विदेशी मुद्रा व्यापारी असम

विदेशी मुद्रा व्यापारी असम
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कब हुई चाय पीने की शुरुआत, भारत में कौन लाया चाय
लाइफस्टाइल डेस्क. राजनीति में नमो चाय और रागा दूध के बीच प्रतिस्पर्धा चल रही है। लोकसभा चुनाव के लिए दोनों ही पार्टियां अपने-अपने प्रचार से लोगों को आकर्षित कर रही हैं। नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी, चाय और दूध के माध्यम से भारतीय राजनीति को नई दिशा और आयाम देना चाहते हैं। जो भी हो, खाने में राजनीति लोगों को हजम नहीं होती! ख़ासकर हमारे खाना-खज़ाना के पाठकों को इसलिए हम उन्हें सिर्फ उनकी मतलब की ही चीज़ बताएंगे।
दैनिक भास्कर डॉट कॉम इस सेक्शन के माध्यम से अपने पाठकों को दुनिया के दूसरे सबसे फेमस पेय पदार्थ यानी चाय की विभिन्न किस्मों और रोचक तथ्यों के बारे में बता रहा है। इसके साथ ही, चाय के फायदे और नुकसान दोनों के बारे में बताया जा रहा है।
इससे पहले जानते हैं चाय के बारे में कुछ रोचक तथ्य.
-चाय 300 ई. से दैनिक पेय विदेशी मुद्रा व्यापारी असम बनी हुई है।
-1610 में डच व्यापारी चाय को चीन से यूरोप ले गए और धीरे-धीरे ये पूरी दुनिया की प्रिय पेय पदार्थ बन गई।
-विश्व में चाय उत्पादन में भारत का पहला स्थान है।
- भारत में चाय पहली बार सन् 1834 में अंग्रेज लेकर आए।
- हालांकि, जंगली अवस्था में यह असम में पहले से ही पैदा होती थी।
- सन् 1815 में अंग्रेज यात्रियों का ध्यान असम में उगने वाली चाय की झाड़ियों पर गया।
- असम के स्थानीय कबाइली लोग इसका पेय बनाकर पहले से ही पीते थे।
- भारत के तत्कालिक गर्वनर जनरल लॉर्ड बैंटिक ने भारत में चाय की परंपरा शुरू करने और उसके उत्पादन की संभावना तलाश करने के लिए एक समिति का गठन किया।
-1835 में असम में चाय के बाग लगाए गए।
-पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग क्षेत्र में पैदा होने वाली चाय सबसे ज़्यादा स्वादिष्ट होती है।
-असम की चाय तेज सुगंध और रंग के लिए प्रसिद्ध है।
-2007-2008 में चाय के निर्यात से भारत को 2034 करोड़ की विदेशी मुद्रा प्राप्त हुई थी।
क्लिक कीजिए आगे की स्लाइड्स और जानिए चाय की शुरुआत की रोचक कहानी.
