मुद्रा विनिमय पर व्यापार

विनिमय दर को प्रभावित करने वाले कारक - Factors Affecting Exchange Rate
विनिमय दर को प्रभावित करने वाले कारक - Factors Affecting Exchange Rate
एक स्वतंत्र विनिमय बाजार में विदेशी विनिमय दर प्रायः विनिमय की साम्य दर से भिन्न होती है विनिमय दर की दीर्घकालीन प्रवृत्ति स्थिरता की होने पर भी अल्प काल में उच्चावचन होते ही रहते है जिनका आन्तरिक अर्थ व्यवस्था, विशेष रूप से उत्पादन, रोजगार तथा राष्ट्रीय आय की स्थिति पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है विनिमय दर में होने वाले उच्चावचनों के अनेक कारण हो सकते हैं जो अलग-अलग अथवा एक साथ तीन भागों में बांटे जा सकते है।
(i) विदेशी मुद्राओं की मांग और पूर्ति की स्थिति,
(ii) चलन सम्बन्धी दशाएं तथा
(क) विदेशी मुद्राओं की मांग तथा पूर्ति की स्थिति
विदेशी मुद्राओं की मांग तथा पूर्ति में परिवर्तन विनिमय दर को बहुत अधिक प्रभावित करते है। पूर्ति की तुलना में विदेशी विनिमय की माग अधिक होने पर विनिमय दर में वृद्धि की सम्भावना होती है। इसी प्रकार विदेशी विनिमय की पूर्ति इसकी मांग की अपेक्षा अधिक होने पर विनिमय दर में कमी हो सकती है अल्प काल में विदेशी विनिमय की मांग तथा पूर्ति पर निम्नलिखित बातों का प्रभाव पड़ता है।
(i) विदेशी व्यापार की स्थिति यदि किसी देश के निर्यात अधिक और आयात कम होते है तो विदेशों में उस देश की मुद्रा की मांग उसकी पूर्ति से अधिक होती है और स्वदेश में विदेशी मुद्रा की माग कम तथा पूर्ति अधिक होती है जिसके परिणामस्वरूप इस देश की मुद्रा को विदेशी मुद्राओं में मूल्य बढ़ जाता है।
इसके विपरीत, देश के आयात जब निर्यात की अपेक्षा अधिक होते हैं तो विदेशी विनिमय की मांग पूर्ति से अधिक होती है तथा विदेशी मुद्राओं का मूल्य देश की मुद्रा की तुलना में बढ़ जाता है। इस प्रकार व्यापार सन्तुलन की स्थिति विदेशी मुद्राओं की मांग तथा पूर्ति को प्रभावित करके विनिमय दर को भी प्रभावित करती है।
(ii) सट्टा बाजार तथा स्टॉक एक्सचेन्ज का प्रभाव भविष्य मे विनिमय दर में परिवर्तन की आशा से जब किसी देश के लोग अन्य देशों में स्टॉक, शेयर, अथवा प्रतिभूतियां खरीदने लगते हैं तो उनके भुगतान के लिए विनिमय की मांग बढ़ जाती है तथा विदेशी मुद्राओं के मूल्य में वृद्धि होती है।
इसके विपरीत जब विदेशी किसी देश में स्टॉक शेयर तथा प्रतिभूतियां खरीदने लगते है तो देश की मुद्रा का मूल्य ऊंचा उठ जाता है। इसी प्रकार ऋण, ब्याज तथा लाभांश के लेन-देन और सढ़े के रूप में होने वाले लेन-देन का भी विदेशी विनिमय की मांग तथा पूर्ति पर प्रभाव पड़ता है और विनिमय दर में परिवर्तन हो जाता है।
(iii) बैंकिंग प्रभाव विनिमय दर में परिवर्तन देश की बैंकिग नीति के भी परिणाम हो सकते है ऊँची ब्याज दर विदेशी पूंजी को आकर्षित करती है जिसके फलस्वरूप विदेशी मुद्राओं की पूर्ति मांग से अधिक हो जाती है तथा उनका देश की मुद्रा में मूल्य गिर जाता है। अन्य देशों की अपेक्षा किसी देश में बैंक दर नीची है तो इस देश की पूजी अन्य देशों में जाने लगेगी विदेशी मुद्रा की मांग अधिक होने पर विनिमय दर गिर जायेगी।
