विदेशी मुद्रा व्यापार के तरीके

India to Make Global Payments in Rupees Instead of Dollars, डॉलर के स्थान पर भारत अब रुपए में करेगा विदेशी व्यापार
1 जुलाई को आई एक रिपोर्ट के अनुसार, जून के आखिरी हफ्ते तक भारत के विदेशी मुद्रा भंडार से 5 अरब डॉलर कम हो चुके हैं. इन सब बातों को देखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक ने बड़ा फैसला लेते हुए रूपए को इंटरनेशनल करने का फैसला किया है.
डॉलर पर रूपए की निर्भरता अब जल्द हीं ख़त्म होने वाली है. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने घोषणा की है कि वह रुपए में अंतरराष्ट्रीय ट्रेड सेटलमेंट के लिए एक मैकेनिज्म इस्टेब्लिश कर रहा है. इस प्रसंग में आगे आरबीआई ने कहा कि यह आदेश तत्काल प्रभाव से लागू होने के साथ निर्यात पर जोर देने और वैश्विक व्यापार के विकास को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन किया गया है. अगर आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और विशेषज्ञ मार्गदर्शन की तलाश कर रहे हैं, तो आप हमारे जनरल अवेयरनेस ई बुक डाउनलोड कर सकते हैं FREE GK EBook- Download Now. / GK Capsule विदेशी मुद्रा व्यापार के तरीके Free pdf - Download hereJuly Month Current Affairs Magazine- DOWNLOAD NOW |
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रूपए होगा इंटरनेशनल
1 जुलाई को आई एक रिपोर्ट के अनुसार, जून के आखिरी हफ्ते तक भारत के विदेशी मुद्रा भंडार से 5 अरब डॉलर कम हो चुके हैं. इन सब बातों को देखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक ने बड़ा फैसला लेते हुए रूपए को इंटरनेशनल करने का फैसला किया है. हालाँकि इस बात की माँग भारतीय अर्थशास्त्रियों के द्वारा पिछले काफी समय से की जा रही थी.
जो अब जाकर आरबीआई ने लागू करने का फैसला किया है. ऐसी सम्भावना जताई जा रही है कि भारत के इस कदम से देश को यथेष्ट रूप से फायदा होगा.
रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड निचले स्तर पर
गौरतलब है कि जून के महीने में भारत का ट्रेड डेफिसिट 25.63 अरब डॉलर पहुँच चुका है जो एक चिंताजनक संकेत हैं.
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रिकॉर्ड व्यापार घाटे के पीछे की सबसे बड़ी वजह पेट्रोलियम, कोयले और सोने के आयात में भारी बढ़ोतरी को बताया जा रहा है. डॉलर के मुकाबले रूपए के कमजोर होने से इसका सीधा असर भारत के विदेशी मुद्रा भंडार पर पड़ रहा है. ऐसे में आरबीआई का यह बयान ऐसे वक्त में आया है जब हाल के हफ्तों में रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड निचले स्तर पर क्रैश हो गया है.
देखा जाए तो पिछले कुछ महीनों में रूस-यूक्रेन युद्ध आदि कई बदले हुए अंतर्राष्ट्रीय हालात और राजनीतिक परिदृश्य में भारत के लिए अपने व्यापार घाटे को मैनेज करना काफी मुश्किल काम हो सकता है. फिर भी भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने पिछले हफ्ते यह प्रस्ताव दिया कि हमें रूपए के विदेशी मुद्रा व्यापार के तरीके अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिए एक गंभीर और सतर्क प्रयास जरुर करना चाहिए.
