घाटे का सौदा

MP: घाटे का सौदा बनी किसानों के लिए लहसुन, फेंक रहे नदियों में, कहा 1 रूपये किलो मिल रहे दाम, भाड़ा भी नहीं मिल रहा
MP Latest News: आम तौर पर 100 से 150 रूपये किलो के दाम से बिकने वाली लहसुन के दाम (Lahsun Price) न के बराबर होने से किसान इसे घाटे का सौदा बताते हुए नदियों में फेंक रहे हैं। खबरों के तहत एमपी के मालवा-निमाड़ के किसान मंडियों में लहसुन ला रहे और इसे वहीं छोड़कर जाना बेहतर समझ रहे हैं। धार के बदनावर में आहत तीन किसानों ने नागदा गांव के पास चामला नदी में 100 कट्टे लहसुन फेंक दिये।
75 पैसे से 1 रूपये किलो मिल रहा दाम
धार के किसानों को कहना है कि वे इंदौर मंडी में लहसुन बेचने गए थे। वहां 20 क्विंटल लहसुन के सिर्फ 2000 रुपए ही मिले। यानी 1 रुपए किलो। 1800 रुपए तो भाड़ा और हम्माली में ही खर्च हो गए। इसके अलावा लहसुन की साफ-सफाई का अलग खर्च। ऐसे में उनकी लागत तक नही निकल पाई। उनका कहना है कि बारिश से लहसुन खराब हो रही और घाटे का सौदा दाम मिलने की उम्मीद भी नजर नही आ रही। जिससे लहसुन को फेंकना ही उन्होने उचित समझा।
मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार में यह है किसानो की स्थिति और किसानो की आय दोगुनी करने के दावे का सच…
किसान को उसकी उपज का उचित दाम नहीं मिल पा रहा है और वो निरंतर क़र्ज़ के दलदल में फँसता जा रहा है। pic.twitter.com/C17bWC9O1A
— Kamal Nath (@OfficeOfKNath) August 24, 2022मंडियों में पहुंच रही बम्पर लहसुन
जानकारी के तहत इन दिनों मंडियों में बम्पर लहसुन पहुंच रही हैं। खबरों के तहत 5 से 23 अगस्त तक एमपी की मंडियों में 2 लाख 50 हजार क्विंटल लहसुन पहुंची है। इसके पूर्व भी लहसुन की जबरदस्त आवक तो बढ़ी है, लेकिन कीमत घटी है।
पूरे मालवा के मंडियों में यही हाल
जानकारी के तहत लहसुन के दामों की इतनी खराब हालत केवल इंदौर, मंदसौर की मंडी में नहीं है बल्कि सीहोर, जावरा, नीमच, रतलाम, पिपल्या की मंडियों की भी यही स्थिति है। जिससे यहां के किसानों के लिए इस वर्ष लहसुन घाटे का सौदा बन गया है।
प्रदेश भर में विरोध
किसान लहसुन का दाम कम होने से विरोध प्रर्दशन भी करते रहे हैं। रतलाम में तो दाम को लेकर जबरदस्त किसानों ने विरोध जताया था। किसानों का आरोप था कि व्यापारी मनमर्जी से दाम तय कर रहे हैं। उज्जैन में कृषि मंत्री का पुतला दहन किसानों ने किया था तो वहीं देवास में लहसुन की शव यात्रा निकाल चुके है। कुछ इसी तरह के हाल अन्य मंडियों में भी रहे हैं।
घाटे का सौदा साबित हो रही है तेजस ट्रेन
आईआरसीटीसी ने रेलवे बोर्ड को पत्र भेजकर चार्ज माफ करने की गुहार लगाई है ताकि तेजस घाटे से ऊपर उठकर यात्रियों को बेहतर, सुरक्षित और समयबद्ध ट्रेन संचालन की सेवाएं देता रहे। इससे रेलवे की छवि बेहतर होगी।