(iv) मध्यस्थों की कियाएँ अथवा अंतरपणन कियाए जैसा कि पहले बताया गया है। अन्तरपणन कियाओं के अन्तर्गत मध्यस्थों द्वारा सस्ते बाजारों में विदेशी मुद्राए खरीदकर महगे बाजार में बेची जाती है। सस्ते विनिमय बाजारों में विदेशी विनिमय की मांग अधिक होती है तथा महंगे बाजार में पूर्ति अधिक ये कियाए विदेशी विनिमय की मांग तथा पूर्ति को प्रभावित करके विनिमय दर पर प्रभाव डालती है।
(v) विदेशी विनियोग, ऋण तथा भुगतान: जब किसी देश द्वारा अन्य देश में पूंजी निवेश किया जाता है अथवा ऋण दिये जाते है अथवा अन्य किसी प्रकार के भुगतान किये जाते है तो विदेशी मुद्रा की पूर्ति बढ़ जाने के कारण देशी मुद्रा की विनिमय दर में वृद्धि की सभावना उत्पन्न होती है। स्थिति इसके विपरीत होने पर विनिमय दर में कमी हो सकती है।
उपर्युक्त कारणों के अतिरिक्त कुछ अन्य कारण भी विदेशी मुद्रा की मांग तथा पूर्ति को प्रभावित करते हैं, जैसे वास्तविक राष्ट्रीय आय देश की उत्पादन शक्ति एवं लागत मूल्य इत्यादि ।
(ख) चलन सम्बन्धी दशाएं
देश की चलन स्थिति का विनिमय दर पर प्रभाव पड़ता है। मुद्रा स्फीति की स्थिति उत्पन्न होने पर मुद्रा की आंतरिक कय शक्ति गिर जाती है. अर्थात कीमत स्तर ऊंचा हो जाता है जिसके फलस्वरूप देश के निर्यात कम हो जाते हैं तथा आयात में वृद्धि होती है। विदेशी मुद्राओं की मांग अधिक हो जाने पर उनका मूल्य बढ़ जाता है तथा स्वदेशी मुद्रा की विनिमय दर गिर जाती है।
मुद्रा संकुचन का इसके विपरीत प्रभाव होगा तथा विनिमय दर बढ़ने लगेगी। कभी-कभी कोई देश स्वयं ही वैधानिक रूप से अपनी मुद्रा का अवमूल्यन कर देता है जिससे विनिमय दर कम हो जाती है।
यदि देश में स्थायी सरकार है, शान्ति और सुरक्षा की समुचित व्यवस्था है, सरकारी नीति निष्पक्ष है, औद्योगिक सम्बन्ध अच्छे है तो ऐसे देश में अधिक विदेशी पूंजी का आगमन होगा तथा इससे विदेशी व्यापार का भी विस्तार होगा। ऐसी दशा में विनिमय दर इस देश के पक्ष में होगी। जिन देशों में निरन्तर गृह-क्लेश, युद्ध एवं राजनीतिक अस्थिरता एवं अशान्ति रहती है उनकी साख पर अन्य देशों को विश्वास नहीं रहता,
उन्हें विदेशी पूंजी अथवा ऋण प्राप्त नहीं होते जिससे उनकी आर्थिक स्थिति अस्थिर और संकटमय हो जाती है और उनकी मुद्राओं की विनिमय दर गिरने लगती है।
उपर्युक्त प्रभावों के अंतर्गत अल्प काल में विदेशी विनिमय दर में निरन्तर उच्चावचन होते रहते है। गिरती हुई विनिमय दर देश के लिए प्रतिकूल होती है. और बढ़ती हुई विनिमय दर देश के लिए अनुकूल होती है विनिमय दर अनुकूल होने की दशा में विदेशों से आयात करना सस्ता होता है परिणामस्वरूप आयात बढ़ जाते हैं और वस्तुओं की कीमत गिरने लगती है परन्तु यह स्थिति अधिक समय तक नहीं रह पाती। आयात सस्ते होने पर देश में उत्पादन महंगा पड़ता है। अतः उद्योग बंद होने लगते हैं. बेरोजगारी फैलती है और निर्यात गिर जाते हैं। इन परिस्थितियों में व्यापार संतुलन देश के विपक्ष में हो जाता है और विनिमय दर में गिरावट आरम्भ हो जाती है। प्रतिकूल विनिमय दर की दशा में निर्यातों में वृद्धि मुद्रा विनिमय पर व्यापार होती है, व्यापार संतुलन अनुकूल होने लगता है तथा विनिमय दर बढ़ने लगती है। इस प्रकार दीर्घ काल में विनिमय दर की प्रवृत्ति विनिमय की साम्य दर के आस पास रहने पर होती है परन्तु अल्प काल में अस्थिरता बनी रहती है।
