व्यापार सत्र और उनके कार्यक्रम

कार्यक्रम: जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्री सिंह ने कहा बालिका रेस्क्यू मामले में सुनिश्चित करें कि जांच की प्रक्रिया हो सही
व्यवहार न्यायालय परिसर में किशोर न्याय अधिनियम लैंगिक अपराध संरक्षण अधिनियम और अनैतिक मानव व्यापार अधिनियम को लेकर कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला का उद्घाटन जिला एवं सत्र न्यायाधीश शशि भूषण प्रसाद सिंह ने दीप प्रज्वलित कर किया। मौके पर जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्री सिंह ने कहा की किशोर न्याय के अंतर्गत आने वाले सभी हित धारक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, आप इसे अपना दायित्व समझकर ईमानदारी पूर्वक निर्वाह करें।
जैसा कि देखा गया है कि अभी व्यापार सत्र और उनके कार्यक्रम हाई कोर्ट का एक निर्णय आया है, जिसमें हनिफउर्र रहमान बनाम राज्य सरकार है। जिसमें पाया गया कि सही जांच नहीं होने के कारण देह व्यापार में फंसी लड़की को रेस्क्यू कर बालिका गृह भेजी जाती है और फिर वहां से कोई मां बनकर उसे लेकर चली जाती है और फिर वापस कोठे में रख देती है। ऐसा इसलिए होता है कि सही जांच नहीं होती है। सही जांच के अभाव में उसकी मां जो असल में उसकी मां नहीं रहती है। इसलिए ऐसे मामले में सुनिश्चित करें कि जांच की प्रक्रिया सही हो। एडीजे टू इसरार अहमद ने कहा कि संस्थानों, संप्रेक्षण घर या दत्तक केंद्र से जब भी बालक या बालिका को मुक्त किया जाता है तो उनके वास्तविक माता-पिता या संरक्षक की जांच अवश्य करें।
सभी हितधारक की भूमिका महत्वपूर्ण, आप इसे दायित्व समझकर निभाएं
लैंगिक शोषण मामलों का त्वरित निष्पादन होना चाहिए
एडीजे सप्तम संजय कुमार ने अनैतिक मानव व्यापार पर चर्चा करते हुए कहा कि इस अधिनियम में लैंगिक शोषण के लिए बालक या बालिका को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने पर रोक है। ऐसे कुरीतियों को रोकने के लिए न्यायपालिका और पुलिस प्रशासन दोनों की जिम्मेदारियां हैं। न्यायालय से यह अपेक्षा की जाती है कि ऐसे मामलों का निष्पादन त्वरित की जाय। एडीजे षष्ठम पाठक आलोक कौशिक ने पॉक्सो अधिनियम पर चर्चा करते हुए कहा कि किसी बालक या बालिका को प्रलोभन देकर इसमें संलिप्त किया गया हो या उसका सहमति हो तब भी इस सहमति को नहीं माना जाता है।
बच्चों का ब्यान सब इंस्पेक्टर रेंक के अधिकारी ही ले सकते हैं। कहा कि व्यापार सत्र और उनके कार्यक्रम पॉक्सो अधिनियम की पीड़िता को मुआवजा का भी प्रावधान है। किशोर ने परिषद की सदस्य अफसरी अल्ताफ ने परिषद में होने वाली कार्रवाई की प्रक्रियाओं के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए कहा कि किशोर न्याय परिषद, किशोर से बदला लेने की नहीं बल्कि बच्चों को बदलने की सोच रखती है। ताकि उनका भविष्य उज्जवल हो सके। विधि विवादित बच्चे संरक्षण में रहते हैं
