क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है

बॉन्ड क्या होता है? | Difference between bond and debenture
इस पोस्ट के माध्यम से आप जानेंगे की बॉन्ड तथा डिबेंचर में क्या अंतर होता है? (What is the Difference between bond and debenture) बॉन्ड के प्रकार (types of bond) कौन से होते हैं?
पिछली पोस्ट में आप शेयर तथा डिबेंचर में क्या अंतर होता है? जान चुके हैं| इस पोस्ट में आप बॉन्ड तथा डिबेन्चर के अंतर को जानेंगे|
तो चलिए दोस्तों!! शुरू करते हैं|
Bond VS Debenture:
शेयर तथा बॉन्ड जारी क्यों किए जाते हैं?
जब भी किसी कंपनी को धन की आवश्यकता होती है तो वह इक्विटी तथा ऋणपत्र के माध्यम से धन एकत्रित करती है|
इक्विटी में कंपनी शेयर जारी करती है तथा शेयर होल्डर कंपनी का पार्टनर बन जाता है|
जबकि ऋणपत्र में कंपनी लोन पर पैसा लेती है| ऋण पत्र में दो प्रकार के साधनों का प्रयोग किया जाता है|
1- Bonds (ऋणपत्र)
2- Debentures (ऋणपत्र)
बहुत सारे देशों में डिबेंचर तथा बॉन्ड को एक ही चीज माना जाता है| परंतु इन दोनों में अंतर होता है|
आइए पहले बॉन्ड तथा डिबेंचर (Difference between bond and debenture) के अंतर को समझते हैं| इससे आपको यह कंसेप्ट और भी अच्छी तरह क्लियर हो जाएगा|
बॉन्ड और डिबेंचर के बीच अंतर सूची: Bond and debenture difference table
चलिए! बॉन्ड तथा डिबेंचर के बीच का अंतर मैं आपको एक टेबल के माध्यम से समझाता हूं|
S.NO. | आधार | Bonds | Debentures |
1. | समय अंतराल | बॉन्ड के द्वारा कंपनी जनता से ऋण लेकर धन इकट्ठा करती है| यह धन debenture के मुकाबले थोड़ा कम समय अंतराल के लिए लिया जाता है| | बॉन्ड के द्वारा कंपनी जनता से ऋण लेकर धन इकट्ठा करती है| यह धन Bond के मुकाबले थोड़ा अधिक समय अंतराल के लिए लिया जाता है| |
2. | सुरक्षा (Security) | सामान्यतः बॉन्ड जब जारी किए जाते हैं तो वह किसी संपत्ति को गिरवी रख कर जारी किए जाते हैं| | डिबेंचर सिक्योर्ड तथा अनसिक्योर्ड दोनों तरह के हो सकते हैं| नोट:- अब अनसिक्योर्ड डिबेंचर जारी नहीं किए जाते| |
3. | ब्याज की दर (Interest Rate) | बॉन्ड का इंटरेस्ट रेट डिबेंचर के मुकाबले थोड़ा कम होता है|ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बॉन्ड में रिस्क कम होता है| रिस्क इसलिए कम होता है क्योंकि बॉन्ड सरकार द्वारा जारी किए जाते हैं| | डिबेन्चर का इंटरेस्ट रेट बॉन्ड के मुकाबले थोड़ा कम होता है| बॉन्ड के मुकाबले डिबेन्चर पर रिस्क ज्यादा होने के कारण इस पर इंटरेस्ट रेट भी ज्यादा मिलता है| |
4. | जारीकर्ता (Issued By) | बॉन्ड सरकारी एजेंसियों, वित्तीय संस्थानों, कॉरपोरेशन इत्यादि के माध्यम से जारी किया जाता है| | यह पब्लिक कंपनी द्वारा जारी किए जाते हैं| प्राइवेट लिमिटेड कंपनी , वन पर्सन कंपनी इन्हे जारी नहीं कर सकती| |
5. | भुगतान (Payment) | बॉन्ड में उपार्जित (accrued) भुगतान हो जाता है| यानी कि जब बॉन्ड का मैच्योरिटी टाइम पूरा हो जाता है तो ब्याज समेत सारा पैसा मिल जाता है| | इसमें में ब्याज की समय अवधि तय की जाती है| |
