खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है?

EXAMINATION BUZZ | READ and LEARN
यहां आप राजनीतिक विज्ञान, इतिहास, भूगोल और वर्तमान मामलों और नौकरियों के समाचार से संबंधित उच्च गुणवत्ता वाली सामग्री प्राप्त कर सकते हैं.
यह ब्लॉग खोजें
सामाजिक समूह का वर्गीकरण
सामाजिक समूह का वर्गीकरण
सामाजिक समूह का अर्थ-सामाजिक समूह से तात्पर्य कुछ व्यक्तियों में शारीरिक समीपता होना नहीं हैं, बल्कि समूह की प्रमुख विशेषता कुछ व्यक्तियों द्वारा एक-दूसरे से सम्बन्ध स्थापित करना अथवा एक-दूसरे के व्यवहारों को प्रभावित करना है। मैकाइबर के अनुसार-"सामाजिक समूह से हमारा तात्पर्य मनुष्य के किसी भी ऐसे संग्रह से है,जो एक-दूसरे से सामाजिक सम्बन्धों द्वारा बंधे हो।"
सामाजिक समूह के निर्माण का आधार-सामाजिक समूह के निर्माण के आधार भिन्न-भिन्न है। समूह निर्माण के आधार में हम लिंग-भेंद, व्यक्तिगत रुचि, मनोवृत्तियां, धर्म य व्यवसाय आदि का उल्लेख कर सकते हैं। सामाजिक समूह का वर्गीकरण-विभिन्न समाज शास्त्रीयों ने समूह का जो वर्गीकरण किया है, उसका वर्णन इस प्रकार है। सामान्य वर्गीकरण-सामाजिक समूहों का वर्गीकरण विभिन्न आधारों पर किया जा सकता है।
जैसे-1. स्वार्थों की प्रक्रिया, 2. संगठन की मात्रा, 3. स्थायित्व की मात्रा, 4 सदस्यों के बीच आपसी सम्बन्धों के प्रकार आदि।
(1) मैपाइनर एवं पेज द्वारा किया गया वर्गीकरण-मैकाइवर एवं पेज ने समस्त समूहों को तीन वर्गों में विभक्त किया है (क) क्षेत्रीय समूह-इन समूहों में सदस्यों के सम्पूर्ण हित व्याप्त होते हैं तथा इनका एक निश्चित क्षेत्रीय आधार होता है। सभी समुदाय इस श्रेणी में आते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य जाति, गांव, नगर और राष्ट्र इसी प्रकार के समूहों के उदाहरण है। (ख) खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है? हितों के प्रति चेतना एवं असंगठित समूह-इस कोटि में सामाजिक वर्ग, जाति, प्रतिस्पर्धा वर्ग, शरणार्थी समूह, राष्ट्रीय समूह. प्रजातीय समूह आते हैं इनमें स्वार्थो के प्रति चेतना अवश्य होती है किन्तु इनका संगठन निश्चित प्रकार का होता है भीड़ एवं श्रोता समूह तो हितों के लिए चिंतन आवश्यक होते हैं, किन्तु इनका संगठन तो पूर्णतया अस्थिर ही होता है। (ग) हितों के प्रति चेतना एवं संगठित समूह-इसमें आपने परिवार पड़ोस, खेल का समूह आदि को सम्मिलित किया है। इसी प्रकार के दूसरे राज्य, चर्च, आर्थिक व श्रमिक समूह आदि होते हैं जिसमें सदस्य संख्या कहीं अधिक होती है किन्तु फिर भी इन दोनों प्रकार के समूहों में स्वार्थ एवं हितों के साथ ही एक निश्चित संगठन भी पाया जाता है। इस प्रकार मैकाइवर और पेज के अनुसार सामाजिक समूहों के वर्गीकरण में सामाजिक सम्बन्धों की प्रगति मुख्य आधार होता है।
(2) गिलिन और गिलिन के अनुसार वर्गीकरण-इनका वर्गीकरण इस प्रकार है (क) रक्त सम्बन्धी समूह-इनके अन्तर्गत आपने परिवार एवं जाति को सम्मिलित किया है। (ख) शारीरिक विशेषता-सम्बन्धी समूहः-जैसे लिंग, आयु, प्रजाति आदि। (ग) क्षेत्रीय समूह-जैसे जनजाति, राज्य एवं राष्ट्र। (घ) अस्थाई समूह-जैसे भीड़भाड़ एवं श्रोता समूह। (ङ) स्थाई समूह-जैसे खानाबदोश जत्थे, गांव एवं कस्बे तथा शहर इस कोटि में आते हैं। (च) सांस्कृतिक समूह-इसमें आपने विभिन्न आर्थिक, धार्मिक, शैक्षिक, राजनीतिक एवं मनोरंजन समूह को सम्मिलित किया गया है।