जिला बाल संरक्षण पदाधिकारी भास्कर कश्यप ने कहा कि सभी विधि विवादित बच्चे देखभाल एवं संरक्षण वाले होते हैं, लेकिन सभी देखभाल व संरक्षण वाले बच्चे विधि विवादित नहीं हो सकते हैं। मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी प्रदीप कुमार चौधरी ने स्वागत भाषण देकर सबका स्वागत किया। वहीं धन्यवाद ज्ञापन परिषद की प्रधान मजिस्ट्रेट राधा कुमारी ने की। मंच संचालन भगवान पाठक ने किया। मौके पर एडीजे चतुर्थ नवीन ठाकुर, एडीजे पंचम कमलेश चंद्र मिश्र, एसीजेएम पंचम जेपी कश्यप, षष्ठम तरूण झा, एसडीजेएम श्वेता ग्रेवाल, आशीष नारायण, निशित देव, मिथिलेश कुमार, प्रणव कुमार, रोहित रंजन, सरोज कुमार, सीएस इंद्रजीत प्रसाद, मुख्यालय डीएसपी अजय कुमार, एडीसीपी शशि कुमार, महिला थानाध्यक्ष प्रमिला कुमारी आदि मौजूद थी।
मेले और त्यौहार
यह मेला कुमारसेन के पास भरारा गांव में आयोजित किया जाता है और सभी जातियों और पंथों के लोग इसमें भाग लेते हैं। यह मेला ज्येष्ठ की १ (मई) से व्यापार सत्र और उनके कार्यक्रम प्रारम्भ होता है, यह प्राचीन समय से मनाया जा रहा है। देवता कोटेश्वर मेले में लाये जाते है और उनके सम्मान के रूप में बकरों को बलिदान किया जाता है। मेला सांस्कृतिक और मनोरंजक है और नाटी नृत्य किया जाता है। लोग ‘हिंडोला’ सवारी का भी आनंद लेते हैं।
भोज फेयर
नवंबर में रोहडू तहसील के गांव गुमान में यह मेला आयोजित किया जाता है। देवता बन्सर, परशुराम और किलाबारु के सम्मान में तीन दिन के लिए आयोजित किया जाता हैं। देवताओं की पूजा करने के अलावा नाटी नृत्य लोगों द्वारा किया जाता है। मेला एक विशाल भीड़ को आकर्षित करती है ।
लावी मेला
रामपुर का लावी मेला जिला और राज्य का सबसे महत्वपूर्ण मेला है। यह 25 मार्च कार्तिक (नवंबर) पर आयोजित एक वाणिज्यिक मेला है। ऐसा कहा जाता है कि मेले पूर्वी बुशहर राज्य और तिब्बत के बीच व्यापार संधि पर हस्ताक्षर करने से संबंधित था। किन्नौर के चरवाहों ने सर्दियों के शुरु होने से पहले गर्म स्थान पर पलायन किया और रस्ते में रामपुर रुकते थे। ऊनी वस्तुएं, सूखे फल और औषधीय जड़ी-बूटियों को लोगों द्वारा खरीदा जाता है और मैदानों के व्यापारियों और खाद्यान्न, कपड़े और बर्तन बेचते हैं। यह एक बहुत पुराना मेला है और पूरी तरह से माल की बिक्री और खरीद से संबंधित है। ‘नृत्य’ और सांस्कृतिक शो मुख्य आकर्षण हैं ।
महासु जतार
यह मेला तीसरे मंगलवार को मसासू गांव के निकट शिमला-कोटखेहा से लगभग 6 किमी दूर बेसाखा (मई) में दो दिनों के लिए मनाया जाता है। यह मेला बहुत पुराना है और पड़ोसी इलाकों से इकट्ठा होकर दुर्गा देवी मंदिर के सामने एक बड़ी सभा द्वारा आयोजित किया जाता है। यह माना जाता है कि बडोली के एक राणा महासु के पास चकराथ में रहते थे। उन्होंने वहां दुर्गा मंदिर का निर्माण किया था अपने जागीर के उन्मूलन के बाद राणा ने गांव छोड़ दिया और महासु के शिलाहारों ने अपने ही गांव में दुर्गा मंदिर का निर्माण किया और इस अवसर को मनाने के लिए उन्होंने मेले शुरू कर दिया। यहाँ नाटी नृत्य और लोक गीतों का प्रदर्शन किया जाता है। तीरंदाजी व्यापार सत्र और उनके कार्यक्रम खेल मनोरंजन का मुख्य आकर्षण है मेले के अंत में एक बकरी का बलिदान किया जाता है।
पत्थर का खेल हालोग
यह मेला तहसील शिमला के हालोग गांव में आयोजित किया गया है। मेला कार्तिक के महीने (नवंबर) में दिवाली के दूसरे दिन आयोजित किया जाता है। प्राचीन काल में मानव बलि, प्रचलन में थी और हर साल देवी काली को उस स्थान पर पेश की जाती थी जहां मेले का आयोजन किया जाता है। यह भी कहा जाता है कि इस दिन राज्य के एक शासक की विधवा ने ‘सती’ का प्रदर्शन किया और ऐसा करने से पहले उसने मानव बलिदान करने का आदेश दिया था। मानव बलिदान एक समय के बाद बंद कर दिया गया था दो समुदायों के बीच निष्पक्ष रूप से पत्थर फेकना मुख्य आकर्षण है और प्रतिभागियों के शरीर पर चोटों से होने वाले घावों से जो भी रक्त निकलता है वह एकत्र किया जाता है और काली को पेश किया जाता है। पत्थर फेंकने के अलावा ‘हिंदोला’ की सवारी का आनंद लिया जाता है।
