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खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है

खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है

लेखांकन के कार्य – Function Of Accounting In Hindi

लेखांकन के कार्य – Function Of Accounting

लेखांकन के 6 महत्वपूर्ण कार्य हैं। जो कि नीचे इस प्रकार से दिए गए हैं –
1.लेखा कार्य
2.व्याख्या कार्य
3.संप्रेषण कार्य
4.वैधानिक कार्य
5.व्यवसाय की संपत्तियों को सुरक्षा प्रदान करना
6.निर्णय लेना

1.लेखा वर्क – लेखांकन का यह आधारभूत कार्य होता है। इस कार्य के अंतर्गत व्यवसाय के प्रारंभिक बहियों (Book) में तिथिवार, क्रमबद्ध तरीके से,उनको सही खाते में वर्गीकरण करना,एवं उनसे खाते तैयार करना शामिल होता है। इसमें तलपट का कार्य भी सम्मिलित होता है जिसके आधार पर अंतिम खाता बनाया जाता है ।अंतिम खाता के अंतर्गत व्यापार खाता (Trading Account) ,लाभ- हानि खाता (Profit & Loss A/C) तथा आर्थिक चिट्ठा (Balance Sheet) तैयार किया जाता है।

2. व्याख्या वर्क – इसके अंतर्गत लेखाकर्म का मुख्य काम सूचनाओं में हित रखने वाले पक्षों ke लिए वित्तीय विवरण (Financial Statement) व रिपोर्ट का व्याख्या तथा विश्लेषण करना होता है।

3. संप्रेषण वर्क –जिस प्रकार से भाषा के माध्यम से हम दूसरे व्यक्तियों से बातचीत कर लेते हैं । ठीक वैसे ही लेखांकन व्यवसाय की वित्तीय स्थिति व अन्य सूचनाओं को जानने एवं उन सभी पक्षकारों को प्रदान करता है जो आवश्यक है।

लेखांकन के अन्य कार्य

4. वैधानिक वर्क – वैधानिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना लेखांकन का अहम् कार्य होता है। कई तरह के कानूनों विधान जैसे की- बिक्री कर अधिनियम, आयकर अधिनियम, कंपनी अधिनियम आदि द्वारा कई तरह के विवरणों को जमा करने पर बल दिया जाता है। उदाहरण में – आयकर रिटर्न, बिक्री कर रिटर्न, अंतिम खाते आदि।यह कार्य तभी पूरा हो सकता है जब लेखांकन ठीक से रखा जाए।

5. व्यवसाय की संपत्तियों को सुरक्षा देना – व्यवसाय की संपत्तियों को सुरक्षा देना यह लेखांकन का महत्वपूर्ण कार्य होता है। यह कार्य तभी सफल हो सकता है जब सभी संपत्तियों का उचित लेखा – जोखा रखा गया हो।

6. निर्णय लेना – लेखांकन करने से किसी भी व्यवसाय में एक महत्वपूर्ण आंकड़ा उपलब्ध होता है । जिससे कि निर्णय लेने में सुविधा होती है। यह लेखांकन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य माना जाता है।

अंकेक्षण का वर्गीकरण अथवा प्रकार

जब अंकेक्षण कराना किसी विधान द्वारा अनिर्वाय हो तो वह वैधानिक या अनिर्वाय अंकेक्षण कहलाता है। इसमे अंकेक्षण का क्षेत्र विधान द्वारा तय होता है। अंकेक्षण व नियोक्ता इसे किसी समझौते द्वारा खत्म नही कर सकते है। भारत मे कंपनी अधिनियम 1956 के अनुसार," खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है हर कंपनी जिसका रजिस्ट्रेशन इस अधिनियम के अंतर्गत हुआ है उसको अपने खातों का अंकेक्षण किसी योग्य अंकेक्षण से कराना होगा।" इसके अलावा सरकार ने कुछ अन्य अधिनियम भी पास किये है, जिनके अनुसार सार्वजनिक प्रन्यास, बिजली कंपनियों, गैस कंपनियों आदि हेतु अपने खातों का अंकेक्षण कराना अनिवार्य है।

2. निजी या ऐच्छिक अंकेक्षण

जो अंकेक्षण निजी, एकांकी व्यापारी, साझेदारी फर्म अथवा अन्य संस्था के हिसाब-किताब की जांच करने के लिये कराया जाता है, उसे निजी या ऐच्छिक अंकेक्षण कहते है। इस अंकेक्षण मे कार्यक्षेत्र किसी विधान द्वारा निश्चित नही होता बल्कि यह पूर्णतया अंकेक्षण व नियोक्ता के समझौते पर निर्भर होता है।