(3) सुमन के अनुसार समूहों का वर्गीकरण-सुमनर ने समूहों को निम्न दो भागों में वर्गीकृत किया है- (क) अन्तः समूह- यह एक ऐसी समिति का रूप होता है जिसके प्रति हम परस्पर अधीनता दृढ़ता वफादारी, मित्रता एवं सहयोग की भावना का अनुभव करते हैं। इसके सदस्य अपने को हम का भावना से सम्बन्धित मानते हैं और अपने को मेरा समूह,हमारा उद्देश्य आदि शब्दों के द्वारा सम्बोधित करते हैं। इनके बीच आमने-सामने के सम्बन्धों की प्रधानता होती है। अन्तःसमूह के सदस्य अपने प्रति बड़ी सहानुभूति एवं प्रेम की भावना का प्रदर्शन करते हैं, जबकि अपने बाहर के व्यक्तियों को प्रायः गन्दे एवं तुच्छ नामों से सम्बोधित करते हैं।
(क) वाह्य समूह-यह एक ऐसी समिति मानी जाती है जिसके प्रति हम घृणा, नापसंदगी भय, स्पर्धा तथा अरुचि आदि की भावना प्रदर्शित करते हैं। इस समूह की एक आवश्यक विशेषता अन्तर की भावना होती है किन्तु एक यात यहाँ ध्यान रखने योग्य है कि जो एक व्यक्ति के लिए अन्तः समूह है वही दूसरे के लिये बाह्य समूह है। इसकी सीमायें स्थान और समय के लिए है। दूसरी जनजाति बाह्य समूह है जबकि राष्ट्र की बात करते समय एक राष्ट्र के सभी सदस्य अंतः समूह एवं दूसरे राष्ट्र के लोग बाह्य समूह कहें जायेंगे।
4. कूले का वर्गीकरण-चार्ल्स कुले ने सामाजिक समूह का सबसे अच्छा और वैज्ञानिक व्याकरण प्रस्तुत किया है। कूले ने समूहों तथा (2) द्वितीयक समूह। को दो वर्गों में विभाजित किया है- प्राथमिक समूह।
(1) प्राथममिक समूह(Primary Groups): चार्ल्स कूले ने प्राथमिक समूहों की व्याख्या करते हुए लिखा है कि "प्राथमिक समूहों से मेरा तात्पर्य उन समूहों से है जिसकी विशेषता, घनिष्ठ आमने-सामने के सम्बन्ध और सहयोग से होती है।" इसके सभी सदस्यों में हम की भावना की प्रधानता होती है। इसे सदस्य की संख्या द्वैतीयक समूह के सदस्यों से कम होती है जिसके कारण पड़ोस तथा क्रीड़ा समूह को प्राथमिक समूह कहकर पुकारा है। इन समूहों का सम्बन्ध व्यक्ति के हास्य काल से अधिक होता है। यही कारण है कि व्यक्तित्व के विकास में इनका योगदान प्रशसनीय रहता है। ये बच्चे में स्नेह त्याग, सहानुभूति ईमानदारी एवं स्वामिभक्ति की भावना का सूत्रपात करते है। इसलिए कुल ने इन्हें मानव स्वभाव की वृक्षारोपिणी' कहा है कूले इन समूहाँ को सार्वभौमिक मानते हैं क्योंकि परिवार, पड़ोस तथा खेल के समूह अस्तित्व प्रत्येक स्थान एवं काल में मिलता है। इस समूह की प्रकृति स्थाई होती है, सदस्यों की संख्या कम होती है, आमने-सामने के सम्बन्ध एवं निष्ठा होती है। इसके अतिरिक्त इस प्रकार के समूहों की आन्तरिक विशेषताओं के समान व्देश्य, वैयक्तिक सम्बन्ध सर्वांगीण सम्बन्धों की स्वाभाविकता को सम्मिलित कर सकते हैं।
(2) द्वैतीयक समूह (Secondary Group) :- इनसे कूले का तात्पर्य ऐसे समूहो से हैं। जिसमें प्राथमिक समूह से भिन्न विशेषतायें होती है इसके सदस्यों में पारस्परिक घनिष्ठता, प्राथमिक समूहों से कहीं कम होती है क्योंकि इसके सदस्य दूर दूर फैले हो सकते हैं जो संचार के सालों से एक-दूसरे के साथ सम्पर्क स्थापित करते है इसके अतिरिक्त इसके सदस्यों की संख्या कहीं अधिक होती है। इनमें भारी संख्या, अल्प अवधि, कम घनिष्ठता, शारीरिक दूरी की प्रधानता