सिपी मेला
यह मेला हर वर्ष सिप देवता के सम्मान में ज्येष्ठ की १ (मई) पर मशोबा के नीचे सिहपुर में आयोजित किया जाता है। यह बहुत पुराना मेला है और कोट के राणा मुख्य आगंतुक थे। आसपास के क्षेत्रों के हजारों लोग मेले में भाग लेते हैं एक बकरी को देवता के सम्मान में बलिदान दिया जाता है तीरंदाजी खेल कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों, विविध शो, ‘कार्य’, प्रदर्शनकारियों व्यापार सत्र और उनके कार्यक्रम व्यापार सत्र और उनके कार्यक्रम के जादू, जादूगर और कलाबाज के अलावा दर्शकों के लिए अतिरिक्त मनोरंजन प्रदान करते हैं।
ग्रीष्म ऋतु समारोह
यह हर साल शिमला में मई महीने में आयोजित किया जाता है। यह स्थानीय लोगों के प्रदर्शन, स्कूल के बच्चों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम और कुछ प्रसिद्ध व्यक्तित्व द्वारा दैनिक प्रदर्शन के साथ विविध सांस्कृतिक कार्य है। यह प्रसिद्ध रिज मैदान पर आयोजित किया जाता है।
शीतकालीन खेल महोत्सव
शिमला में आइस स्केटिंग सर्दियों के दौरान खेल-प्रेमियों के लिए एक बड़ा आकर्षण है। शिमला एशिया में एकमात्र ऐसा स्थान है, जिसे प्राकृतिक आइस-स्केटिंग रिंक का आनंद मिलता है और प्रतिभागियों और दर्शको को समान रूप से एक साथ बनाए रखता व्यापार सत्र और उनके कार्यक्रम व्यापार सत्र और उनके कार्यक्रम है। आइस स्केटिंग सामान्यतः दिसंबर की शुरुआत में शुरू होती है और फरवरी तक चलती है। साफ़ आसमान और कम तापमान निरंतर सत्रों की श्रृंखला प्रदान करते हैं जमीन पर जमे हुए बर्फ के आधार पर सुबह और शाम को हर दिन दो सत्र होते हैं। स्कैंडल प्वाइंट के निकट ,नगर भवन पर लटकने वाला गुब्बारा सिग्नल के रूप में काम करता है, चाहे स्केटिंग उस दिन आयोजित की जाए या नहीं। इसकी सदस्यता पूर्ण, छोटे और यहां तक कि एकल सत्रों के लिए भी उपलब्ध है। स्केट्स रिंक पर उपलब्ध हैं। फैंसी ड्रेस कार्निवल, ‘जिमखानस’ आइस हॉकी और डांस हर सत्रों को उत्साहित करते हैं।
रोहडू मेला
यह मेला देवता शिक्रू के सम्मान में पब नदी के तट पर 9 अप्रैल और 10 वीं वैशाख (अप्रैल) पर रोहडू में आयोजित किया जाता है पास के गांव के लोग देवता के भक्त हैं। यह बहुत पुराना मेला है और देवता की सर्वोच्चता को मनाने के लिए आयोजित किया जाता है। यह मेला भी व्यावसायिक है और नाटी नृत्य और सांस्कृतिक गतिविधियों के प्रदर्शन के आलावा, व्यापार भी खूब किया जाता है। मेले में भाग लेने वाले पुरुषों और महिलाओं को अपने सर्वश्रेष्ठ पोशाक में भाग लेते हैं।
महानगर उद्योग व्यापार समिति युवा मंच ने किया पौधारोपण
वाराणसी। शनिवार को विश्व पर्यावरण दिवस के शुभ अवसर पर महानगर उद्योग व्यापार समिति युवा मंच के द्वारा शगुन लॉन दनियालपुर के पास पौधारोपण किया गया। कार्यक्रम में महानगर उद्योग व्यापार समिति युवा मंच के अध्यक्ष मनीष चौबे मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए।