Types Of bonds
अब तक आप बॉन्ड क्या होता है? बॉन्ड किस प्रकार डिबेंचर से अलग होता है? इसके बारे में जान चुके हैं|
चलिए! अब बात करते हैं बॉन्ड कितने प्रकार के होते हैं? (types of bonds)
Floating rate bonds
सबसे पहले हम बात करते हैं – फ्लोटिंग रेट बॉन्ड की
Floating rate bond में ब्याज दर (Interest rate) हर साल चेंज हो जाता है|
जैसे की:- पहले साल 9% है तो दूसरे साल 8% या 10% हो सकता है|
Fixed rate bonds
जैसा कि इसके नाम से ही जाहिर हो रहा है फिक्स रेट बॉन्ड|
यानी कि ऐसा bond जिसमे ब्याज की दर फिक्स हो|
मुद्रास्फीति सूचकांक – Inflation Index Bond
इस प्रकार के Bond महंगाई से प्रभावित होते हैं|
यदि महंगाई बढ़ती है तो ब्याज की दर भी बढ़ जाती है|
महंगाई घटती है तो ब्याज की दर भी घट जाती है|
इसलिए इन्हें इन्फ्लेशन इंडेक्स बॉण्ड कहते हैं|
विकल्प बॉन्ड – Option Bond
ऑप्शन Bond के भी दो प्रकार होते हैं|
1- Bond with call option
2- Bond with put option
Bond with call option
इसमें कंपनी पहले ही बता देती है कि वह कभी भी बॉन्ड को redeem कर सकती है| यानी समय अवधि (Maturity Date) पूरी होने से पहले भी कंपनी बॉन्ड को वापस लेकर उस पर बना हुआ पैसा बॉन्ड होल्डर को दे देगी|
साथ ही साथ कंपनी के नियम शर्ते भी बता देती है|
नोट:- सामान्यतः कंपनियां ऐसा तब करती हैं जब ब्याज दर कम होता है| यानी कि वह कम ब्याज दर पर बॉन्ड होल्डर को उसका बकाया पैसा देकर Bond वापस ले लेती हैं|
साथ ही साथ कंपनी को यदि पैसे की जरूरत होती है तो वह उन बॉन्ड्स को दोबारा कम ब्याज दर के साथ जारी क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है कर देती है|
Bond with put option
इस प्रकार के Bond में उपभोक्ता को यह अधिकार दिया जाता है कि वह अपने बॉन्ड को कभी भी कंपनी को वापस करके अपना सारा पैसा ले सकता है|
नोट:- सामान्यतः बॉन्ड विद पुट ऑप्शन को Bond होल्डर जब वापस करता है जब उसे पैसे की अर्जेंट जरूरत होती है|
वह ऐसा तब भी कर सकता है जब उसे लगता हो कि कंपनी की स्थिति ठीक नहीं है|
निष्कर्ष: Difference between bond and debenture
इतना सब समझने के बाद में इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि इक्विटी शेयर के मुकाबले डिबेंचर में रिस्क कम होता है तथा डिबेंचर के मुकाबले Bond में रिस्क कम होता है|
दोनों प्रकार के साधनों का प्रयोग कंपनी पैसा अर्जित करने के लिए करती है|
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Cryptocurrency : क्रिप्टो में निवेश करें या स्टॉक, बॉन्ड, गोल्ड जैसे विकल्प ही बेहतर होंगे?
Cryptocurrency Investment : स्टॉक, बॉन्ड, गोल्ड जैसे कई पारंपरिक विकल्प मौजूद हैं, लेकिन अब क्रिप्टोकरेंसी भारत में भी निवेशकों को अपनी ओर खींच रही है. लेकिन हम एक बार नजर डालते हैं कि क्रिप्टोकरेंसी, पहले से मौजूद ट्रेडिशनल ऑप्शन्स से कितनी अलग है.