व्यापार घाटा, समाधान ढूंढे
बीते जून में भारत के व्यापार घाटे का रिकॉर्ड बना था, जब ये घाटा 26 बिलियन डॉलर से अधिक दर्ज हुआ। तभी उसे चेतावनी की एक घंटी बताया गया था। लेकिन जुलाई में तो बाद उससे बहुत आगे बढ़ गई। ये घाटा 31 बिलियन डॉलर से भी आगे चला गया है। इसके साथ ही एक और चिंताजनक पहलू यह रहा कि भारत के निर्यात में 12 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई। अब जबकि अमेरिका और यूरोप पर मंदी का साया गहरा रहा है, तो आशंका है कि उससे भारत के निर्यात पर और खराब असर पड़ेगा। जबकि आयात बिल को घटाने का कोई रास्ता निकलता नहीं दिख रहा है। पेट्रोलियम और अन्य कॉमोडिटी की महंगाई से पहले जितनी ही चीजें मंगाने पर ज्यादा विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ रही है। यह आसन्न बड़ी समस्या का संकेत है। यह ठीक है कि अभी भारत के पास मजबूत विदेशी मुद्रा भंडार है। इसलिए तात्कालिक कोई बड़ी चुनौती सामने नहीं आएगी। लेकिन दुनिया की तमाम संस्थाएं और विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि अभी महंगाई और मंदी का जो ट्रेंड है, उसके दीर्घकालिक होने के हालात हैं। ऐसे में भविष्य में गंभीर चुनौती अवश्य सामने आएगी।
इसलिए अभी से सतर्क होने की जरूरत है। गौरतलब है कि देश में अधिक डॉलर लाने के लिए सरकार ने जो दो उपाय घोषित किए थे (कंपनियों के डॉलर में कर्ज लेने की सीमा को दो गुना करना और अनिवासी भारतीयों की रकम आकर्षित करने के लिए बैंकों को ब्याज दर में लचीलापन अपनाने की छूट देना), उनसे कोई उल्लेखनीय लाभ नहीं विदेशी मुद्रा व्यापारी असम हुआ है। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि व्यापार घाटे को नियंत्रित करने के सख्त उपाय किए जाएं। अगर जरूरी हो, तो इस मकसद से लग्जरी गुड्स का आयात घटाने के कदम उठाए जाने चाहिए। एक बड़ी समस्या यह है कि देश में छोटे और मध्यम उद्योगों के कमजोर हो जाने के कारण छोटी चीजें भी आयात करनी पड़ रही हैं। इसका फायदा चीन को मिला है। चीन से आयात-निर्यात के जुलाई के आंकड़े अभी नहीं आए हैं। लेकिन पिछले महीनों में ट्रेंड भारत का व्यापार घाटा बढ़ने का रहा है। तो इस मसले पर समग्रता से विचार होना चाहिए, ताकि अभी से कोई ठोस हल ढूंढा जा सके।
विदेशी कर्ज : भारत का बोझ कितने नियंत्रण में
वित्त मंत्रालय में आर्थिक मामलों के विभाग ने हाल में विदेशी कर्ज को लेकर रिपोर्ट जारी की है।
सांकेतिक फोटो।
रिपोर्ट का यह 28वां संस्करण है, जिसमें 2021-22 की वर्तमान स्थिति की समीक्षा की गई है। मार्च 2022 के अंत तक भारत का विदेशी ऋण पिछले वर्ष के 573.7 बिलियन अमेरिकी डालर के आंकड़े के मुकाबले 8.2 फीसद बढ़कर 620.7 बिलियन अमेरिकी डालर हो गया था। हालांकि सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात के रूप में विदेशी कर्ज 2022 मार्च के अंत में 19.9 फीसद तक कम हो गया, जो 2021 में इसी दौरान 21.2 फीसद था। विदेशी मुद्रा भंडार 2022 मार्च अंत में पिछले वर्ष की 100.6 फीसद के आंकड़े से घटकर मामूली तौर पर 97.8 फीसद हो गया है।
विदेशी मुद्रा भंडार 2022 मार्च अंत में पिछले वर्ष की 100.6 फीसद के आंकड़े से घटकर मामूली तौर पर 97.8 फीसद हो गया है। विदेशी ऋण का 53.2 फीसद अमेरिकी डालर में बताया गया है, जबकि भारतीय रुपया में कुल ऋण का 31.2 फीसद है जो दूसरा सबसे बड़ा आंकड़ा है। लंबे समय के लिए ऋण की मात्रा 499.1 बिलियन अमेरिकी डालर अनुमानित है, जो कुल कर्ज का 80.4 फीसद है। कुल ऋण बोझ का 19.6 फीसद अल्पकालिक ऋण 121.7 बिलियन अमेरिकी डालर के आंकड़े पर पहुंचता है।