मनीष चौबे ने बताया कि विश्व पर्यावरण दिवस के दिन एक पेड़ जरूर लगाना चाहिए एक पेड़ सौ पुत्रों के समान है। हम सभी के जीवन में पौधे लगाना अब अत्यधिक जरूरी हो गया है क्योंकि कुछ दिन पूर्व में हम सभी ने देखा कि किस तरह लोग ऑक्सीजन के लिए अपनी जान तक गंवा दिए। इसलिए आज इस मौके पर हम सभी एक पौधे अपने नाम से या अपने बच्चों के नाम से जरूर लगाना चाहिए। इस दौरान आम, नीम, गुड़हल, पाकड़, बरगद दर्जनों छायादार वृक्ष लगाया गया
कार्यक्रम में प्रमुख रूप से महानगर उपाध्यक्ष सोमनाथ विश्वकर्मा, युवा महामंत्री राहुल मेहता, राजन जयसवाल, सुनील कश्यप, शिव शंकर विश्वकर्मा, गुलशन कनौजिया, विश्वास जायसवाल, धनराज लालवानी विवेक सिंह, राजीव यादव, अनिल कुमार सुरेंद्र मौर्य, नीरज चौबे, ऋषभ श्रीवास्तव, संदीप गुप्ता , राजेंद्र मौर्या, राम नरेश यादव, आशीष यादव, अवधेश कुशवाहा इत्यादि लोग उपस्थित रहे।
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कृषक व्यापार समूह : बिनौला उत्पाीदकों के लिए आजीविका
बिनौला उत्पादन एक श्रम गहन उद्योग है जिसमें विशेष रूप से पौधे के विपुंसीकरण और परागण के दौरान व्यापार सत्र और उनके कार्यक्रम प्रति एकड़ औसतन 10 कुशल कर्मियों की आवश्यकता होती है। इसमें पर्याप्त निवेश लगता है और लाभ प्राप्त होने में लगभग 10 महीने लग जाते हैं। इससे लाभ प्राप्त करने के लिए प्रौद्योगिकी संबंधी उचित हस्तक्षेपों के साथ-साथ प्रबंध और प्रशिक्षण की भी आवश्यकता है। इस उद्देश्य से महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एमपीयूएटी), उदयपुर, राजस्थान में 'एकीकृत फार्मिंग प्रणाली और प्रौद्योगिकी मॉडलों के माध्यम से आदिवासी बहुल क्षेत्रों में आजीविका तथा पोषणिक सुरक्षा' विषय पर राष्ट्रीय कृषि नवोन्मेष परियोजना (एनएआईपी) की उप परियोजना के अंतर्गत एक पहल की गई। एनएआईपी के प्रयासों से ढुंगरिया एग्रो प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड (डीएपीसीएल), मेवाड़, ढुंगरपुर की एक उत्पादक कंपनी के रूप में स्थापना करके उसका पंजीकरण किया गया।
डीएपीसीएल से सम्बद्ध किसान
स्वयं सहायता के सिद्धांतों का उपयोग करके डीएपीसीएल ने 41 कृषक व्यापार समूह (एफबीजी) सृजित किए जिसमें 622 सदस्य थे। इन्हें बचत करने में सुविधा प्रदान की गई तथा विपणन की शक्ति सृजित करने के लिए किसानों द्वारा उपजाई गई अतिरिक्त सामग्री को समूहित किया गया। इस संस्था ने ढुंगरपुर जिले के 10 गांवों में प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण के सत्र आयोजित किए। राजस्थान के बांसवाड़ा और ढुंगरपुर जिले में उत्पादक कंपनियों (पीसी) ने किसानों को एक्सेस विकास सेवाओं से जोड़ा और उनके साथ सहयोग किया। पीसी का मुख्य व्यापार सत्र और उनके कार्यक्रम उद्देश्य फार्म उपज को एक साथ खरीदना और उसका विपणन करना है ताकि किसानों को बेहतर लाभ मिल सके।
कृषि कंपनी के साथ साझेदारी
डीएपीसीएल ने बिनौले की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए हिम्मतनगर, गुजरात में स्थित एक कृषि कंपनी से समझौते पर हस्ताक्षर किए। इससे लागत संबंधी पारदर्शिता सुनिश्चित हुई, भुगतान संबंधी अनुसूची तय की गई, किसानों को नियमित तकनीकी सहायता प्रदान की गई और निवेशों की सकल लागत कम करने के लिए सामूहिक युक्ति का उपयोग किया गया। इस साझेदारी के पश्चात् किसानों की संख्या तथा डीएपीसीएल के बिनौला उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। वर्ष 2010-11 में केवल 42 किसान इस संस्था से सम्बद्ध थे लेकिन 2012-13 में यह संख्या बढ़कर 287 पहुंच गई। डीएपीसीएल का लक्ष्य 2014-15 में 1000 किसानों को जोड़ना है।
