विश्व बाजार शुल्क और सीमा

ऑस्ट्रेलियाई संसद ने भारत के साथ एफटीए को मंजूरी दी
भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते (एआई-ईसीटीए) को लागू करने से पहले ऑस्ट्रेलियाई संसद द्वारा मंजूरी की आवश्यकता थी. भारत में इस तरह के समझौतों को केंद्रीय मंत्रिमंडल मंजूरी देता है. समझौते के तहत, ऑस्ट्रेलिया लगभग 96.4 प्रतिशत निर्यात (मूल्य के आधार पर) के लिए भारत को शून्य सीमा शुल्क पहुंच की पेशकश कर रहा है.
नई दिल्ली : ऑस्ट्रेलियाई संसद ने मंगलवार को भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को मंजूरी दे दी. अब दोनों देश आपसी सहमति से फैसला करेंगे कि यह समझौता किस तारीख से लागू होगा. ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज ने एक ट्वीट में यह जानकारी दी. उन्होंने लिखा, 'बड़ी खबर: भारत के साथ हमारा मुक्त व्यापार समझौता संसद से पारित हो गया है.'
भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते (एआई-ईसीटीए) को लागू करने से पहले ऑस्ट्रेलियाई संसद द्वारा मंजूरी की आवश्यकता थी. भारत में इस तरह के समझौतों को केंद्रीय मंत्रिमंडल मंजूरी देता है.
वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने एक ट्वीट में कहा, 'खुशी है कि भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते को ऑस्ट्रेलियाई संसद ने पारित कर दिया है.' उन्होंने आगे लिखा, 'हमारी गहरी दोस्ती के चलते, यह हमारे लिए व्यापार संबंधों को पूरी क्षमता के साथ आगे बढ़ाने और बड़े पैमाने पर आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिए मंच तैयार करता है.'
यहां आयोजित पत्रकार सम्मेलन में ऑस्ट्रेलिया के साथ एफटीए पर केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा, "ये ऑस्ट्रेलिया और भारत के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है, आज इस महत्वपूर्ण उपलब्धि को हासिल करने के लिए भारत और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्रियों को बधाई देना चाहता हूं. ये विश्व मंच पर साझा हितों वाले दो लोकतंत्र हैं. भारतीय रसोइयों और योग प्रशिक्षकों के लिए वीजा के साथ-साथ भरोसा है कि भारत से ऑस्ट्रेलिया जाने वाले प्रत्येक बच्चे को वहां रोजगार का अवसर दिया जाएगा. स्टेम ग्रेजुएट, डॉक्टरेट को ऑस्ट्रेलिया में चार साल का वर्क वीजा और पोस्टग्रेजुएट को तीन साल का वर्क वीजा मिलेगा.
उन्होंने कहा, "ये उस मजबूत बंधन को दर्शाता है, जो पीएम नरेंद्र मोदी ने ऑस्ट्रेलिया में सरकार के साथ बनाया है. यह भारत के बढ़ते कद और क्षमताओं की एक बड़ी मान्यता है, जो भारत के व्यवसाय दुनिया को सामान और सेवाओं दोनों में प्रदान करते हैं. हमारे फार्मा उद्योग को एक बड़ा बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि दवाएं जो पहले से ही यूएसए और यूके से कठोर अनुमोदन प्रक्रिया से गुजर चुकी हैं, उनके पास ऑस्ट्रेलियाई नियामक प्रणाली में अनुमोदन प्राप्त करने के लिए एक फास्ट ट्रैक तंत्र होगा. टेक्सटाइल सेक्टर को फायदा होगा. जेम एंड ज्वैलरी सेक्टर भी उत्साहित है, क्योंकि वे ऑस्ट्रेलिया में अपने उच्च मूल्य के आभूषण बेचने में सक्षम होंगे. शराब उद्योग ने इस व्यापार का स्वागत किया है. भारतीय शराब उद्योग बढ़ेगा. भारत के उद्योग ऑस्ट्रेलिया को शराब का निर्यात करने में सक्षम होगा."