शुरुआती कारोबार में रुपया हुआ मजबूत, जानिये डॉलर के मुकाबले क्या है कीमत
विदेशी बाजारों में अमेरिकी डॉलर के कमजोर होने और भारतीय बाजारों में विदेशी पूंजी की आवक के बीच रुपया शुक्रवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले शुरुआती कारोबार में 10 पैसे मजबूत होकर 81.54 के भाव पर पहुंच गया। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर
रुपया 10 पैसे मजबूत होकर 81.54 प्रति डॉलर पर पहुंचा
मुंबई: विदेशी बाजारों में अमेरिकी डॉलर के कमजोर होने और भारतीय बाजारों में विदेशी पूंजी की आवक के बीच रुपया शुक्रवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले शुरुआती कारोबार में 10 पैसे मजबूत होकर 81.54 के भाव पर पहुंच गया।
अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया डॉलर के मुकाबले 81.59 के भाव पर खुला और थोड़ी ही देर में यह और तेजी के साथ 81.54 के स्तर तक भी पहुंच गया। इस तरह पिछले बंद भाव के मुकाबले रुपये में 10 पैसे की मजबूती दर्ज की गई। (भाषा)
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अमेरिका ने भारत को करेंसी मॉनिटरिंग लिस्ट से निकाला, इसका मतलब क्या है?
अमेरिका की वित्त मंत्री जेनेट येलेन ने अपनी भारत यात्रा के साथ शुक्रवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ बैठक की. इसी दिन अमेरिका के वित्त विभाग ने यह कदम उठाया है.
अमेरिका के वित्त विभाग ने इटली, मेक्सिको, थाईलैंड, वियतनाम के साथ भारत को प्रमुख व्यापारिक भागीदारों की मुद्रा निगरानी सूची (Currency Monitoring List) से हटा दिया है. भारत पिछले दो साल से इस सूची में था.
अमेरिका की वित्त मंत्री जेनेट येलेन ने अपनी भारत यात्रा के साथ शुक्रवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ बैठक की. इसी दिन अमेरिका के वित्त विभाग ने यह कदम उठाया है.
वित्त विभाग ने संसद को अपनी छमाही रिपोर्ट में कहा कि चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, मलेशिया, सिंगापुर और ताइवान सात देश हैं, जो मौजूदा निगरानी सूची में हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन देशों को सूची से हटाया गया है उन्होंने लगातार दो रिपोर्ट में तीन में से सिर्फ एक मानदंड पूरा किया है.
क्या है करेंसी मॉनिटरिंग लिस्ट?
मुद्रा निगरानी सूची व्यवस्था के तहत प्रमुख व्यापार भागीदारों के मुद्रा को लेकर गतिविधियों तथा वृहत आर्थिक नीतियों पर करीबी नजर रखी जाती है.
मुद्रा निगरानी सूची के तहत किसी देश को रखने का अर्थ यह होगा कि वह देश दूसरों पर अनुचित लाभ प्राप्त करने के लिए अपनी मुद्रा के मूल्य को कृत्रिम रूप से कम कर रहा है. ऐसा इसलिए है क्योंकि मुद्रा के कम मूल्य से उस देश से निर्यात लागत में कमी आएगी.