रुपये में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समझौता
जब देश वस्तुओं या सेवाओं का आयात या निर्यात करता है तो इसके लिए भुगतान विदेशी मुद्रा में किया जाता है. जैसा कि हम जानते हैं कि यूएस डॉलर दुनिया की रिज़र्व मुद्रा है इसलिए ज्यादातर लेन देन अमेरिकी डॉलर में हीं किए जाते हैं. विदेशों से इस तरह की खरीददारी में भारतीय खरीददार को पहले रूपए को अमेरिकी डॉलर में बदलना पड़ता है. फिर बेचने वाले देश को डॉलर से भुगतान होता है और बाद में उसकी अपनी मुद्रा में पैसे परिवर्तित किए जाते हैं. लेन-देन में पैसों के इस रूपान्तरण का खर्च दोनों हीं पक्षों को उठाना पड़ता है. ऐसे में व्यापार समझौता अगर रूपए में होता है तो अमेरिकी डॉलर के बजाय भारतीय रूपए में चालान बनाया जाएगा. हाँ पर इसके लिए दूसरे पक्ष के पास वोस्ट्रो खाते विदेशी मुद्रा व्यापार के तरीके का होना जरुरी है जिसे अधिकृत डीलर अपने बैंक में विशेष रूप से खोल सकता है.
क्या है वोस्त्रो और नोस्ट्रो खाता ?
ये खाते आम नागरिकों के लिए नहीं बल्कि केवल व्यापार के उद्देश्य से बनाए विदेशी मुद्रा व्यापार के तरीके गए हैं. ये खाते किसी दूसरे देश के द्वारा बनवाए जाते हैं. आइए जानते हैं कि क्या है वोस्त्रो और नोस्ट्रो खाता -
वोस्ट्रो खाता
वोस्ट्रो खाता किसी विदेशी बैंक का भारत में भारतीय बैंक के साथ खाता है. विदेशी पक्ष इन वोस्ट्रो खातों के माध्यम से भारतीय निर्यातकों और आयातकों से पैसे भेज और प्राप्त कर सकेंगे.
यूनाइटेड किंगडम या संयुक्त राज्य के बैंक अक्सर विदेशी बैंक की ओर से एक वोस्ट्रो खाता रखते हैं. वोस्ट्रो खाते को देश की मुद्रा में रखा जाता है और वहाँ देश की मुद्रा में धन जमा होता है. रुपये में भुगतान स्वीकार करने के लिए अधिकृत डीलर बैंक विशेष में वोस्ट्रो खाते खोल सकेंगे.
रुपये में विदेशी व्यापार की मंजूरी से मुद्रा पर दबाव घटेगाः विशेषज्ञ
मुंबई, 12 जुलाई (भाषा) रुपये में अंतरराष्ट्रीय व्यापार लेनदेन की अनुमति देने से व्यापार सौदों के निपटान के लिए विदेशी मुद्रा की मांग घटने के साथ घरेलू मुद्रा की गिरावट रोकने में भी मदद मिलेगी। विशेषज्ञों ने यह बात कही।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने गत सोमवार को बैंकों से कहा कि भारतीय रुपये में बिल बनाने, भुगतान और आयात-निर्यात सौदों को संपन्न करने के अतिरिक्त इंतजाम रखें। भारत से निर्यात बढ़ाने और रुपये में वैश्विक कारोबारी समुदाय की बढ़ती रुचि को देखते हुए यह कदम उठाया गया है।
बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, ‘इस व्यवस्था से रुपये पर दबाव कम होगा क्योंकि आयात के लिए डॉलर की मांग नहीं रह जाएगी।’
बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच ने एक रिपोर्ट में कहा कि इस कदम से डॉलर की मांग पर दबाव तात्कालिक रूप से कम हो जाना चाहिए।
बार्कलेज के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य अर्थशास्त्री (भारत) राहुल बजोरिया ने कहा कि रुपये की मौजूदा कमजोरी के बीच यह कदम संभवतः व्यापार सौदों के रुपये में निपटान को बढ़ावा देकर विदेशी मुद्रा की मांग घटाने के लिए उठाया गया है।
आरबीआई ने कहा है कि व्यापार सौदों के निपटान के लिए संबंधित बैंकों को साझेदार देश के एजेंट बैंक का विशेष रुपया वोस्ट्रो खातों की जरूरत होगी।
सीआर फॉरेक्स एडवाइजर्स के प्रबंध निदेशक अमित पबरी ने कहा कि वोस्ट्रो खातों के जरिये रुपये में विदेशी सौदों के भुगतान की मंजूरी देना खास तौर पर रूस के साथ व्यापार को फायदा पहुंचाने के लिए उठाया गया कदम है।
इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च के सौम्यजीत नियोगी के मुताबिक, आरबीआई की यह घोषणा पूंजी खाते की परिवर्तनीयता के उदारीकरण की राह प्रशस्त करती है।
(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की विदेशी मुद्रा व्यापार के तरीके गई है।)
Bangladesh Crisis: श्रीलंका की राह पर बांग्लादेश! केवल 5 महीने के आयात के लिए बचा है विदेशी मुद्रा भंडार
Bangladesh Financial Crisis: बांग्लादेशी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, आयात पर होने वाला खर्च बढ़ा है पर उसके मुकाबले निर्यात से होने वाला आया नहीं बढ़ा है. इसके चलते व्यापार घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है.