दोनों पक्षों को लाभ
डीएपीसीएल के राजस्व का मुख्य स्रोत सामूहिक निवेश आपूर्ति, बिनौले का उत्पादन, सामूहिक विपणन और तकनीकी फार्म सेवाएं प्रदान करना है। व्यापार संबंधी इन गतिविधियों के माध्यम से कंपनी किसानों को निरंतर वांछित सेवाएं उपलब्ध कराती है और परिचालन लागत को कम करते हुए उनके लाभ को बढ़ाने का प्रयास करती है। डीएपीसीएल का टर्न ओवर व्यापार सत्र और उनके कार्यक्रम 2010-11 में 9.51 लाख रु., 2011-12 में 25.78 लाख रु. था जो 2012-13 में बढ़कर 66.44 लाख रु. हो गया। विभिन्न कृषि कंपनियों से साझेदारी के माध्यम से किसान बीजोत्पादन के वांछित निवेशों की बचत करते हैं। उन्हें ये निवेश बाजार मूल्य से कम से कम 20 प्रतिशत कम दर पर प्राप्त होते हैं। एमपीयूएटी द्वारा ढुंगरपुर जिले में इस मॉडल् के सफल कार्यान्वयन और एक्सेस विकास सेवाओं से किसानों की आमदनी बढ़ी है। वर्ष 2010-13 से एक किसान की शुद्ध औसत आय 1 हैक्टर भूमि से 15168 रु. हुई है। यह आय एनएआईपी के कार्यान्वयन के पूर्व होने वाली शुद्ध आय की तुलना में 39 प्रतिशत अधिक है। 2014-15 तक इसके 19,846 रु. होने की संभावना है।
हरिलाल ने उत्पादक कंपनी से हाथ मिलाया
हरि लाल (52) वतादा गांव के हैं और पिछले 10 वर्षों से बिनौला उत्पादन के कार्य में लगे हैं। वे 2010-11 में डीएपीसीएल में आए। इसके बाद से उन्हें अनेक लेन-देनों में पारदर्शिता बढ़ने के कारण लाभ हुआ है। पहले जो वे खर्च करते थे उसका अधिकांश भाग अब डीएपीसीएल द्वारा वहन किया जा रहा है। प्राप्त होने वाले प्रमुख लाभों में शामिल है : अदायगी की निर्धारित शर्तें, परिवहन लागत में कमी तथा ओटाई की लागत अब डीएपीसीएल वहन कर रही है। कृषि विश्वविद्यालय की सहायता से कपास के प्लॉटों की गहन निगरानी भी की जा रही है।
स्वयं सहायता के सिद्धांतों पर कार्य करना
मंडल के निदेशक, अध्यक्ष और एफबीजी के सचिव प्रौद्योगिकी एजेंटों के रूप में कार्य कर रहे हैं तथा सामूहिक निवेश आपूर्ति और माल के विपणन के लिए कृषि विज्ञान केन्द्र जैसी संस्थाओं व उत्पादक एजेंटों के बीच सेतु के रूप में कार्य कर रहे हैं। यह परियोजना चार पिछड़े जिलों नामत: उदयपुर, बांसवाड़ा, ढुंगरपुर और सिरोही में 10 समूहों में 78 गांवों में चल रही है। परियोजना का उद्देश्य एकीकृत फार्मिंग प्रणाली मॉडलों तथा व्यावहारिक प्रौद्योगिकियों को अपनाकर तीन वर्ष में किसानों की आय को दोगुना करना है। इसे निजी क्षेत्र में पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध कराके बाजार से भी जोड़ा गया है ताकि किसानों को मोल-तोल करने में सहायता मिले और उत्पादक विपणन कंपनी के अंतर्गत स्वयं सहायता के सिद्धांतों को अपनाते हुए किसानों के समूह को कृषक व्यापार केन्द्रों के रूप में संगठित करते हुए उनकी उपज का बेहतर मूल्य दिलाया जा सके।
(स्रोत: एनएआईपी – एमपीयूएटी उदयपुर तथा डीएमएपीआर आणंद से प्राप्त इनपुट सहित मास मीडिया परियोजना डीकेएमए)