3. सरकारी अंकेक्षण

केन्द्रीय, राज्य तथा अन्य सरकारें अपने विभागों व अपने द्वारा चलाई जा रही कंपनियों, (सरकारी कंपनियों) के हिसाब-किताब की जांच करवाती है। इस कार्य के लिये अलग से अंकेक्षण विभाग बनाया जाता है। इस विभाग का सर्वोच्च अधिकारी जिसे कम्पट्रोलर एवं ऑडीटर जनरल कहते है राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त होता है। यह विभाग जांच के बाद सरकार के सामने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करता है।

(ब) अंकेक्षण का लेखों की प्रकृति के अनुसार वर्गीकरण

1. लागत अंकेक्षण

किसी संस्था के लागत लेखों की जांच को लागत अंकेक्षण कहते है। लागत अंकेक्षण का उद्देश्य, गहन जांच करके उत्पादन लागत के औचित्य के बारे मे जानकारी प्राप्त करना है।

2. वित्तीय अंकेक्षण

जब अंकेक्षक प्रारम्भिक पुस्तकों, लाभ हानि खाते व चिट्ठे का अंकेक्षण करता है तो उसे वित्तीय अंकेक्षण कहा जाता है। साधारण भाषा मे अंकेक्षण से तात्पर्य वित्तीय अंकेक्षण से ही लगाया जाता है।

(स) अंकेक्षण का व्यावहारिक वर्गीकरण

1. पूर्ण अंकेक्षण

यदि किसी अवधि विशेष से संबंधित सभी लेखा पुस्तकों की विधिपूर्वक जांच हो, जिससे कोई भी लेन-देन या लेखा न छूट जाये तो इस प्रकार की जांच को पूर्ण अंकेक्षण कहते है।

2. आंशिक अंकेक्षण

यदि संस्था का स्वामी अपने व्यापारिक वर्ष के संपूर्ण लेखो का अंकेक्षण न कराकर उसके स्थान पर उसके कुछ अंश का अंकेक्षण कराता है तो इसे आंशिक अंकेक्षण कहते है। आंशिक अंकेक्षण भी दो प्रकार का होता है--

(A) समयानुसार आंशिक अंकेक्षण

यदि 3 या 4 माह के हिसाब से अंकेक्षण कराया जाये तो उसे समयानुसार आंशिक अंकेक्षण कहते है।

(B) कार्यनुसार आंशिक अंकेक्षण

समस्त लेखा पुस्तकों के स्थान पर किसी विशेष लेखा पुस्तक का अंकेक्षण कराया जाये तो उसे कार्यानुसार आंशिक अंकेक्षण कहते है।

3. सामयिक अंकेक्षण

इसे अन्तिम अंकेक्षण, चिठ्टा अंकेक्षण और वार्षिक अंकेक्षण भी कहते है। जब वर्ष के आखिर मे मे पुस्तकें बंद हो जाती है तथा अंतिम खाते तैयार हो जाते है तब अंकेक्षण कार्य शुरू किया जाता है और पूरा करके ही अंकेक्षण कार्य समाप्त किया जाता है इसे सामयिक अंकेक्षण कहते है।

4. चालू अंकेक्षण

जब अंकेक्षण या उसका स्टाॅक वर्ष भर संस्था मे उपस्थित रहकर या एक निश्चित समयान्तर पर अंकेक्षण का कार्य करता रहता है तो उसे चालू अंकेक्षण कहते है। इसे निरन्तर अंकेक्षण के नाम से भी जाना जाता है।

5. रोकड़ अंकेक्षण

जब कोई सिर्फ नकद लेखों के अंकेक्षण के उद्देश्य के अंकेक्षण को नियुक्त करती है तो इस प्रकार के अंकेक्षण को रोकड़ अंकेक्षण कहते है। रोकड़ की जांच करते समय नैत्यक जांच (Routine Checking) को ही अपनाना चाहिए। अंकेक्षण को अपनी रिपोर्ट मे यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि उसमे सिर्फ नकद लेखों का ही अंकेक्षण किया गया है।

6. अन्तरिम या मध्य अंकेक्षण

वित्तीय वर्ष के बीच मे किसी विशेष उद्देश्य हेतु किया गया अंकेक्षण मध्य या अन्तरिम अंकेक्षण कहलाता है। जैसे यदि वर्ष के मध्य मे कोई कंपनी अन्तरिम लाभांश (Interim Dividend) घोषित करती है तो उसे सभी खाते बंद करके लाभ की सही स्थिति जानने हेतु बीच मे ही अंकेक्षण कराना पड़ता है। अन्तरिम अंकेक्षण से वार्षिक अंकेक्षण पर समय की बचत होती है। कभी-कभी व्यापार बेचने हेतु व नये साझेदार के प्रवेश करने या किसी साझेदार के अवकाश ग्रहण करने पर तथा अन्य इसी प्रकार के कार्यों हेतु भी अन्तरिम अंकेक्षण उपयोगी होता है।