एक अधिकारी ने कहा कि अब दोनों पक्ष आपसी सहमति से फैसला करेंगे कि यह समझौता किस तारीख से लागू होगा. सीमा शुल्क अधिकारी इस संबंध में एक अधिसूचना जारी करेंगे. एफटीए लागू होने के बाद कपड़ा, चमड़ा, फर्नीचर, आभूषण और मशीनरी सहित भारत के 6,000 से अधिक उत्पादों को ऑस्ट्रेलियाई बाजार में शुल्क मुक्त पहुंच मिलेगी.
समझौते के तहत, ऑस्ट्रेलिया लगभग 96.4 प्रतिशत निर्यात (मूल्य के आधार पर) के लिए भारत को शून्य सीमा शुल्क पहुंच की पेशकश कर रहा है. इसमें कई उत्पाद ऐसे हैं, जिस पर वर्तमान में ऑस्ट्रेलिया में चार से पांच प्रतिशत का सीमा शुल्क लगता है. वित्त वर्ष 2021-22 में भारत ने ऑस्ट्रेलिया को 8.3 अरब डॉलर का माल निर्यात तथा 16.75 अरब डॉलर का आयात किया था.
भारत में ऑस्ट्रेलियाई उच्चायुक्त बैरी ओ फैरेल ने कहा, "मैं ऑस्ट्रेलिया-भारत आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते के कानून को बिना किसी असहमति के ऑस्ट्रेलिया की संसद के दोनों सदनों से पारित होते देख रोमांचित हूं." उन्होंने आगे कहा, "ऑस्ट्रेलिया के व्यापार और पर्यटन मंत्री, डॉन फैरेल ने कहा है कि भारत के साथ घनिष्ठ आर्थिक संबंध ऑस्ट्रेलियाई सरकार की व्यापार विविधीकरण रणनीति का एक महत्वपूर्ण घटक है. ईसीटीए की गुणवत्ता, बाजार पहुंच और ऑस्ट्रेलियाई व्यवसायों के अवसर के मामले में, हमारी द्विपक्षीय आर्थिक साझेदारी के लिए भारत की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करती है."
कार्बन सीमा शुल्क
यूरोपीय संघ देशों ने प्रदूषणकारी वस्तुओं के आयात पर दुनिया का पहला कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन शुल्क लगाने का फैसला किया।2020 से, यूरोपीय संघ (EU) स्टील, सीमेंट, उर्वरक, एल्यूमीनियम और बिजली के आयात पर कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन लागत लागू करने का प्रयास कर रहा है।इस योजना के बारीक विवरण को अभी अंतिम रूप नहीं दिया गया है।इस टैरिफ को लगाने का उद्देश्य यूरोपीय उद्योग की रक्षा करना है, क्योंकि यूरोपीय बाजार कमजोर पर्यावरणीय नियमों वाले देशों में बने सस्ते सामानों से भर गया है।यूरोपीय संघ के अनुसार, यह कार्बन सीमा शुल्क यूरोपीय संघ की कंपनियों और विदेशों में समान कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) लागत लगाकर एक समान अवसर प्रदान करने का एक प्रयास है।
विश्व बाजार शुल्क और सीमा
चीनी के बंपर उत्पादन के साथ ही किसानों के बढ़ते बकाए से परेशान केंद्र सरकार चीनी का निर्यात बढ़ाने का प्रयास कर रही है। इसके तहत इंडोनेशिया और मलेशिया ने भारत से चीनी आयात करने की रुचि दिखाई है लेकिन साथ ही पॉम तेल के आयात पर शुल्क घटाने की शर्त रख दी है। इंडोनेशिया और मलेशिया लगभग 11 से 13 लाख टन चीनी का आयात कर सकते हैं, अत: पॉम तेल आयात पर शुल्क में कटौती पर खाद्य मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और वाणिज्य मंत्रालय बातचीत कर रहे हैं। चालू पेराई सीजन में अभी तक केवल 6.5 लाख टन चीनी निर्यात के सौदे हुए हैं जबकि केंद्र सरकार ने 50 लाख टन निर्यात की अनुमति दी है। केंद्र सरकार चीन, बांग्लादेश, श्रीलंका, इंडोनेशिया और मलेशिया को चीनी निर्यात की संभावनाएं तलाश रही है इसके लिए इन देशों में टीमें भेजी गई थीं। भारत से चीन ने पहले भी चीनी आयात की है। बांग्लादेश और श्रीलंका भी आयात कर रहे हैं। चीनी की उपलब्धता ज्यादा