पायी जाती है । कुले ने लिखा है कि यह एक ऐसा समूह है जिसमें घनिष्ठता का अभाव होता है और आमतौर से अधिकतर अन्य प्राथमिक एवं अर्ध प्राथमिक विशेषताओं का भी अभाव रहता है। चूँकि इसका निर्माण विशेष हितों या स्वार्थों की पूर्ति के लिए किया जाता है और सदस्यों के सम्बन्ध आंशिक होते हैं इसीलिए इन्हें विशेष स्वार्थ समूह भी कहा जाता है। सामाजिक कर्म, राष्ट्र, स्थानीय समुदाय और प्रादेशिक समूह, जनता संस्थात्मक समूह एवं कारपोरेशन इसी कोटि के समूह है। निष्कर्षः-इस प्रकार विभिन्ने वर्गीकरणों में चार्ल्स कुले का वर्गीकरण सबसे सुन्दर और वैज्ञानिक है। अन्य विद्वानों के वर्गीकरण कुल के वर्गीकरण प्राथमिक समूह और द्वैतीयक समूह में आत्मसात् हो गये है।
Cheque क्या है और चेक कितने प्रकार के होते है?
Cheque क्या है. चेक तो हर कोई जानता है आज के समय में बैंक का मुख मेथड चेक से भुकतान (Payment) करना होता है खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है? किसी बैंक में खाता खोलने के बाद आपको ये चुनना होता है कि आपको अपने खाता से पैसे निकलना कैसे है।
ये ग्राहक (Costumer) के ऊपर निर्भर करता है कि उसको अपने खाते से खुद पैसे निकलने है और जो बिज़नेस (Business) करने वाले लोग होते है तो हर किसी को पेमेंट (Payment) देना होता है तो ऐसे में चेक की आवश्यकता पड़ती है क्योकि उसको कई लोगो को एक दिन में पेमेंट देना होता है इसलिए Cheque क्या है और चेक के प्रकार. के बारे में जानना आवश्यक है।
चेक क्या होता है (Cheque Hindi)
Cheque in Hindi
What is cheque in hindi. चेक एक ऐसा कागज का टुकड़ा है जिसमे बिना शर्त के यह आदेश देता है जिसमे बैंक को यह स्पष्ट किया जाता है कि मैं अमुक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को इतने रुपए का भुक्तान करने का वचन करता हूँ चेक एक भुक्तान पत्र है जिसमे एक कागज पे लिखकर भुकतान किया जाता है।
चेक में देंनदाता का नाम या किसी फर्म स्टोर का भी नाम हो सकता है चेक में आपको यह भी लिखना होता कि चेक किसे देना है तथा कितने रूपीस (Rupees) का देना है रूपीस को शब्दों (Word) और अंको (Digit ) में दोनों तरीको से लिखना पड़ता है तथा सिग्नेचर (Signature) आपको वही करना पड़ता है जो खाता खोलते वक्त आपने अपने बैंक (Bank) को दिया था।
अन्यथा सिग्नेचर (Signature) ना मिलने के कारण आपका चेक निरस्त (Reject) भी किया जा सकता है इस लिए आपको वही सिग्नेचर करना है जो बैंक फॉर्म पर पहले कर चुके है चेक को इलेक्ट्रानिक भुक्तं भी कहा जाता है।
अन्य आर्टिकल इसे भी पढ़े
चेक का वर्गीकरण (Classification of cheque)
- स्थानीय चेक (Local Cheque) – यदी एक स्थान या शहर का चेक उसी शहर में क्लियर (Clear) हो जाये तो स्तानीय कहते है जैसे किसी एक शहर का चेक उसी शहर में ही क्लियर (Clear) हो जाए तो उसे स्थानीय चेक यानि (Local Cheque) कहते है अगर अन्य शहर में इसको क्लियर (Clear) कराया जाए तो अलग से धन राशि देना पडता है।
- आउटस्टेशन चेक (Out Station) – यदि चेक को कही शहर से बाहर जा कर क्लियर (Clear) या विथड्रॉ (Withdraw) कराया जाये तो उसे आउटस्टेशन (Out Station) चेक कहते है जिसके लिए Bank अलग से चार्ज करता है जैसे किसी A शहर का चेक B शहर में क्लियर (clear) या विथड्रॉ (withdraw) करवाया जाये है।