Cryptocurrency और निवेश के ट्रेडिशनल टूल्स में हैं कई फर्क और नफे-नुकसान. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
भारत में जब निवेश की बात आती है तो निवेशक ऐसे विकल्प चुनना चाहते हैं, जहां उन्हें एक निश्चित अवधि में कम रिस्क के साथ ज्यादा रिटर्न मिल जाए. स्टॉक, बॉन्ड, गोल्ड जैसे कई पारंपरिक विकल्प मौजूद हैं, लेकिन अब क्रिप्टोकरेंसी भारत (Cryptocurrency in India) में भी निवेशकों को अपनी ओर खींच रही है. भविष्य में क्रिप्टोकरेंसी की अहमियत को बढ़ता देखकर यहां इसकी स्टोर वैल्यू के लिए निवेश बढ़ रहा है. रिजर्व बैंक (RBI) ने 2018 में डिजिटल करेंसी फ्रॉड के डर से सभी बैंकों पर क्रिप्टोकरेंसी ट्रांजैक्शन करने पर बैन लगा दिया था. हालांकि, 2020 के मार्च महीने में सुप्रीम कोर्ट ने इस बैन को निरस्त कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट के इस रुख के बाद से भारत में क्रिप्टोकरेंसी का बड़ा बाजार तैयार किया है. लेकिन हम एक बार नजर डालते हैं कि क्रिप्टोकरेंसी, पहले से मौजूद ट्रेडिशनल ऑप्शन्स से कितनी अलग है.
क्रिप्टोकरेंसी vs स्टॉक
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क्रिप्टोकरेंसी और स्टॉक मार्केट में क्या फर्क है, इससे शुरू करते हैं. दोनों ही बाजार में अच्छे-बुरे दिन देखने को मिलते हैं. हालांकि, स्टॉक मार्केट का इतिहास लंबा है, इससे निवेशकों को आगे का रुख तय करने में मदद मिलती है, वो ट्रेंड्स और प्रिडिक्शन के लिए इन आंकड़ों की मदद लेते हैं, लेकिन क्रिप्टोकरेंसी का बाजार अभी काफी नया है. यहां उतने आंकड़ों का सहारा नहीं होता. स्टॉक मार्केट में कई तरह के रिस्क होते हैं, बिजनेस, फाइनेंशियल, बाजार में वॉलेटिलिटी यानी अस्थिरता, सरकार का नियंत्रण और नियमन वगैरह जैसी चीजें हैं, जो इस बाजार को प्रभावित करती हैं. लेकिन क्रिप्टोकरेंसी का इकोसिस्टम डिसेंट्रलाइज्ड है, यानी अधिकतर करेंसी को कोई सरकार या कोई समूह या संस्था कंट्रोल नहीं करती है.
क्रिप्टोकरेंसी vs बॉन्ड्स
बॉन्ड्स भी निवेश का एक माध्यम होते हैं. ये एक तरह से किसी कंपनी या सरकार की ओर से क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है किसी निवेशक से लिए जाने वाले लोन की तरह होते हैं. यानी कि जब कोई निवेशक किसी कंपनी से या सरकार से कोई बॉन्ड खरीदता है तो वो कंपनी या सरकार उसके कर्ज में आ जाती है. जब तक वो कंपनी या सरकार उस निवेशक का लोन नहीं चुकाती है, तब तक उसे इसपर ब्याज मिलता रहता है. बॉन्ड के साथ रिस्क वाली बात यह है कि अगर कंपनी दिवालिया हो जाती है तो एक तो उसे ब्याज मिलना बंद हो जाएगा, दूसरा उसका मूलधन भी डूब जाएगा.
क्रिप्टोकरेंसी vs फॉरेक्स
फॉरेक्स या फॉरेन एक्सचेंज, में निवेशक विदेशी करेंसीज़ में निवेश करते हैं. क्रिप्टोकरेंसी दुनिया भर में कई जगहों पर पेमेंट के तौर पर स्वीकार की जाने वाली करेंसी है और फॉरेक्स में निवेशक भी ग्लोबल बाजार से डील करते हैं. लेकिन जो बड़ा फैक्टर है वो अलग-अलग देशों की आर्थिक स्थिति. निवेशकों को किसी भी फॉरेन करेंसी से अच्छा रिटर्न मिलने की संभावना तभी होती है, जब उस देश की अर्थव्यवस्था अच्छा प्रदर्शन कर रही हो, इसी आधार पर यह देखा जा सकता है कि उन्हें कितना लाभ हो रहा है. ऐसे में क्रिप्टोकरेंसी के मुकाबले यह माध्यम थोड़ा रिस्की है.