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के अनुसार चालू पेराई सीजन 2018-19 में चीनी का कुल उत्पादन 320 लाख टन होने का अनुमान है। बकाया स्टॉक से चीनी की कुल उपलब्धता 427 लाख टन रहेगी। देश में चीनी की सालाना खपत 255 से 260 लाख टन होती है। ऐसे में घरेलू बाजार में चीनी की बंपर उपलब्धता है। विश्व बाजार में कीमतें कम होने के कारण केंद्र द्वारा रियायत के बावजूद सीमित मात्रा में ही निर्यात सौदे हुए हैं। स्रोत – आउटलुक एग्रीकल्चर, 18 जनवरी 2019
विश्व बाजार में जगह बनाने के लिए तार्किक हों खनन की कर-शुल्क दरें- नवीन जिन्दल
रायपुर – 17 नवंबर 2020 – कोविड-19 महामारी के कारण अर्थव्यवस्था पर पड़ी मार के बाद देश को आर्थिक पटरी पर वापस लाने के लिए सरकार के प्रयासों के बीच जाने-माने उद्योगपति और जिन्दल स्टील एंड पावर लिमिटेड (जेएसपीएल) के चेयरमैन नवीन जिन्दल ने सुझाव दिया है कि खनन पर कर की दरों को तार्किक बनाया जाए तो भारतीय उद्योग विश्व बाजार में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लेंगे। कर की अधिक दरों के कारण हमारे उत्पाद महंगे हो जाते हैं, जिस कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है।
जिन्दल ब्रिटेन से प्रकाशित अंतरराष्ट्रीय वित्तीय अखबार “फाइनेंशियल टाइम्स” के ग्लोबल बोर्ड रूम सत्र में “भारतः देश की अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण के लिए क्या विश्व बाजार शुल्क और सीमा सरकार जरूरी मूलभूत सुधार कर सकती है” विषय पर अपने विचार प्रकट कर रहे थे। उन्होंने कहा कि सरकार अपनी तरफ से उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए कई उपाय कर रही है और उसने अनेक प्रोत्साहन योजनाएं भी दी हैं लेकिन खनिज पदार्थों के खनन पर कर की अत्यधिक दरों के कारण हमारे उत्पाद महंगे हो जा विश्व बाजार शुल्क और सीमा रहे हैं और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि भारतीय व्यवसायी मेहनती और लगनशील हैं। देश में व्यावसायिक जोखिम उठाने वालों की कमी नहीं है। हमारी प्रतिभाएं विश्व व्यवसाय में बड़ा नाम कर रही हैं लेकिन कुछ बुनियादी समस्याएं दूर हो जाएं तो कोई शक नहीं कि भारत पूरी दुनिया के बड़े उत्पादन हब के रूप में स्थापित हो जाएगा।
जिन्दल ने कहा कि कर की दरों को तार्किक बनाने के साथ-साथ भूमि अधिग्रहण कानून को उद्योगों के अनुकूल बनाना होगा और देश में सकारात्मक व्यावसायिक वातावरण तैयार करना होगा ताकि लोग विश्व बाजार शुल्क और सीमा बढ़-चढ़कर निवेश करें जिससे रोजगार के साथ-साथ देश में संपन्नता भी आएगी। उन्होंने व्यावसायिक कोयला खनन के फैसले की सराहना करते हुए कहा कि इससे देश के विकास को पंख लगेंगे और ऊर्जा क्षेत्र में नए आयाम जुड़ेंगे।
भारत में विश्व बाजार शुल्क और सीमा बिजली की औसत खपत प्रति व्यक्ति लगभग 1000 यूनिट है जबकि अमेरिका में 20 हजार और यूरोप में 18 हजार यूनिट है। स्टील के बारे में उन्होंने कहा कि चीन प्रतिवर्ष लगभग 1000 मिलियन टन स्टील उत्पादन करता है जो भारत में मात्र 110 मिलियन टन है इसलिए हमारे देश में विकास की बहुत संभावनाएं हैं।