- एट पार चेक (At Par Cheque) – यह ऐसा चेक होता है जिसे किसी भी बैंक से क्लियर कराया जा सकता है तथा ये अनिवार्य होना चहिये कि सम्बंधित ब्रांच हो और ख़ास बात ये है कि बैंक में कोई अतिरिक्त राशि नहि कटती है।
चेको का वर्गीकरण मूल्यों के आधार पर
- ऊंचे मूल्य वाले चेक – जो चेक एक लाख से ऊपर होते है उन्हें ऊंचे मूल्य वाले चेक कहते है।
- साधारण मूल्य वाले चेक – जो चेक एक लाख से कम होते है उन्हें साधरण मूल्य वाले चेक कहते है।
- उपहार चेक – उपहार चेक वो चेक होते है जो अपने परिजनों या किसी अन्य को को उपहार के रूप में दिए जाते है ये 100 रुपये से लेकर 10,000 रुपये तक हो सकते है।
Cheque In Hindi
चेक के प्रकार (types of cheque in hindi)
चेक के प्रकार की बात करे तो मुख्यता: चार प्रकार के होते है आइये जानते है कि चेक के कौन कौन से प्रकार होते है।
- खाता पेयी चेक (Crossed Cheque) – जब किसी बेयरर (Bearer) चेक (Cheque) के किनारे दो एक समान्तर लाइन बनाते है दोनो लाइनों के बीच ‘A/C Payee Only लिख दिया जाता है तो इस चेक की काफी सुरक्षा बढ जाती है इस चेक को क्रॉस्ड चेक (Crossed Cheque) कहा जाता है तथा इस चेक से कोई भी व्यक्ति पैसे विथड्रॉ नहीं कर सकता है केवल वही कर सकता है जिस अकाउंट के नाम से चेक को बनाया गया है उसी अकाउंट में पैसे ट्रांसफर कर दिये जाते है।
- खुला चेक (Open Cheque) – खुला चेक वो चेक होता है जिसे बैंक खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है? काउंटर पर ही नकद (Cash) प्राप्त किया जा सकता है क्लियर (Clear) करने के लिए आपको लंबी लाइनो का इंतिजार करने की जरूरत नहीं होती है तथा किसी दूसरे व्यक्ति को भेज कर भी प्राप्त या क्लियर करवाया जा सकता है।
- बेयरर चेक (Bearer Cheque) – बेयरर चेक वह चेक होता है जो खाताधारी (Account Holder) किसी को भेज कर पैसे विथड्रा (Withdraw) करवा सकता है इस चेक के माध्यम से कोई भी उस अकॉउंट से पैसे निकलवा सकता है बस खाताधारी का सिग्नेचर होना चाहिए इस में रिस्क (Risk) बहुत होता है इस चेक के खो जाने के बाद कोई भी व्यक्ति पैसे निकाल सकता है।
- ऑर्डर चेक (Order Cheque) – इसमें बेयरर चेक को काट कर आर्डर (Order) लिख दिया जाता है इसमें चेक के माध्यम से एक व्यक्ति के नाम या संस्था के नाम से चेक को बनाकर दिया जाता है जिस नाम को चेक में दर्शाया गया है उस चेक को वही व्यक्ति केवल विथड्रा (Withdraw) करवा सकता है इस चेक में ज्यादा रिस्क (Risk) नहीं होता है इसको हर कोई विथड्रा नहीं करवा सकता है।
निष्कर्ष
मै उम्मीद करता हु कि आपको इस Cheque क्या है और चेक के प्रकार से आपको बहुत हेल्प मिला होगा और चेक (Cheque) से सम्बंधित सारे प्रॉब्लम दूर हो गये होंगे और चेक के बारे बेहतर जानकारी मिली होगी ऐसे पोस्ट को पढ़ने के लिए हमारे फेसबुक और इंस्टाग्राम के पेज को लाइक और फॉलो करे और सबसे पहले जानकारी पाये और आर्टिकल को शेयर करे। (धन्यवाद्)
ध्वनि (ध्वनियों) का वर्गीकरण, स्वर-ध्वनियों का वर्गीकरण
8. कुछ स्वर मूल होते हैं अर्थात उनके उच्चारण में जीभ एक स्थान पर रहती है , जैसे अ , इ , ए , ओ। इसके सापेक्ष कुछ स्वर संयुक्त होते हैं अर्थात इनके उच्चारण में जीभ एक स्वर के उच्चारण से दूसरे स्वर के उच्चारण की ओर चलती है। वस्तुतः संयुक्त स्वर दो स्वरों का ऐसा मिला-जुला रूप है जिसमें दोनों अपना स्वतंत्र व्यक्तित्व खोकर एकाकार हो जाते हैं और साँस के एक झटके में उच्चरित होते हैं। दोनों मिलकर एक स्वर जैसे हो जाते हैं। ऐ (अ , ए) औ ( अ , ओ) संयुक्त स्वर कहे गये हैं।
