति की दिशा का निर्धारण बीवी और विदेश से आते जाते उनके बच्चे, सखा -सहचर जैसी रोज़ी जिसकी दो आत्माएँ एक ही शरीर में बसती हैं, अम्मा की इस उड़ान की कथा के अन्य मुख्य किरदार हैं। साथ ही, दहलीज़-दरवाज़ा, छड़ी, कौवा, पेड़ -पौधे, फूल, भारत से पाकिस्तान, वहाँ के शहर वहाँ के लोग, और कई सारे अन्य चरित्र उनकी इस उड़ान की कथा में तैरते, बहते हुए जुड़ते दीखते हैं। सब के सब सजीव, भाषा के साथ प्रवाहमान सारा कुछ अस्थिर, तरलता से भरा हुआ.
इस उपन्यास में भाषा अपने हर बंधन से मुक्त होती दीखती है, पर, फिर भी उसमें एक तर्कसंगत बहाव है, अव्यवस्था(chaos) नहीं है। चूँकि उपन्यास की पठनीयता का आधार उसकी भाषा और वर्णन-शैली है, कथानक नहीं, तो यह उपन्यास आपको बाँधे रखने का प्रयास नहीं करता, बल्कि पाठक को इस उपन्यास के शिल्प से जुड़ना होता है। किताब अपने रौ में बहती है, और पाठकों को भी प्रवृत्ति की दिशा का निर्धारण कथा-सूत्र के दिशा निर्धारण की फ़िक्र किए बिना इस बहाव के साथ बहने के आनंद की स्थिति तक आना होता है, तभी आप इस उपन्यास को पूरा पढ़ सकते हैं।
“रेत समाधि” एक दुरूह रचना है। बुकर पुरस्कार के कारण यह चर्चित हो गयी पर, शायद आम पाठकों के बीच यह बहुत लोकप्रिय न हो पाए। पर, क्या जो लोकप्रिय नहीं होता वह अच्छा भी नहीं होता? सिनेमा का उदाहरण लें तो अधिकांश लोकप्रिय फ़िल्में क्राफ़्ट के स्तर पर साधारण होती हैं।संगीत में भी लगभग यही स्थिति है। कई सारी बेहतरीन फ़िल्में जो कलात्मकता के स्तर पर तारीफ़ के क़ाबिल होती हैं, दर्शकों के बीच उतनी लोकप्रियता नहीं पाती। ‘रेत समाधि’ के ‘क्राफ़्ट’ को भी लोकप्रियता के पैमाने पर नहीं मापा जा सकता। ईमानदारी से कहें तो ऐसी किताबों का आनंद अनुभव करने के लिए एक पाठक के तौर पर आपको अपना ‘difficulty level’ सप्रयास बढ़ाना होता है, और यह पूर्णतः पाठक पर निर्भर करता है कि वह यह प्रयास करना चाहता है या नहीं।
‘रेत समाधि’ एक महत्वपूर्ण किताब है, जो हिंदी साहित्य को एक नयी प्रवृत्ति देती है। इस से पहले शायद रेणु जी कि ‘परती परिकथा’ एक ऐसा उपन्यास है जिसमें कथानक का परिवेश और वर्णन-शैली कथानक को मुख्य भूमिका से हटाकर उपन्यास के केंद्र में आ जाता है। पर ‘रेत समाधि’ में कथ्य का प्रवाह और इसकी वर्णन-शैली ‘परती परिकथा’ से कहीं अधिक ऐब्स्ट्रैक्ट और विस्तारित है और कथा-सूत्र अपेक्षाकृत अधिक सिमटा हुआ( finer)है।
क्या ‘रेत समाधि’ कोई संदेश देती है ? उपन्यास में संदेश का भाव नहीं दीखता, और शायद सोद्देश्य ऐसा कोई प्रयास किया भी नहीं गया है। प्रवृत्ति की दिशा का निर्धारण पर, जिन्हें यह निराशा हो कि 376 पन्ने की किताब से कोई संदेश नहीं मिलता…(!), वे इसे ‘स्त्री -स्वातंत्र्य’ के मुद्दे से जोड़कर या फिर वृद्धों की जीवन-शैली की ‘stereotyping’ वाली मानसिकता पर प्रश्नचिन्ह की तरह देख सकते हैं।