इस रिपोर्ट में, अमेरिकी ट्रेजरी विभाग ने जून 2022 तक की चार तिमाहियों के दौरान प्रमुख अमेरिकी व्यापारिक साझेदारों की नीतियों की समीक्षा की और उनका आकलन किया, जिसमें माल और सेवाओं में लगभग 80 प्रतिशत अमेरिकी विदेशी व्यापार शामिल था.
भारत के लिए इसका मतलब क्या है?
अमेरिका की मुद्रा निगरानी सूची में किसी देश को 'करेंसी मैनिपुलेटर' माना जाता है. एक करेंसी मैनिपुलेटर एक डेजिगनेशन है जो अमेरिकी सरकार के अधिकारियों द्वारा उन देशों पर लागू किया जाता है जो व्यापार लाभ के लिए "अनुचित मुद्रा प्रथाओं" में संलग्न हैं.
ग्रांट थॉर्नटन भारत में पार्टनर और लीडर (वित्तीय सेवा जोखिम) विवेक अय्यर ने कहा कि अब मुद्रा मैनिपुलेटर के रूप में टैग हुए बिना अमेरिका की मुद्रा निगरानी सूची से हटाने का मतलब है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) अब विनिमय दरों को प्रबंधित करने के लिए मजबूत उपाय कर सकता है. यह बाजार के नजरिए से एक बड़ी जीत है और वैश्विक विकास में भारत की बढ़ती भूमिका को भी दर्शाता है."
बता दें कि, रुपये में गिरावट के बीच विनिमय दरों को प्रबंधित करने के लिए, आरबीआई ने हाल ही में अतिरिक्त इनफ्लो के समय डॉलर खरीदने और आउटफ्लो के समय डॉलर बेचने जैसी कार्रवाई की.
चीन अभी भी निगरानी में
रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन अपने विदेशी विनिमय हस्तक्षेप को प्रकाशित करने में विफल रहने और अपनी विनिमय दर तंत्र में पारदर्शिता की कमी के चलते वित्त विभाग की नजदीकी निगरानी में है. चीन के साथ ही जापान, कोरिया, जर्मनी, मलेशिया, सिंगापुर और ताइवान भी इस लिस्ट में बने हुए हैं.
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डेली करंट अफेयर्स for UPSC – 12 November 2022
प्रश्न स्वामित्व योजना के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- इसका उद्देश्य शहरी क्षेत्रों की प्रवासी आबादी को भूमि स्वामित्व दस्तावेज़ प्रदान करना है।
- यह लोगों को ऋण लेने के लिए संपार्श्विक के रूप में अपनी संपत्ति का मुद्रीकरण करने में मदद करेगा।
- यह कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत आता है।
ऊपर दिए गए कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
- कथन 1 गलत है: स्वामित्व का अर्थ ग्रामीण क्षेत्रों में सुधारित प्रौद्योगिकी के साथ गांवों का सर्वेक्षण और मानचित्रण है। केंद्रीय क्षेत्र की योजना का उद्देश्य कानूनी स्वामित्व अधिकारों (संपत्ति कार्ड/टाइटल डीड) के साथ, कुछ राज्यों में आबादी वाले इलाकों में घर रखने वाले ग्रामीण परिवारों के मालिकों को ‘अधिकारों का रिकॉर्ड’ प्रदान करना है।
- कथन 2 सही है: योजना के उद्देश्य इस प्रकार हैं:
- ग्रामीण नियोजन के लिए सटीक भूमि अभिलेखों का निर्माण और संपत्ति संबंधी विवादों को कम करना।
- ग्रामीण भारत में नागरिकों को ऋण लेने और अन्य वित्तीय लाभों के लिए वित्तीय संपत्ति के रूप में अपनी संपत्ति का उपयोग करने में सक्षम बनाकर वित्तीय स्थिरता लाना।
- संपत्ति कर का निर्धारण, जो सीधे उन राज्यों में ग्राम पंचायतों को प्राप्त होगा जहां इसे हस्तांतरित किया गया है या अन्यथा, राज्य के खजाने में जोड़ा जाएगा।
- GIS मानचित्रों का उपयोग करके एक बेहतर गुणवत्ता वाली ग्राम पंचायत विकास योजना (GPDP) तैयार करने में सहायता करना।
प्रश्न भारतीय जैविक डेटा केंद्र (IBDC) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- IBDC विभिन्न जीवन विज्ञानों के साथ-साथ जीनोमिक्स में अनुसंधान करता है।
- IBDC विभिन्न अनुसंधान प्रयोगशालाओं के लिए कोविड-19 न्यूक्लियोटाइड डेटा सबमिशन सेवाओं की मेजबानी करता है।
- IBDC विभिन्न निजी अनुसंधान प्रयोगशालाओं और भारत के सीरम संस्थान की एक पहल है।
ऊपर दिए गए कथनों में से कौन-सा/से सही नहीं है/हैं?