राज्य लेखा की संरचना
धारा 'व्यय प्रमुख (पूंजीगत खाता)' व्यय से संबंधित है, आमतौर पर उधार लिया हुआ धन से खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है? सामग्री और स्थायी प्रकृति की बढ़ती ठोस संपत्तियों के उद्देश्य से मिलता है। इसमें व्यय सेट-ऑफ के रूप में लागू होने वाली पूंजी प्रकृति की रसीद भी शामिल है।
धारा सार्वजनिक कर्ज , ऋण और अग्रिम, आदि' सरकार द्वारा 'आंतरिक ऋण' और 'ऋण और अग्रिम' (और उनकी वसूली) जैसी सरकार द्वारा उठाए गए ऋण और पुनर्भुगतान शामिल हैं। इस अनुभाग में 'आकस्मिकता निधि के लिए स्वीकृति' और 'अंतर-राज्य निपटान' से संबंधित लेनदेन के लिए कुछ विशेष प्रकार के शीर्ष भी शामिल हैं।
भाग -II में नामित आकस्मिक निधि लेखा , भारत के संविधान के अनुच्छेद 267 के तहत स्थापित आकस्मिक निधि से जुड़े लेनदेन दर्ज किए गए हैं।
भाग -III में, नामित सार्वजनिक लेखा , 'ऋण' से संबंधित लेनदेन (भाग I में शामिल लोगों के अलावा), 'जमा', 'अग्रिम', 'प्रेषण' और 'सस्पेंस' दर्ज किए गए हैं। इस हिस्से में 'ऋण', 'जमा' और 'अग्रिम' के तहत लेनदेन वे हैं, जिनके संबंध में सरकार द्वारा प्राप्त की गई राशि चुकाने की देयता होती है या पूर्व में चुकाए गए भुगतान के साथ भुगतान की खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है? गई राशि वसूलने का दावा होता है ('ऋण', और 'जमा') और उत्तरार्द्ध की पुनर्प्राप्ति ('अग्रिम')। इस हिस्से में 'प्रेषण' और 'सस्पेंस' से संबंधित लेन-देन केवल समायोजित से संबंध रखते हैं, जिसके तहत ट्रेजरी और मुद्रा चेस्टों, विभिन्न लेखांकन मंडलियों के बीच स्थानान्तरण, आदि के बीच नकदी के प्रेषण के रूप में ऐसे लेन-देन दिखाई देते हैं। इन शीर्षों के लिए प्रारंभिक डेबिट या क्रेडिट अंततः संबंधित रसीदों या भुगतान के खाते के उसी सर्कल के भीतर या किसी अन्य खाते सर्कल में साफ़ किया जाना चाहिए।
क्षेत्र और लेखा प्रमुख: ऊपर वर्णित भाग I में से प्रत्येक अनुभाग के भीतर लेनदेन को रसीद के शीशों के लिए 'कर राजस्व', 'गैर कर राजस्व' और 'अनुदान सहायता और योगदान' जैसे क्षेत्रों में बांटा गया है। (राजस्व खाता), और 'सामान्य सेवाएं', 'सामाजिक सेवाएं', 'आर्थिक सेवाएं' और 'व्यय-सहायता और योगदान' व्यय शीर्षों के लिए सोशल सर्विसेज के संबंध में विशिष्ट कार्य या सेवाएं (जैसे शिक्षा, खेल, कला और संस्कृति, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, जल आपूर्ति, स्वच्छता, आवास और शहरी विकास इत्यादि) को व्यय प्रमुखों के क्षेत्रों में समूहीकृत किया जाता है। भाग III (लोक खाता) में, लेन-देन को 'छोटे बचत', 'भविष्य निधि', 'रिजर्व फंड', आदि जैसे क्षेत्रों में बांटा गया है। क्षेत्र खाते के प्रमुख प्रमुखों में उप-विभाजित हैं। कुछ मामलों में, इसके अलावा, उप-क्षेत्रों में उप-विभाजित क्षेत्रों के प्रमुख प्रमुखों में उनके विभाजन से पहले विभाजित होते हैं।