इस सत्र में योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा कि हमें यह देखना होगा कि अल्पकालिक आर्थिक स्लोडाउन को कैसे नियंत्रित करें। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में विकास दर 3.1 फीसदी थी जो दूसरी तिमाही में नकारात्मक रुख के साथ 23.9 फीसदी तक सिकुड़ गई। हालांकि तीसरी तिमाही में यह सिकुड़न कम होकर नकारात्मक 8.4 फीसदी रही लेकिन उम्मीद है कि चौथी तिमाही में यह रुख सकारात्मक हो जाएगा।
आज रोजगार और अन्य आर्थिक पहलुओं को देखते हुए हमारी आर्थिक विकास दर 7 फीसदी से ऊपर होनी चाहिए जिसके लिए बैंकिंग व्यवस्था को दुरुस्त करना होगा, निवेश का स्तर बेहतर बनाना होगा। पिछले 2 साल से निवेश की स्थिति नाजुक है जिसका सीधा असर उत्पादन और रोजगार के अवसरों पर पड़ रहा है। पर्यटन, रियल इस्टेट और खुदरा व्यापार को प्राथमिकता देनी होगी। हालांकि उन्होंने रिजर्व बैंक के प्रयासों की सराहना की।
इस अवसर पर फोर्ब्स मार्शल के को-चेयरमैन नौशाद फोर्ब्स ने कहा कि हमारे देश की आबादी करीब 140 करोड़ है इसलिए एक व्यापक बाजार हमारे पास है। ऐसे में तमाम सुधारों पर सभी सरकारों को साथ मिलकर काम करना होगा तभी देश की अर्थव्यवस्था जल्द ही पटरी पर वापस आ पाएगी। मेट्रोपोलिस हेल्थकेयर की प्रबंध निदेशक अमीरा शाह ने इस अवसर पर कोविड-19 नियंत्रण के उपायों पर प्रकाश डाला।
गौरतलब है कि अर्थव्यवस्था को जल्द से जल्द पटरी पर लाने और औद्योगिक उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ बाजार में उचित दर पर सामान उपलब्ध कराने के लिए फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज (फिक्की) ने नीति आयोग को एक सुझाव दिया है जिसमें खनन पर अधिक कर एवं शुल्क दरों को तार्किक बनाने के लिए जीएसटी की तर्ज पर “एकल कर व्यवस्था” लागू करने के लिए कहा गया है। फिक्की की रिपोर्ट के मुताबिक अभी खनन पर 60-64 फीसदी कर व शुल्क वसूले जा रहे हैं, जिसकी सीमा अधिकतम 40 फीसदी होनी चाहिए। उसने रॉयल्टी की दरों को भी तार्किक बनाने का सुझाव दिया है।
फिक्की की रिपोर्ट के मुताबिक एमएमआरडी एक्ट-2015 लागू होने से पहले आवंटित खदानों पर रॉयल्टी का 30 फीसदी डीएमएफ में देना अनिवार्य है जबकि इस कानून के लागू होने के बाद आवंटित खदानों पर रॉयल्टी का 10 फीसदी डीएमएफ में देना पड़ता है। इसी तरह एनएमईटी को भी रॉयल्टी का 2 फीसदी शुल्क देना होता है। उसने यह सुझाव भी दिया है कि रॉयल्टी लौह अयस्क के ग्रेड के हिसाब से तय हो न कि सर्वोत्तम श्रेणी के हिसाब से समान दर निर्धारित की जाए। निम्न श्रेणी के लौह अयस्क के बेनीफिशिएशन पर राहत मिले और रॉयल्टी औसत बिक्री मूल्य का 5 फीसदी से अधिक न हो।
सरकार इनोवेटिव लॉजिस्टिक सिस्टम से बेनीफिशिएशन करने वाली कंपनियों को 2.5 फीसदी रॉयल्टी का प्रोत्साहन दे तो निम्न श्रेणी के लौह अयस्क की खपत भी बढ़ेगी जिससे हमारे राष्ट्रीय संसाधन का समुचित उपयोग सुनिश्चित हो सकेगा।
उपरोक्त करों व शुल्कों के अलावा अलग-अलग राज्यों के भी सेश हैं। छत्तीसगढ़ में प्रति टन 11 रुपये इन्फ्रास्ट्रक्चर व 11 रुपये पर्यावरण शुल्क देय है एवं घने जंगलों में खदान होने पर 7 रुपये प्रति टन वन शुल्क की अदायगी करनी पड़ती है।