By: ABP Live | Updated at : 17 May 2022 02:48 PM (IST)
Bangladesh Financial Crisis: श्रीलंका ( Sri Lanka) तो पहले से ही कंगाल हो चुका है अब पड़ोती मुल्क बांग्लादेश ( Bangladesh) पर भी वित्तीय संकट ( Financial Crisis) के बादल मंडरा रहे हैं. बांग्लादेश के विदेशी मुद्रा भंडार ( Forex Reserves) में लगातार गिरावट आ रही है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कमोडिटी, ईंधन, माल ढुलाई और खाद्य सामग्रियों की कीमतों में उछाल के चलते बांग्लादेश का आयात खर्च बढ़ा है. जुलाई 2021 से मार्च 2022 के बीच बांग्लादेश द्वारा किए जाने वाले वस्तुओं पर खर्च में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है.
आयात पर बढ़ा खर्च
बांग्लादेशी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, आयात पर होने वाला खर्च बढ़ा है पर उसके मुकाबले निर्यात से होने वाला आय नहीं बढ़ा है. इसके चलते व्यापार घाटा ( विदेशी मुद्रा व्यापार के तरीके Trade Deficit) लगातार बढ़ता जा रहा है. आयात पर ज्यादा डॉलर खर्च करने पड़ रहे हैं उस मुकाबले निर्यात से विदेशी मुद्रा प्राप्त नहीं हुआ है जिसके चलते विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आ रही है.
रिपोर्ट्स के मुताबिक विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आ रही है. और जितना विदेशी मुद्रा भंडार बचा है उसके जरिए केवल 5 महीने के लिए ही आयात जरुरतों को पूरा किया जा सकेगा. और अगर कमोडिटी, क्रूड और खाद्य वस्तुओं की कीमतें बढ़ती रही है पांच महीने से पहले भी भंडार खत्म हो सकता है. 2021-22 के जुलाई से मार्च के बीच बांग्लादेश में 22 अरब डॉलर के औद्योगिक कच्चे माल का आयात किया है. जो बीते साल की तुलना में 54 फीसदी ज्यादा है. कच्चे तेल के दामों में उछाल के चलते इंपोर्ट बिल 87 फीसदी बढ़ा है. उपभोक्ता उत्पादों के आयात पर 41 फीसदी इंपोर्ट बिल बढ़ा है. इन आंकड़ों से जाहिर है कि इंपोर्ट पर खर्च बढ़ता जा रहा है.
निर्यात बढ़ा पर कम आया विदेशी मुद्रा
बांग्लादेश का निर्यात का लक्ष्य 2021-22 वित्त वर्ष के 10 महीनों में ही पूरा हो गया. बांग्लादेश ने 43.34 अरब डॉलर के उत्पादों का निर्यात किया. जो बीते साल से 35 फीसदी ज्यादा है. जुलाई 2021 से अप्रैल 2022 के बीच गारमेंट्स एक्सपोर्ट्स, चमड़े और उससे बने उत्पादों के निर्यात बढ़कर एक अरब डॉलर अमेरिकी डॉलर से ऊपर जा पहुंचा है. जून और उससे बने उत्पादों के एक्सपोर्ट से भी एक बिलियन डॉलर के करीब आय हुई है. ऐसे में बांग्लादेश का आयात बिल बढ़ा है तो भी निर्यात से आय बढ़ सकता है. लेकिन निर्यात बढ़ने के बावजूद आय घटी है. डॉलर की कीमतों में बैंक और ओपेन मार्केट में 8 रुपये के करीब का अंतर है. इसके चलते लोग प्रवासी बांग्लादेशी अवैध तरीके से विदेशी मुद्रा भेज रहे हैं जिससे केंद्रीय बैंक के पास विदेशी मुद्रा की कमी आई है. बांग्लादेश के केंद्रीय बैंक के मुताबिक 2020-21 में प्रवासियों ने 26 अरब डॉलर से ज्यादा विदेशी मुद्रा भंडार भेजा था जो 2021-22 में घटकर 17 अरब डॉलर के करीब रह गया है.