- कथन 1 गलत है: हाल ही में केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री ने भारतीय जैविक डेटा केंद्र (IBDC) नामक जीवन विज्ञान डेटा के लिए भारत का पहला राष्ट्रीय भंडार समर्पित किया है। भारत सरकार के बायोटेक-प्राइड दिशानिर्देशों के अनुसार, IBDC को भारत में सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित अनुसंधान से उत्पन्न सभी जीवन विज्ञान डेटा को संग्रहीत करने के लिए अनिवार्य है।
- कथन 2 सही है: IBDC का कोविड पोर्टल कोविड-19 न्यूक्लियोटाइड अनुक्रमों को प्रस्तुत करने के साथ-साथ फ़ाइलोजेनेटिक विश्लेषण सहित कोविड-19 अनुक्रम वेरिएंट की पहचान और एनोटेशन के लिए डेटा विश्लेषण करने के लिए सेवाएं प्रदान करता है। IBDC सबमिट किए गए कोविड-19 अनुक्रम डेटा के लिए INSDC (इंटरनेशनल न्यूक्लियोटाइड सीक्वेंस डेटा कंसोर्टियम) एक्सेस नंबर प्रदान करेगा।
- कथन 3 गलत है: यह जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) के माध्यम से भारत सरकार (GOI) द्वारा समर्थित है। IBDC की स्थापना रीजनल सेंटर ऑफ बायोटेक्नोलॉजी (RCB), फरीदाबाद में राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC), भुवनेश्वर में डेटा ‘डिजास्टर रिकवरी’ साइट के साथ की गई है।
प्रश्न मोटे अनाज के मुद्रा विनिमय पर व्यापार संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिएः
- मोटे अनाज का ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होते है।
- मोटे अनाज को केवल उष्णकटिबंधीय जलवायु में सीमांत भूमि पर उगाया जाता है।
- भारत वैश्विक मोटे अनाज उत्पादन का आधे से अधिक उत्पादन करता है।
- भारत के शीर्ष मोटे अनाज उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और बिहार हैं।
ऊपर दिए गए कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
- कथन 1 सही है: मोता अनाज पोषक तत्वों से भरपूर, ग्लूटेन मुक्त होता है, और इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है। वे मधुमेह रोगियों के लिए रक्त शर्करा के स्तर को स्थिर करने और इंसुलिन संवेदनशीलता को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं। इसके अलावा, मोटे अनाज आहार फाइबर, प्रोटीन, आवश्यक अमीनो एसिड, विटामिन और खनिजों का एक अच्छा स्रोत है।
- कथन 2 गलत है: मोटे अनाज छोटे बीज वाली वार्षिक घास है जिसकी मुख्य रूप से समशीतोष्ण, उपोष्णकटिबंधीय और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में शुष्क क्षेत्रों में सीमांत भूमि पर खेती की जाती है। भारत में आम तौर पर उपलब्ध मोटे अनाज रागी (Finger millet), सामा (Little millet), ज्वार (Sorghum), बाजरा (Pearl millet) और वरिगा (Proso millet) हैं। वे शुष्क और कम उपजाऊ क्षेत्रों में विकसित हो सकते हैं, और उन्हें कम उर्वरक की आवश्यकता होती है। मोटे अनाज जलवायु के अनुकूल फसलें हैं
- कथन 3 गलत है: वर्ष 2020 में लगभग 41 प्रतिशत की अनुमानित हिस्सेदारी के साथ भारत दुनिया में मोटे अनाज के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है। भारत ने 2021-22 में मोटे अनाज उत्पादन में 27 प्रतिशत की वृद्धि देखी, जबकि पिछले साल में मोटे अनाज उत्पादन में वृद्धि हुई थी।
- कथन 4 गलत है: भारत के शीर्ष मोटे अनाज के उत्पादक राज्य राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात और मध्य प्रदेश हैं। मोटे अनाज के निर्यात का हिस्सा कुल मोटे अनाज उत्पादन का लगभग 1% है। भारत से मोटे अनाज के मूल्य वर्धित उत्पादों का निर्यात नगण्य है।
प्रश्न पश्मीना शॉल के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिएः
क्या है अमेरिका की करेंसी मॉनीटरिंग लिस्ट जिसमें से हटाया गया है भारत को?