लखनऊ (ब्यूरो)। लखनऊ से नई दिल्ली के बीच चलने वाली देश की पहली कॉरपोरेट ट्रेन तेजस उसको संचालित करने वाली आईआरसीटीसी संस्था के लिए घाटे का सौदा साबित हो रही है। बीते एक साल में इस ट्रेन के संचालन से संस्था को केवल 32 करोड़ रुपये ही मिले हैं, जबकि इस ट्रेन को संचालित करने के लिए उसको 62 करोड़ रुपये रेलवे को किराए के तौर पर चुकाने पड़े हैं। ऐसे में, आईआरसीटीसी पर रेलवे का कर्ज बढ़कर करीब 40 करोड़ रुपये हो गया है। लखनऊ से तेजस का संचालन चार अक्टूबर 2019 से शुरू हुआ। पांच महीने ट्रेन चलने के बाद 19 मार्च 2020 को कोविड के चलते यह बंद कर दी गई थी। ट्रेन बंद होने के बावजूद रेलवे कस्टडी चार्ज, फिक्स चार्ज व वैरिएबल चार्ज वसूलता रहा। यही वजह है कि आईआरसीटीसी की देनदारी लगातार बढ़ती गई। रेलवे कर्ज से राहत दे तो तेजस और रफ्तार पकड़ सकती है।
फैक्ट फाइल
- तेजस ट्रेन में 1036 सीटें हैं, औसतन 700 यात्री रोजाना सफर करते हैं
- प्रति यात्री औसतन किराया 1350 रुपये, रोजाना 10 लाख रुपये की आय
- रेलवे को 13 लाख रुपये प्रतिदिन मरम्मत और हॉलेज चार्ज देना होता है
रेलवे बोर्ड से मदद की गुहार
आईआरसीटीसी ने रेलवे बोर्ड को पत्र भेजकर चार्ज माफ करने की गुहार लगाई है ताकि तेजस घाटे से ऊपर उठकर यात्रियों को बेहतर, सुरक्षित और समयबद्ध ट्रेन संचालन की सेवाएं देता रहे। इससे रेलवे की छवि बेहतर होगी।
रेलवे में पहली बार प्राइवेट ट्रेन तेजस का संचालन शुरू हुआ, जोकि रेलवे के विभिन्न चार्ज के चलते घाटे में चला गया। वतर्मान में टिकटों की बिक्री के मुकाबले खर्चा दोगुना है। इससे तेजस ट्रेन का संचालन घाटे में है।
- अजीत सिन्हा, मुख्य क्षेत्रीय प्रबंधक, आईआरसीटीसी, लखनऊ परिक्षेत्र
घाटे का सौदा करना - Meaning in English
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About घाटे का सौदा करना in English
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घाटे का सौदा
मेघालय, अरुणाचल, मणिपुर और मिजोरम जैसे राज्यों में लोग गो मांस खाते हैं। लिहाजा इलाके के भाजपा नेताओं ने ही अपने आलाकमान से दो टूक कह दिया है कि यह फैसला पार्टी के लिए आत्मघाती हो सकता है।
केंद्र सरकार के फैसले को लेकर विरोध (Representative Image)
घाटे का सौदा
बूचड़खानों के लिए मवेशियों की बिक्री पर पाबंदी का मोदी सरकार का फैसला उन्हीं की पार्टी की राह का रोड़ा साबित हो रहा है। खासकर पूर्वोत्तर के राज्यों में। यहां पांव पसारने का सपना है भाजपा का। मेघालय, अरुणाचल, मणिपुर और मिजोरम जैसे राज्यों में लोग गो मांस खाते हैं। लिहाजा इलाके के भाजपा नेताओं ने ही अपने आलाकमान से दो टूक कह दिया है कि यह फैसला पार्टी के लिए आत्मघाती हो सकता है। पार्टी की छवि लोगों की नजरों में खराब होगी इस बंदिश से। मेघालय में तो भाजपा के दो नेताओं ने विरोध में पार्टी से इस्तीफा तक दे दिया। यहां कुछ राज्यों में अगले साल विधानसभा चुनाव होंगे। असम, अरुणाचल और मिजोरम के बाद बाकी बचे राज्यों में भी सत्ता पर काबिज होने का सपना देख रहे हैं अमित शाह। इसीलिए कुछ भाजपा नेताओं ने दावा कर दिया है कि सरकार बनने के बाद गो मांस पर लगी पाबंदी हटा ली जाएगी। दरअसल मेघालय ठहरा ईसाई बहुल। यहां गो मांस की खपत ज्यादा है। मेघालय के साथ ही मिजोरम, त्रिपुरा व नगालैंड में भी अगले साल चुनाव होंगे।