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व्यापार घाटा की भरपाई
व्यापार घाटा बढ़ने से बांग्लादेश के रिजर्व बैंक को 5 अरब डॉलर से ज्यादा अपने विदेशी मुद्रा भंडार से खर्च करना पड़ा. डॉलर के मुकाबले स्थानीय करेंसी कमजोर होता जा रहा है. केंद्रीय बैंक ने टका और डॉलर का एक्सचेंज रेट 86.7 टका तय किया है लेकिन बैंक आयातकों से 95 टका वसूल कर रहे हैं. जिसके चलते आयातित वस्तुओं की कीमतें बढ़ी है जिससे महंगाई बढ़ी है.
बांग्लादेश की सरकार ने डॉलर संकट से निपटने के लिए लग्जरी उत्पादों के आयात पर रोक लगाया है तो सरकारी अधिकारियों के विदेश यात्रा को बैन कर दिया है. साथ ही गैर जरुरी परियोजनाओं के निर्माण पर अस्थाई तौर पर रोक लगा सकती है. फिलहाल बांग्लादेश के पास 42 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है. परंतु आईएमएफ बांग्लादेश पर विदेशी मुद्रा का सही तरीके से गणना करने का दवाब बना रहा है. अगर बांगलादेश आईएमएफ की बात मानता है तो बांग्लादेश के विदेशी मुद्रा भंडार में 7 से 8 अरब डॉलर की कमी आ सकती है, जिससे संकट बढ़ सकता है.
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Published at : 17 May 2022 02:28 PM (IST) Tags: Bangaldesh sri lanka economic crisis Bangaldesh Forex Reserves Bangladesh Financial Crisis हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: Business News in Hindi
विदेशी मुद्रा का प्रबंधन जरूरी
भारत का कुल विदेशी कर्ज 620 अरब डॉलर है और इसमें से 267 अरब डॉलर आगामी नौ माह में चुकाना है. कम अवधि के कर्ज का यह अनुपात 44 प्रतिशत है.
बीते आठ महीनों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने शेयर और बॉन्ड की बिकवाली कर लगभग 40 अरब डॉलर भारत से निकाल लिया है. इसी अवधि में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 52 अरब डॉलर की कमी हुई है. अमेरिकी डॉलर की तुलना में भारतीय रुपये के मूल्य में गिरावट जारी है. निर्यात की अपेक्षा आयात में तेजी से वृद्धि हो रही है. इसका मतलब है कि हमें भुगतान के लिए निर्यात से प्राप्त डॉलर से कहीं अधिक डॉलर की जरूरत है.
सामान्य परिस्थितियों में भी भारत के पास डॉलर की संभालने लायक कमी रहती आयी है, जो अमूमन सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) का एक से दो प्रतिशत होती है. आम तौर पर यह 50 अरब डॉलर से कम रहती है और आयात से अधिक निर्यात होने पर इसमें बढ़ोतरी होती है. इस कमी की भरपाई शेयर बाजार में विदेशी निवेश, विदेशी कर्ज, निजी साझेदारी या बॉन्ड खरीद से की जाती है.
इस तरह से आनेवाली पूंजी हमेशा ही चालू खाता घाटे से अधिक रही है, जिससे भारत का ‘भुगतान संतुलन’ खाता अधिशेष में रहता है. विदेशी कर्ज और उधार से ही ऐसा अधिशेष रखना जरूरी नहीं कि अच्छी बात ही हो, खासकर तब दुनियाभर में कर्ज का दबाव है. लेकिन सामान्य दिनों में विदेशियों का आराम से भारतीय अर्थव्यवस्था को कर्ज देना उनके भरोसे का संकेत है.