अमेरिका (US) के राजकोष विभाग की रिपोर्ट में जारी मुद्रा निगरानी सूची (Currency Monitoring List) में इस बार भारत (India) का नाम हटा दिया गया है. इस सूची में दुनिया के उन देशों के मुद्रा नीतियों की समीक्षा की जाती है. इस सूची में भारत सहित चार देशों को हटाया गया है. आर्थिक विशेषज्ञों में भारत के लिए इसे अच्छी खबर माना है. इससे भारत और अमेरिका के बीच के व्यापारिक संबंधों में मजबूती तो आएगी ही, भारतीय रिजर्व बैंक भी रुपये की मुद्रा विनयम दर मुद्रा विनिमय पर व्यापार को नियंत्रित करने के लिए कई कदम उठा सकेगा.
- News18Hindi
- Last Updated : November 15, 2022, 11:10 IST
हाइलाइट्स
मुद्रा निगरानी सूची हर छह महीने में जारी होती है.
भारत का इस सूची से हटना एक अच्छी खबर है.
इससे रुपये कीमत काबू करने में आसानी होगी.
इस समय दुनिया के सभी देश आर्थिक चुनौतियों से निपटने में उलझे हुए हैं. कोविड-19 महामारी के कमजोर पड़ने और रूस यूक्रेन संघर्ष के चलते दुनिया की अर्थव्यवस्था में अमेरिका (USA) और ब्रिटेन जैसे बड़े बड़े देश तक डगमगाते दिख रहे हैं. ऐसे में अमेरिका के आर्थिक नीतिगत फैसलों पर दुनिया की निगाहें होना स्वाभाविक है. हाल ही में अमेरिका ने टेजरी विभाग ने मुद्रा निगरानी सूची (Currency Monitoring List) जारी की है जिसमें इस बार भारत का नाम नहीं (India) हैं. साल में दो बार अमेरिकी रोजकोष विभाग द्वारा वहां की संसद में पेश की जाने वाली रिपोर्ट में यह सूची जारी की जाती है. आखिर इस सूची में नाम होने का क्या मतलब है, उससे हटने के क्या फायदे-नुकसान है और क्या उसका कोई बहुत बड़ा प्रभाव भी पड़ेगा या नहीं.
क्या है इस सूची का मतलब
किसी देश के करेंसी मॉनिटरिंग लिस्ट में शामिल होने का मतलब यह है कि वह देश कृत्रिम तरीके से अपने देश की मुद्रा मुद्रा विनिमय पर व्यापार की कीमत कम कर रहा है जिससे वह दूसरें की से गलत फायदा उठा सके. ऐसा इसलिए है क्योंकि मुद्रा का मूल्य कम होने से उस देश के लिए निर्यात की लागत कम हो मुद्रा विनिमय पर व्यापार जाएगी और उससे होने वाला मुनाफा बढ़ जाएगा. जबकि सामान खरीदने वाले दश को उतनी ही कीमत देनी पड़ेगी.