एक तरफ पूर्वोत्तर में असंतोष तो दूसरी तरफ अदालती हस्तक्षेप का खतरा। शायद हालात को भांप कर ही कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को गुरुवार को दिल्ली में कहना पड़ा कि सरकार अपने फैसले पर पुनर्विचार कर सकती है। अमित शाह को पिछले हफ्ते विरोध की आशंका के मद्देनजर अरुणाचल का अपना दौरा टालना पड़ गया। बेशक कहा यही गया कि वे घाटे का सौदा राष्ट्रपति चुनाव की तैयारियों में व्यस्त हैं। पर चुनाव की तारीखों का ख्याल तो दौरा तय करते वक्त भी रहा होगा दिमाग में। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने जरूर एक बैठक के सिलसिले में इलाके का दौरा किया था। तभी मिजोरम की राजधानी में लोगों ने बीफ उत्सव मना दिया। केंद्र सरकार के फैसले के प्रति विरोध का इजहार करना था मकसद। इससे भाजपा के इलाकाई नेता असमंजस में हैं। पाबंदी की बाबत सफाई देते बन नहीं रहा। बेचारे फूंक-फूंक कर उठा रहे हैं अपने कदम।
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चौतरफा घेरेबंदी
बिहार से अलग होकर ही तो बना है झारखंड। इस नाते तो पड़ोसी के साथ-साथ दोनों छोटे-बड़े भाई जैसे भी कहलाएंगे। पर दोनों के मुख्यमंत्रियों के रिश्तों में तो कतई गरमाहट नहीं। रघुबर दास शुरू से ही नीतीश कुमार का विरोध करते रहे हैं। बिहार का दूसरा पड़ोसी है उत्तर प्रदेश। पहले यहां अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे। दोस्ताना रिश्ते तो उनसे भी नहीं थे, पर कटुता भी तो नहीं थी। जब से योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश की सत्ता संभाली है, नीतीश को दोनों पड़ोसियों के साथ वाकयुद्ध करना पड़ रहा है। वैसे भी योगी ठहरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चहेते। सो नीतीश के साथ वे दोस्ती का हाथ बढ़ा ही नहीं सकते। अभी तक तो नीतीश को मोदी और रघुबर दास का ही जवाब देना पड़ता था। अब बिहार को योगी से भी सावधान कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी पिछले हफ्ते बिहार आए। मकसद था, केंद्र की मोदी सरकार की तीन साल की उपलब्धियों का बखान। नीतीश इसे कैसे बर्दाश्त करते। लिहाजा योगी से एक दिन पहले ही हो आए दरभंगा। लोगों को योगी से सावधान कर आए। जहां तक रघुबर दास का सवाल है। वे बिहार की समस्याओं का ठीकरा नीतीश के सिर फोड़ते रहते हैं। नीतीश ने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली। वे भी झारखंड जाकर रघुबर दास को चुनौती देते रहते हैं। पर योगी उनके लिए नई आफत हैं। एक तो भाजपा में योगी का कद रघुबर दास से ऊंचा ठहरा। ऊपर से यूपी का आकार बिहार से कहीं बड़ा। लिहाजा उन्हें तो हर कोई गंभीरता से लेगा ही। नीतीश को डर है कि योगी बिहारियों को भ्रमित कर सकते हैं। इसीलिए वे भी अब लालू यादव की तर्ज पर भाजपा नेताओं के प्रति आक्रामक रुख अपना रहे हैं। उन्हें समाज को तोड़ने वाला बता कर लोगों को चौकस कर रहे हैं।
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