क्रिप्टोकरेंसी vs सोना-चांदी
सोना-चांदी खरीदना हमारे देश की पसंद के अलावा एक परंपरा क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है भी रही है. आज के वक्त में लोग इन बहुमूल्य धातुओं में विशेषतौर पर आभूषण वगैरह खरीदने के लिए लिहाज से निवेश करते हैं. ऐसे में इनकी कीमत तय करने में मार्केट सेंटिमेंट यानी बाजार की धारणा सबसे बड़ी भूमिका निभाता है. अगर रिस्क की बात करें तो इनमें जो निगेटिव पॉइंट है वो है- पोर्टेबिलिटी, इंपोर्ट टैक्स और इनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना. वहीं, क्रिप्टोकरेंसी के साथ ऐसा कुछ नहीं है. ये डिजिटल करेंसी है, न इसे कहीं से लाना-ले जाना है, न ही आपको इसपर कोई इंपोर्ट टैक्स देना है. इसकी सिक्योरिटी भी डिजिलाइज्ड है, ऐसे में इन कारणों से क्रिप्टो, मेटल्स के मुकाबले ज्यादा आसान निवेश माध्यम है.
क्रिप्टोकरेंसी vs फिक्स्ड डिपॉजिट
फिक्स्ड डिपॉजिट तब सही होते हैं, जब आपको कोई लॉन्ट टर्म इन्वेस्टमेंट करना हो. इसमें आपको रिटर्न के लिए मैच्योरिटी तक इंतजार करना पड़ता है. अगर आप रिटर्न के लिए लंबा इंतजार नहीं करना चाहते या एफडी का विकल्प छोड़ रहे हैं तो आप क्रिप्टोकरेंसी में निवेश कर सकते हैं. यहां बाजार में तेजी-से उतार-चढ़ाव आता है और आप तेजी से फैसले ले सकते हैं. यहां बाजार के गिरने पर आप अपना पैसा निकाल सकते हैं. लेकिन एक बात जो जाननी चाहिए वो ये कि एफडी को माइन करने या जेनरेट करने के लिए किसी को अलग से कुछ नहीं करना पड़ता. बस एफडी बनवाई और मैच्योरिटी तक भूल गए. लेकिन क्रिप्टोकरेंसी को सर्कुलेशन में लाने के लिए माइनिंग की जाती है. निवेशकों को इनपर अपना वक्त देना होता है क्योंकि बाजार में काफी अनिश्चितता होती है.
निवेश के ट्रेडिशनल टूल्स में लोग सहज महसूस कर सकते हैं क्योंकि इनकी आदत हैं. वहीं क्रिप्टोकरेंसी का बाजार नया है और इसके अपने अलग फायदे और नुकसान हैं, ऐसे में आपको समझदारी से अपना चुनाव करना चाहिए.
WATCH VIDEO : कॉफी एंड क्रिप्टो : क्रिप्टोकरेंसी में अच्छा क्या है? किस में कर सकते हैं ट्रेडिंग?क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है
पीएम मोदी के कार्यकाल में भारत सरकार का कर्ज 49% बढ़ा, अभी 82 लाख करोड़ रुपये बकाया
वित्त मंत्रालय के आंकड़ों पर गौर करें तो जून, क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है 2014 में सरकार पर कुल कर्ज 54,90,763 करोड़ रुपये था, जो सितंबर 2018 में बढ़कर 82,03,253 करोड़ रुपये हो गया।
पीएम मोदी के साढ़े चार साल के कार्यकाल में सरकार का कर्ज 49 फीसदी बढ़ा है. (फोटो सोर्स: रॉयटर्स)
केंद्र की मोदी सरकार लोकसभा चुनावों से पहले कई लोक-लुभावन घोषणाओं के ऐलान का मन बना रही है। लेकिन, दूसरी ओर राजकोषीय घाटा भी उसके परेशानी का कारण बना हुआ है। एक रिपोर्ट के क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है मुताबिक पीएम मोदी के साढ़े 4 साल के कार्यकाल में भारत सरकार पर 49 फीसदी का कर्ज बढ़ा है। शुक्रवार को केंद्र सरकार के कर्ज पर स्टेटस रिपोर्ट का आठवां संस्करण जारी किया गया। रिपोर्ट के मुताबिक बीते साढ़े चार सालों में सरकार पर कर्ज 49 फीसदी बढ़कर 82 लाख करोड़ रुपये हो गया है। वित्त मंत्रालय के आंकड़ों पर गौर करें तो जून, 2014 में सरकार पर कुल कर्ज 54,90,763 करोड़ रुपये था, क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है जो सितंबर 2018 में बढ़कर 82,03,253 करोड़ रुपये हो गया।