यह सब तेजी से बदलने को है और भारत के विदेशी मुद्रा कोष के संरक्षक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने चेतावनी का शुरुआती संकेत दे दिया है. अगर भाग्य ने साथ दिया और मान लिया जाये कि इस वित्त वर्ष में 80 अरब डॉलर की बड़ी रकम भी भारत में आये, तब भी भुगतान संतुलन खाते में 30-40 अरब डॉलर की कमी रहेगी. हमारा चालू खाता घाटा जीडीपी का 3.2 प्रतिशत तक होकर 100 अरब डॉलर के पार जा सकता है.
विदेशी मुद्रा के इस अतिरिक्त दबाव को झेलने के लिए हमारा भंडार पूरा नहीं होगा. इसीलिए रिजर्व बैंक ने अप्रवासी भारतीयों से डॉलर में जमा को आकर्षित करने के लिए कुछ छूट दी है. इसने विदेशी कर्ज लेना भी आसान बनाया है तथा भारत सरकार के बॉन्ड के विदेशी स्वामित्व की सीमा भी बढ़ा दी है. इन उपायों का उद्देश्य अधिक डॉलर आकर्षित करना है.
बढ़ते व्यापार और चालू खाता घाटा तथा इस साल चुकाये जाने वाले विदेशी कर्ज की मात्रा बढ़ने जैसे चिंताजनक संकेतों को देखते हुए ऐसे उपायों की जरूरत थी. भारत का कुल विदेशी कर्ज 620 अरब डॉलर है और इसमें से 267 अरब डॉलर आगामी नौ माह में चुकाना है. कम अवधि के कर्ज का यह अनुपात 44 प्रतिशत है और खतरनाक रूप से अधिक है.
कर्ज लेने वाली निजी कंपनियों को या तो नया कर्ज लेना होगा या फिर भारत के मुद्रा भंडार से धन निकालना होगा. दूसरा विकल्प वांछित नहीं है क्योंकि मुद्रा भंडार घट रहा है और उसे बढ़ाने की जरूरत है. पहला विकल्प आसान नहीं होगा क्योंकि डॉलर विकासशील देशों में जाने के बजाय अमेरिका की ओर जा रहा है. किसी भी स्थिति में नये कर्ज पर अधिक ब्याज देना होगा, जिससे भविष्य में बोझ बढ़ेगा.
रिजर्व बैंक की पहलें केंद्र सरकार द्वारा डॉलर बचाने के उपायों के साथ की गयी हैं. सोना पर आयात शुल्क बढ़ाकर 12.5 प्रतिशत कर दिया गया है. बहुत अधिक मांग के कारण भारत दुनिया में सोने का सबसे बड़ा आयातक है. शुल्क बढ़ाने से मांग कुछ कम भले हो, पर इससे तस्करी भी बढ़ सकती है. गैर-जरूरी आयातों पर कुछ रोक लगने की संभावना है ताकि डॉलर का जाना रुक सके.
विदेशी मुद्रा और विनिमय दर का प्रबंधन रिजर्व बैंक की जिम्मेदारी है. अभी शेयर बाजार पर निवेशकों के निकलने के अलावा तेल की बढ़ी कीमतों के कारण भी दबाव है. इससे भारत का कुल आयात खर्च (सालाना 150 अरब डॉलर से अधिक) प्रभावित होता है तथा अनुदान खर्च भी बढ़ता है क्योंकि तेल व खाद के दाम का पूरा भार उपभोक्ताओं पर नहीं डाला जाता है.
इस अतिरिक्त वित्तीय बोझ का सामना करने के लिए सरकार ने इस्पात और तेल शोधक कंपनियों के मुनाफे पर निर्यात कर लगाया है. इस कर से एक लाख करोड़ रुपये से अधिक के राजस्व संग्रहण की अपेक्षा है. यह रुपये के मूल्य में गिरावट के असर से निपटने का एक अप्रत्यक्ष तरीका है.