पिछले डेढ़ दशक में भारत पर विदेशी कर्ज का बोझ लगातार बढ़ा है। वर्ष 2006 में विदेशी ऋण का निरपेक्ष मूल्य 139.1 अरब अमेरिकी डालर था और अब यह 620.7 अरब अमेरिकी डालर है। हालांकि, इस दौरान भारत की जीडीपी में भी कई गुना बढ़ोतरी हुई है। सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात के रूप में बाहरी ऋण स्थायी स्तर पर बना हुआ है।
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वर्ष 2006 में भारत का जीडीपी अनुपात 17.1 फीसद था, फिर 2014 में बढ़कर 23.9 फीसद हो गया। बाद में 2022 में यह घटकर 19.9 फीसद हो गया, 2019 में अनुपात के बराबर ही। जैसे-जैसे सकल घरेलु उत्पाद (जीडीपी) बढ़ता है, अर्थव्यवस्था में बाहरी ऋण के कंपोनेंट भी बढ़ते जाते हैं। आर्थिक गतिविधि और निवेश में बढ़ोतरी होने का मतलब है कि कर्ज में वृद्धि होगी। उस ऋण का एक हिस्सा अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाजारों से प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए सकल घरेलू उत्पाद के साथ विदेशी ऋण के बढ़ने में कुछ भी असामान्य नहीं है।
ऋण चुकाने के लिए किसी देश के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार होना चाहिए। वर्ष 2008 में कुल ऋण अनुपात में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 138.0 फीसद के आंकड़े के साथ सबसे उच्च स्तर पर था। यह 2014 में गिरकर 68.2 फीसद हो गया, लेकिन बाद में 2021 में वापस 100.6 फीसद तक चला गया, जो 2022 में मामूली रूप से घटकर 97.8 फीसद हुआ। इसलिए वर्तमान में, विदेशी मुद्रा भंडार विदेशी कर्ज को चुकाने के लिए काफी है।
किसी देश का कर्ज सेवा अनुपात किसी देश द्वारा या उस देश की निर्यात आय के कारण किए गए कर्ज सेवा भुगतान (मूलधन और ब्याज दोनों) को मिलाकर होता है। भारत का कर्ज सेवा अनुपात 2006 में 10.1 फीसद था। वर्ष 2011 में यह गिरकर 4.4 फीसद और 2016 में बढ़कर 8.8 फीसद हो गया, लेकिन यह अनुपात 2022 में 5.2 फीसद तक नीचे जाने का अनुमान है। इसलिए, भारत के लिए ऋण चुकाने के लिए तत्काल कोई चुनौती नहीं है।
अल्पकालिक ऋण का एक बड़ा हिस्सा संभावित रूप से एक अर्थव्यवस्था की अपने बाहरी ऋण को चुकाने की क्षमता को कम कर सकती है। वर्ष 2006 में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अनुपात 12.9 फीसद था और कुल ऋण के लिए इसका अल्पकालिक ऋण 14.0 फीसद था। विदेशी मुद्रा भंडार के लिए अल्पकालिक ऋण और कुल ऋण के लिए अल्पकालिक ऋण साल 2013 में बढ़कर क्रमश: 33.1 फीसद और 23.6 फीसद विदेशी मुद्रा व्यापारी असम हो गया। इसके बाद यह अनुपात 2021 में घटकर 17.5 फीसद और 17.6 फीसद हो गया, इससे पहले इसने थोड़ा ऊपर 20.0 फीसद के आंकड़े को छुआ और साल 2022 में क्रमश: 19.6 फीसद हो गया।
जानकारों की राय में, फौरन चिंता करने की जरूरत नहीं है। भारत मौजूदा वैश्विक आर्थिक उथल-पुथल के दौर में अपने विदेशी ऋण के बारे में आत्मसंतुष्ट होने का जोखिम नहीं उठा सकता है। सबसे पहले, भारतीय रुपए में हाल के दिनों में अमेरिकी डालर के मुकाबले तेजी से अवमूल्यन हुआ है। यह विदेशी कर्ज के भविष्य के संचय को प्रभावित कर सकता है और भविष्य में पुनर्भुगतान का बोझ भी इससे बढ़ सकता है।