कर्ज में बढ़ोतरी की वजह पब्लिक डेट में 51.7 फीसदी की बढ़ोतरी है, क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है जो बीते साढ़े चार सालों में 48 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 73 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया। मोदी सरकार के कार्यकाल में मार्केट लोन भी 47.5 फीसदी बढ़कर 52 लाख करोड़ रुपये से अधिक रहा। जून 2014 के आखिर तक गोल्ड बॉन्ड के जरिए कोई डेट नहीं रहा। वित्त मंत्रालय ने कहा कि भारत सरकार सालाना स्टेटस रिपोर्ट के जरिए केंद्र पर कर्ज के आंकड़ों को पेश करती है। यह प्रक्रिया 2010-11 से जारी है।
स्टेटस रिपोर्ट में कहा गया है,” केंद्र सरकार की पूरी देनदारी मिडियम टर्म में गिरावट की ओर बढ़ रही है। सरकार अपने राजकोषीय घाटे को खतम करने के लिए मार्केट-लिंक्ड बारोइंग्स की मदद ले रही है।” रिपोर्ट के मुताबिक सरकार का डेट प्रोफाइल सस्टेनेबिलिटी पैरामीटर्स के आधार पर ठीक है और सुधार का क्रम जारी है।
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सरकार की सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड से 16,000 करोड़ रुपये जुटाने की तैयारी
नई दिल्ली.
केंद्र सरकार जल्द ही सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड जारी कर सकती है. वित्त मंत्रालय ने ग्लोबल स्टैंडर्ड के हिसाब से सॉवरेन ग्रीन बांड जारी करने की रूपरेखा को अंतिम रूप दे दिया है. सूत्रों ने बुधवार को यह जानकारी दी है. सरकार चालू वित्त वर्ष 2022-23 की दूसरी छमाही यानी अक्टूबर से मार्च के बीच ग्रीन बांड जारी करके 16,000 करोड़ रुपये जुटाना चाहती है. यह दूसरी छमाही के लिए उधार कार्यक्रम का एक हिस्सा है.
सूत्रों ने कहा कि रूपरेखा तैयार है और इसे जल्द ही मंजूरी दी जाएगी. बजट में ऐसे बांड जारी करने की घोषणा की गई थी. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस साल अपने बजट भाषण में घोषणा की थी कि सरकार ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए संसाधन जुटाने की खातिर सॉवरेन ग्रीन बांड जारी करने का प्रस्ताव रखती है. उन्होंने बजट 2022-23 में कहा था, ”इस राशि को सार्वजनिक क्षेत्र की उन परियोजनाओं में लगाया जाएगा, जो अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को कम करने में मदद करती हैं.”
बजट में किया था ऐलान
सरकार की चालू वित्त वर्ष की अक्टूबर-मार्च अवधि के दौरान कुल 5.92 लाख करोड़ रुपये का उधार लेने की योजना है. 2022-23 के बजट में सरकार ने 14.31 लाख करोड़ रुपये के सकल बाजार लोन का अनुमान लगाया था. इसमें से उन्होंने इस वित्त वर्ष के दौरान 14.21 लाख करोड़ रुपये उधार लेने का फैसला किया है, जो बजट अनुमान से 10,000 करोड़ रुपये कम है.
विदेशी निवेशकों को लुभाना चाहती है सरकार
इस ग्रीन बॉन्ड के जरिए सरकार का मकसद विदेशी निवेशकों को लुभाने की है. अभी कई घरेलू निवेशक और विदेशी ऐसे हैं, जो बॉन्ड में पैसा लगाना चाहते हैं. ऐसे क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है निवेशक खासतौर पर ग्रीन सिक्योरिटीज में पैसा लगाना चाहते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ने ग्रीन बॉन्ड जारी करने के लिए विश्व बैंक और दानिश फर्म CICERO Shades of Green के साथ मिलकर काम पूरा कर लिया है. इस बॉन्ड को लेकर निवेशक भी खासा उत्साहित नजर आ रहे हैं.