लेकिन निर्यात कर एक असाधारण और अपवादस्वरूप उपाय है तथा इसे तभी सही ठहराया जा सकता है, जब तेल की कीमतें बहुत अधिक बढ़ी हैं. भारत सरकार पर राज्यों को मुआवजा देने का वित्तीय भार भी है, जो वस्तु एवं सेवा कर के संग्रहण में कमी के कारण देना होता है. राज्य सरकारों पर अपने कर्ज का भी बड़ा बोझ है और 10 राज्यों की स्थिति तो खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी है, जो उनके दिवालिया होने का कारण भी बन सकता है.
बाहरी मोर्चे पर रुपये पर दबाव केवल तेल की कीमतें बढ़ने से आयात खर्च में वृद्धि के कारण नहीं है. तेल और सोने के अलावा अन्य कई उत्पादों, जैसे- इलेक्ट्रॉनिक्स, केमिकल, कोयला आदि के आयात में अप्रैल से जून के बीच 32 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. जून में सोने का आयात पिछले साल जून से 170 प्रतिशत अधिक रहा था. यह देखना होगा कि अधिक आयात शुल्क से सोना आयात कम होता है या नहीं.
भारतीय संप्रभु गोल्ड बॉन्ड खरीद सकते हैं, जो सोने का विदेशी मुद्रा व्यापार के तरीके डिमैट विकल्प है और कीमती विदेशी मुद्रा भी बाहर नहीं जाती. सरकार को आक्रामक होकर बॉन्ड बेचना चाहिए. आगामी महीनों में घरेलू और बाहरी मोर्चों पर दोहरे घाटे के प्रबंधन के लिए ठोस उपाय करने होंगे. उच्च वित्तीय घाटा उच्च ब्याज दरों का कारण बनता है और उच्च व्यापार घाटा रुपये को कमजोर करता है.
अगर दोनों घाटों को कम करने के लिए इन दो नीतिगत औजारों (ब्याज दर और विनिमय दर) पर ठीक से काम किया जाता है, तो हम संकट से बच सकते हैं. रुपये को कमजोर करना एक स्वाभाविक ढाल है, पर निर्यात बढ़ने तक अल्प अवधि में व्यापार घाटे को बढ़ा सकता है.
इसी तरह वित्तीय घाटा कम करने के लिए खर्च पर नियंत्रण और अधिक कर राजस्व संग्रहण जरूरी है. अधिक राजस्व के लिए आर्थिक वृद्धि और रोजगार में बढ़त की आवश्यकता है. दुनिया में मंदी की हवाओं के कारण अगर तेल के दाम गिरते हैं, तो यह भारत के लिए मिला-जुला वरदान होगा क्योंकि वैश्विक मंदी भारतीय निर्यात के लिए ठीक नहीं है, जो व्यापार घाटा कम करने के लिए जरूरी है.
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‘कई देश रुपये में ‘द्विपक्षीय व्यापार’ करने के इच्छुक,’ सीईए बोले- हमारी मुद्रा खुद इसमें सक्षम
रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, देश का विदेशी मुद्रा भंडार 26 अगस्त को समाप्त सप्ताह में तीन अरब डॉलर से अधिक घटकर 561.04 अरब डॉलर रह गया.
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण की फाइल फोटो | ANI photo
नई दिल्ली: मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) वी अनंत नागेश्वरन ने कहा है कि भारत अपनी मुद्रा रुपये का ‘बचाव’ नहीं कर रहा है और केंद्रीय बैंक द्वारा रुपये के उतार-चढ़ाव को धीमा और बाजार रुख के अनुरूप रखने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं. इसी के साथ ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा हाल ही में एक तंत्र की घोषणा के बाद कई देशों ने रुपये में ‘द्विपक्षीय व्यापार’ करने में रुचि दिखाई है.
नागेश्वरन ने मंगलवार को यहां एक कार्यक्रम में कहा कि रुपये का प्रबंधन जिस तरीके से किया जा रहा है वह अर्थव्यवस्था की बुनियाद को दर्शाता है.
उन्होंने कहा, ‘भारत अपने रुपये का ‘बचाव’ नहीं कर रहा है. मुझे नहीं लगता है कि देश की बुनियाद ऐसी है जहां हमें अपनी मुद्रा का बचाव करना पड़े. रुपया इसमें खुद सक्षम है.’