शीर्ष के कुछ मामलों में उप-शीर्ष में विभाजित किया जाता है और माइनर हेड, कई अधीनस्थ शीर्ष होते हैं, जिन्हें आम तौर पर सब-हेड्स के नाम से जाना जाता है। उप-शीर्ष आगे विस्तृत शीर्ष में विभाजित होते हैं। इन सभी शीर्षों के तहत, व्यय चार्ज और मतदान के बीच वितरित किया जाता है। कुछ बार मार्जर हेड में आगे के डिवीजनों से पहले प्रमुख शीर्ष भी सब-मेजर हेड में विभाजित होते हैं। सेक्टरलैंड उप-सेक्टरलक्लासिफिकेशन के अलावा मेजर हेड्स, सब-मेजर हेड्स, माइनर हेड्स, उप-प्रमुख, विस्तृत प्रमुख और ऑब्जेक्ट-हेड्स एक साथ सरकारी खातों की वर्गीकरण संरचना की छह-स्तरीय व्यवस्था का गठन करते हैं। सामान्य खातों में व्यय के वर्गीकरण के लिए निर्धारित शीर्ष, माइनर और उप-शीर्ष जरूरी नहीं हैं, जो कि संसद या विधानसभा को प्रस्तुत अनुदान की मांग के लिए सरकारों द्वारा अपनाए गए आवंटन, उप-प्रमुखों और आवंटन की अन्य इकाइयों के साथ समान नहीं हैं। आम तौर पर अनुदान और वित्त लेखा की मांग के बीच सहसंबंध की एक निश्चित डिग्री बनाए रखा जाता है।
व्यय शीर्षों के लिए क्षेत्रों के भीतर आने वाले प्रमुख शीर्ष खाते, आम तौर पर सरकार के कार्यों के अनुरूप होते हैं, जबकि माइनर हेड, उनके अधीन होते हैं, जो मेजर हेड द्वारा प्रस्तुत समारोह के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए प्रोग्राम्समुंडर्ट की पहचान करते हैं। उप-प्रमुख योजना, विस्तृत शीर्ष, उप-योजना और ऑब्जेक्टहेड, वर्गीकरण के सिद्धांत स्तर का प्रतिनिधित्व करता है।
कोडिंग पैटर्न
प्रमुख शीर्ष : -1 अप्रैल 1 9 87 से मेजर हेड को अपना अंक कोड आवंटित किया गया है, पहला अंक इंगित करता है कि मेजर हेड रसीद हेड या रेवेन्यू व्यय हेड या कैपिटल व्यय हेड है या एक ऋण शीर्ष ।
राजस्व रसीद शीर्ष के लिए कोड का पहला अंक या तो '0' या '1' है। राजस्व रसीद सिर के पहले अंक कोड में 2 को जोड़ना इसी राजस्व व्यय के लिए आवंटित संख्या देता है; एक और 2, पूंजी व्यय शीर्ष जोड़ना; और दूसरा 2, खाता का ऋण शीर्ष । उदाहरण के लिए, फसल पश्चात कोड 0401 के लिए रसीद शीर्ष, 2401 राजस्व व्यय शीर्ष, 4401 पूंजीगत व्यय शीर्ष और 6401 ऋण शीर्ष का प्रतिनिधित्व करता है।
हालांकि, इस तरह के पैटर्न उन विभागों के लिए प्रासंगिक नहीं हैं जो खाते के पूंजी / ऋण प्रमुखों का संचालन नहीं कर रहे हैं। आपूर्ति विभाग कुछ मामलों में, जहां रसीद और व्यय भारी नहीं होते हैं, कुछ कार्यों को एक मुख्य शीर्ष के तहत जोड़ा गया है, जो कि उस मुख्य शीर्ष के तहत उप-मुख्य शीर्ष बनाते हैं।
प्रथम/ द्वितीय श्रेणी | मुख्य शीर्ष उप-मुख्य शीर्ष | 2202 शिक्षा 01. प्राथमिक शिक्षा |
तीसरा स्तर | लघु शीर्ष | 101 सरकारी प्राथमिक स्कूल |
चौथा स्तर | वर्ग खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है? उप-शीर्ष | 8 वीं पंचवर्षीय योजना में योजनाएं II. राज्य योजना |
उप-मुख्य | जेबी। आयु वर्ग 11-14 के विद्यार्थियों के अतिरिक्त नामांकन | |
पांचवां टायर | विस्तृत शीर्ष / वस्तु शीर्ष | 01. वेतन |
छठी टायर | उप-विस्तृत शीर्ष | (1)वेतन (3)मेडिकल (4)अन्य भत्ता (7)यात्रा छूट |
उप-मुख्य शीर्ष : - दो अंकों के कोड आवंटित किए गए हैं, कोड प्रत्येक मुख्य शीर्ष के तहत 01 से शुरू होता है। जहां कोई उप -मुख्य शीर्ष मौजूद नहीं है, उसे कोड '00' आवंटित किया जाता है। नामकरण 'जनरल' को कोड '80' के रूप में आवंटित किया गया है ताकि उप-मेजर मुख्यों को पेश करने के बाद भी 'जनरल' के लिए कोड अंतिम रहना जारी रहे।