क्या यह इस रिपोर्ट का मकसद
अमेरिका का राजकोष विभाग हर छह महीने में वैश्विक आर्थिक विकास और विदेशी विनियम दरों की समीक्षा पर निगरानी के आधार पर अपनी रिपोर्ट में इसकी चर्चा करता है. इसके साथ ही वह अमेरिकी के 20 सबसे बड़े व्यापारिक व्यवसायी साझेदारों की मुद्रा संबंधी गतिविधियों की समीक्षा भी करता है. इस बार इस सूची में से भारत के अलावा इटली, मैक्सिको, वियतनाम और थाईलैंड को भी हटाया गया है.
इस सूची के जारी होने का समय
रोचक बात यह है कि इस रिपोर्ट को उसी दिन जारी किया गया है कि जब अमेरिका की राजकोष सचिव जेनट येलन भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की बीच दिल्ली में मुलाकात हुई थी. इस मुलाकात के दौरान दोनों नेताओं ने भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंधों को मजबूत करने के लिए काम करने पर जोर दिया था. यह मुलाकात ऐसे समय पर हुई है जब भारत जी20 देशों की अध्यक्षता संभालने जा रहा है.
इस सूची का संबंध मुद्रा नीति (Currency Policy) में अनुचित हेरफेर करने वाले देशों की पहचान करना है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
भारतीय रिजर्व बैंक को फायदा
इस सूची में नाम आने पर देश को मुद्रा में हेरफेर करने वाला देश माना जाता है जो अपने देश को अवैध तरीका से व्यापारिक फायदा पहुंचाने के लिए गलत मुद्रा तरीके अपनाते हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि इससे अब भारतीय रिजर्व बैंक को विनिमय दरों को नियंत्रित करने के लिए कड़े कदम उठाने की सहूलियत मिल सकेगी और भारत पर हेरफेर करने वाले देश का तमगा भी नहीं लगेगा.
बढ़ेगी भारतीय अर्थव्यवस्था की साख
माना जा रहा है कि इससे रुपये को मजबूती हासिल करने में मदद मिल सकती है. बाजारों में इसका फायदा देखने को मिले विदेशी निवेशकों में भारत में निवेश करने के लिए विश्वास बढ़ेगा. और विश्व स्तर पर भारत की आर्थिक साख मजबूत होगी.इसके साथी जी 20 देशों की अध्यक्षता मिलने और सूची से नाम हटने दोनों से देश की अर्थव्यवस्था को फायदा मिलेगा.
इस सूची का संबंध मुद्रा नीति (Currency Policy) में अनुचित हेरफेर करने वाले देशों की पहचान करना है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
तीन मानदडों का आधार
इस रिपोर्ट में बताया गया है मुद्रा निगरानी सूची में अभी चीन, जापान, कोरिया, जर्मनी, मलेशिया, सिंगापुर और ताइवान शामिल हैं. रिपोर्ट के मुताबिक यदि कोई देश इस सूची की तीन मानदंडों में से दो भी पूरा करता है तो उस देश को इस सूची में शामिल कर लिया जाता है. एक बार सूची में नाम आ जाने पर वह इसमें कम से कम लगातार दो रिपोर्ट तक शामिल रहता है.
अमेरिका के ट्रेड फैलिटेशन एंड ट्रेड एनफोर्समेंट एक्ट 2015 के अनुसार अगर कोई देश तीन मानदडों में से दो को भी पूरा करता है तो वह इस सूची में शामिल करने के योग्य हो जाता है. पहला, उस देश का अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार अधिशेष कम से कम 15 अरब डॉलर का होना चाहिए. दूसरा, सामग्री चालू खाता अधिशेष जीडीपी का कम से कम 3 प्रतिशत हो, जिसका आंकलन राजकोष विभाग अपने वैश्विक विनिनय दर आंकलन ढांचे के तहत करे. तीसरा, एक साल में कम से कम 8 बार विदेशी मुद्रा की खरीदी में एक तरफा दखल हो और यह खरीद जीडीपी की कम से कम दो प्रतिशत हो. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत इन तीन में से केवल की मानदंड पूरा करता है.
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