अगस्त में रुपया अपने सर्वकालिक निचले स्तर 80.15 प्रति डॉलर पर आ गया था. फिलहाल या 79.25 प्रति डॉलर पर है.
सीईए ने कहा, ‘रिजर्व बैंक यह सुनिश्चित कर रहा है कि रुपया जिस भी दिशा में जा रहा है, वह काफी तेजी से नहीं हो और बाजार रुख के अनुरूप हो.’
अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक
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विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट पर उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर जोखिम से बचाव का रुख पूंजी को यहां आने से रोक रहा है. निश्चित रूप से इससे विदेशी मुद्रा भंडार पर असर पड़ रहा है.’
रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, देश का विदेशी मुद्रा भंडार 26 अगस्त को समाप्त सप्ताह में तीन अरब डॉलर से अधिक घटकर 561.04 अरब डॉलर रह गया.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा हाल ही में एक तंत्र की घोषणा के बाद कई देशों ने रुपये में ‘द्विपक्षीय व्यापार’ करने में रुचि दिखाई है.
वित्त मंत्री ने हीरो माइंडमाइन शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि यह सरकार द्वारा किए गए अन्य उपायों के साथ पूर्ण पूंजी खाता परिवर्तनीयता की दिशा में उठाया गया कदम है.
यह पूछे जाने पर कि क्या भारत पूंजी खाते में बदलाव के लिए तैयार है, उन्होंने कहा यह रूबल-रुपये का पुराना प्रारूप नहीं है. अब यह द्विपक्षीय रुपया व्यापार का प्रारूप आया है. मुझे खुशी है कि केंद्रीय बैंक इसे ऐसे समय लाया है, जब यह बहुत महत्वपूर्ण था.
उन्होंने इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि कई देशों ने रुपये में व्यापार करने में रुचि दिखायी है, कहा, ‘एक तरह से यह भारतीय अर्थव्यवस्था को हमारी उम्मीद से अधिक खोलने के समान है.’
सीतारमण ने कहा, ‘कोविड-19 महामारी के बाद भारत काफी अधिक संख्या में कुछ अलग हटकर समाधान लेकर आ रहा है…जिस तरह से हम आगे बढ़कर अन्य देशों से बात कर रहे हैं, वैसे ही हम सीमापार लेनदेन को सक्षम करने के लिए देशों के बीच अपने डिजिटल मंच को अंतर-संचालित (इंटरऑपरेबल) बनाने के भी इच्छुक हैं.’
गौरतलब है कि रिजर्व बैंक ने इस साल जुलाई में एक विस्तृत परिपत्र जारी कर बैंकों से घरेलू मुद्रा में वैश्विक व्यापारिक समुदाय की बढ़ती रुचि को देखते हुए रुपये में निर्यात और आयात लेनदेन के लिए अतिरिक्त व्यवस्था करने के लिए कहा था.
रिजर्व बैंक द्वारा रुपये में सीमापार व्यापार लेनदेन की अनुमति देने की घोषणा मुद्रा के अंतरराष्ट्रीयकरण की दिशा में समय पर उठाया गया कदम है.
मौजूदा समय में यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद से भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापार का एक बड़ा हिस्सा अमेरिका एवं यूरोप द्वारा लगाये गये प्रतिबंधों के चलते रुपये में हो रहा है.
केंद्रीय बैंक ने कहा था कि व्यापार लेनदेन के निपटान के लिए संबंधित बैंकों को साझेदार व्यापारिक देश के बैंकों के विशेष रुपया ‘वोस्ट्रो’ खातों की जरूरत होगी. वोस्ट्रो ऐसा खाता होता है जो एक संपर्ककर्ता बैंक दूसरे बैंक की ओर से रखता है. उदाहरण के लिए किसी विदेशी बैंक का वोस्ट्रो खाता भारत में किसी घरेलू बैंक द्वारा संभाला जा रहा है. इन खातों का इस्तेमाल विदेशी व्यापार के निपटान किया जाता है.