लघु शीर्ष : - इन्हें एक खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है? तीन अंक कोड आवंटित किया गया है, प्रत्येक उप-मुख्य / मुख्य शीर्ष (जहां कोई उप –मुख्य शीर्ष नहीं है) के तहत '001' से शुरू होने वाले कोड। '001' से '100' तक के कोड और कुछ मानक '750' से '900' को कुछ मानक लघु शीर्ष के लिए आरक्षित रखा गया है। लघु शीर्ष के लिए कोडिंग पैटर्न इस तरह से डिजाइन किया गया है कि कुछ मुख्य / उप-मुख्य शीर्ष के तहत एक सामान्य नामकरण वाले कुछ लघु शीर्ष के संबंध में, वही खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है? तीन अंक कोड जितना संभव हो सके अपनाया जाता है।
कोडिफिकेशन की इस योजना के तहत, रसीद मुख्य शीर्ष (राजस्व खाता) को ब्लॉक संख्या को 0020 से 1606 तक, 2011 से 3606 तक व्यय मुख्य शीर्ष (राजस्व खाता), व्यय मुख्य शीर्ष (पूंजीगत खाता) 4046 से 5475 तक, मुख्य शीर्ष 6001 से 6004 तक और 'ऋण और अग्रिम', 'अंतर-राज्य निपटान' और 'स्थानांतरण से आकस्मिक निधि' के तहत 6075 से 7 9 99 तक 'पब्लिक डेट' के तहत। कोड संख्या 4000 को कैपिटल रसीद मुख्य शीर्ष के लिए आवंटित किया गया है। भाग II 'आकस्मिक निधि' में एकमात्र मुख्य शीर्ष 'आकस्मिक निधि' को कोड संख्या 8000 असाइन किया गया है। सार्वजनिक खाते में मुख्य शीर्षों को कोड संख्या 8001 से 89 99 तक सौंपी गई है।
उदाहरण: राज्य सरकार द्वारा लेनदेन के वर्गीकरण के लिए कोडिंग पैटर्न निम्नानुसार है:
3. इन खातों में शामिल लेन-देन मुख्य रूप से अप्रैल-मार्च के वित्तीय वर्ष के दौरान वास्तविक नकद प्राप्तियां और वितरण का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो इसी अवधि के दौरान सरकार से या उससे संबंधित राशि से अलग हैं। हालांकि, नकद आधार प्रणाली लेनदेन रिकॉर्ड करने और वाणिज्यिक सिद्धांतों पर चलने वाले सरकारी वाणिज्यिक उपक्रमों के मामलों की वास्तविक स्थिति पेश करने के लिए पूरी तरह उपयुक्त नहीं है। उपक्रम के इस वर्ग के विस्तृत खाते, इसलिए, उचित वाणिज्यिक रूप में नियमित खातों के बाहर बनाए रखा रखा जाता है और भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा विभाग द्वारा परीक्षण-जांच के अधीन हैं।
4.इन खातों में दिखाए गए वास्तविक आंकड़े शुद्ध हैं, खाता खोलने के बाद, अलौकिक विधानमंडल को प्रस्तुत अनुदान के लिए मांग और स्वीकृति खाते सकल व्यय के लिए हैं और क्रेडिट और वसूली को छोड़कर अन्यथा व्यय में कमी के रूप में लिया जाता है।
अपराध का अर्थ , परिभाषा तथा अपराध के प्रकार एवं चरण (Concept of crime in hindi)
अपराध क्या है |
अपराध अपराध वह कार्य या कार्यों का समूह है जिससे राज्य की शांति भंग होती है या हिंसा उत्पन्न होती है या साधारण जन–जीवन दूषित होता है और जिसके लिए विधि में दंड की व्यवस्था की गई। अपराध राज्य के प्रति भी हो सकता है और व्यक्ति के विरुद्ध भी हो सकता है।
अपराध की परिभाषा
भारतीय दंड संहिता की धारा 40 में अपराध को परिभाषित किया गया है ," जिसके अनुसार इस एक्ट में दिया गया कोई भी कार्य अपराध होगा।"
किंतु अनेक विधिवेत्ताओं का यह मानना है कि अपराध की एक समुचित परिभाषा देना एक कठिन कार्य है क्योंकि इसका दायरा इतना व्यापक है जिसको एक परिभाषा में समझना संभव ही नहीं है अपराध के संबंध में कुछ विधिवेत्ताऔं की परिभाषा निम्नलिखित है–
According to Blackstone ," अपराध एक ऐसा कृत्य या कृत्य का लोप है,जो सार्वजनिक विधि के उल्लंघन में किया गया हो।"
According to Kenny ," अपराध उन अवैध कार्यों को कहते हैं जिन के बदले में दंड दिया जाता है और वह क्षम्य नहीं होते और यदि क्षम्य होते भी हैं तो राज्य के अन्य किसी को क्षमा प्रदान करने की अधिकारिता नहीं होती है।"
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 2(n) में भी अपराध को परिभाषित किया गया है ,"जिसके अनुसार ऐसा कोई कार्य जो किसी भी विधि में दंडनीय है अपराध कहलाता है।"
अपराध की उपयुक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट है कि ऐसा कोई भी कार्य जो विधि के विरुद्ध है और जिसके लिए दंड संहिता में या अन्य किसी भी विधि में दंड की व्यवस्था की गई है अपराध कहलाता है।
अपराध के प्रकार
- संज्ञेय अपराध
- असंज्ञेय अपराध
- राज्य के विरुद्ध अपराध
- मानव शरीर के विरुद्ध अपराध
- संपत्ति के विरुद्ध अपराध
अपराध का क्या अर्थ होता है? अपराध के चरण क्या है? |
अपराध के चरण/स्तर
जब कोई अपराध कारित होता है तब अनेक चरणों से होकर अपराध का रूप लेता है अपराध के मुख्य चार चरण होते हैं वह है –आशय ,तैयारी ,प्रयास और अपराध का निष्पादन इनके बारे में विस्तृत उल्लेख निम्नलिखित है–
(1) आशय (Intention)–
अपराध किए जाने की प्रथम अवस्था आशय है । प्रत्येक कार्य के पीछे व्यक्ति की भावनाएं निहित होती है , यह एक मानसिक अवस्था है , जिसके लिए दंड संहिता में कोई दंड उल्लेखित नहीं है। अर्थात आशय जब तक किसी व्यक्ति के मन में रहता है वह दंडनीय नहीं है । इसे दंड संहिता की धारा 34 में परिभाषित किया गया है।
(2) तैयारी (Prepration)–
यह अपराध कारित किए जाने की दितीय अवस्था है । इस चरण में व्यक्ति अपने आशय को पूर्ण करने के लिए कुछ तैयारी करता है ,जैसे हथियारों का इंतजाम करना आदि।
Example – A एक व्यक्ति ,दूसरे व्यक्ति B के घर में चोरी छुपे घुसने खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है? का आशय करता है , और इसके लिए एक सीढ़ी का इंतजाम करता है । तो यहां A तब तक अपराध का दोषी नहीं माना जाएगा ,जब तक वह सीढ़ी का उपयोग करके B के घर में प्रवेश नहीं करता है।
- भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करने के आशय से आयुध आदि संग्रह करना (धारा 122),
- डकैती करने के लिए तैयारी करना (धारा 399) ।
(3) प्रयत्न (Attempt)–
(4) अपराध का निष्पादन (Accomplishment)–
अपराध का आखरी चरण है अपराध का निष्पादन । अपराध कारित करने के लिए व्यक्ति सबसे पहले उसका आशय या विचार करता है, फिर तैयारी करता है जो सामान्यतः दंडनीय नहीं है। इन दोनों चरणों के बाद व्यक्ति अपराध का प्रयत्न करता है और यदि प्रयत्न सफल हो जाता है, तो वह कार्य पूर्णअपराध का रूप ले लेता है और उसी प्रकार दण्डनीय होता है, जिस प्रकार उस अपराध के लिए दंड संहिता में विहित किया गया है।
अब यह भली-भांति स्पष्ट है कि अपराध क्या है और अपराध के चरण कितने होते हैं ।कोई भी कार्य एकदम से अपराध का रुप नहीं लेता है , उसके लिए कुछ अवस्थाएं होती है जो है ,आशय , तैयारी , प्रयत्न और अपराध का निष्पादन । कोई भी अपराध इन चरणों के बिना पूर्ण नहीं हो सकता है।