7. अन्तरिम अंकेक्षण

बड़े-बड़े व्यापारों मे आजकल बहुत मात्रा मे लेन-देन होने के कारण एक कर्मचारी द्वारा किये गये कार्य को कुछ विश्वासी, अनुभवी और ईमानदार व्यक्ति दोबार जांच करते है, अर्थात् वे खुद अंकेक्षण का कार्य करते है। इस प्रकार की जांच को आन्तरिक अंकेक्षण कहते है। इससे वार्षिक अंकेक्षण मे बहुत सहायता मिलती है।

8. प्रमाणिक अंकेक्षण

यदि अंकेक्षण करते समर कुछ चुनी हुई प्रविष्टियों की गहनता से जांच की जाये और शेष मदों को एक सरसरी निगाह से जांचा जाये तो उसे प्रमाणिक अंकेक्षण कहते है।

9. प्रबंध अंकेक्षण

यह अंकेक्षण का सलाहकारी रूप हैह प्रबंधक पहले योजना बनाता है फिर उस पर कार्य करता है। अंकेक्षण व्यवसाय के विभिन्न पहलुओं, जैसे-- इन्जीनियरी, उत्पादन, क्रय-विक्रय आदि के असली कार्य परिणामों की जांच करता है तथा उसकी तुलना पूर्व निर्धारित लक्ष्यों से करता है।

10. विस्तृत अंकेक्षण

विस्तृत अंकेक्षण पूर्ण अंकेक्षण से भिन्न होते है। क्योंकि विस्तृत अंकेक्षण मे सारे व्यवहारों व लेखों की जांच न होकर, उसके स्थान पर चुने हुए व्यवहारों की गहन जांच होती है। ऐसे अंकेक्षण का क्षेत्र सीमित होता है। प्रायः यह किसी विशिष्ट उद्देश्य से होता है।

भारतीय बैंकों में कितने प्रकार के खाते खोले जाते हैं?

भारत में आधुनिक बैंकिंग सेवाओं का इतिहास दो सौ वर्ष पुराना है। देश में विभिन्न आय वर्ग के लोगों, उनकी जरूरतों और अर्थव्यवस्था की जरूरतों के हिसाब से विभिन्न प्रकार के बैंक खातों का विकास हुआ है, जैसे चालू खाता बड़े व्यापारी या संस्थान खुलवाते हैं जबकि बचत खाता मध्य आय वर्ग के लोग खुलवाते हैं l इस लेख में हम बचत खातों, चालू खातों और सावधि जमा खातों के बारे में पढेंगेl

भारत में आधुनिक बैंकिंग सेवाओं का इतिहास दो सौ वर्ष पुराना है। देश में विभिन्न आय वर्ग के लोगों, उनकी जरूरतों और अर्थव्यवस्था की जरूरतों के हिसाब से विभिन्न प्रकार के बैंक खातों का विकास हुआ है, जैसे चालू खाता बड़े व्यापारी या संस्थान खुलवाते हैं जबकि बचत खाता, मध्य आय वर्ग के लोग खुलवाते हैं l इस लेख में हम बचत खातों, चालू खातों और सावधि जमा खातों के बारे में पढेंगेl

बैंक खातों के प्रकार निम्न हैं:-

1. बचत खाता

2. चालू खाता

3. सावधि जमा खाता

4. आवर्ती जमा खाता

5. नो-फ़्रिल अकाउंट या बुनियादी बचत खाता

आइये अब इन खातों के बारे में एक-एक करके विस्तार से जानते हैं कि कौन सा खाता किन लोगों के द्वारा खुलवाया जाता है l

1. बचत बैंक खाता (Savings Bank Account)

इस प्रकार का खाता किसी भी सरकारी या निजी बैंक में न्यूनतम रुपये जमा करके खुलाया जा सकता हैl यह न्यूनतम जमा राशि हर बैंक में अलग अलग होती है लेकिन ज्यादातर सरकारी बैंकों में यह राशि 1000 रुपये होती हैl इस प्रकार के खाते में धन किसी भी समय जमा किया या निकाला जा सकता है। इस प्रकार के खातों से रुपये निकालने के लिए खाता धारक बैंक में निकासी फॉर्म (withdrawal from), चेक जारी करके या एटीएम कार्ड का उपयोग करके निकाल सकता हैl

हाल ही में बैंकों में भीड़ को रोकने के लिए कुछ बैंकों जैसे स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया, एक्सिस बैंक आदि ने इस प्रकार के खाते से पैसा निकालने के नये नियम बना दिए हैंl बचत खाता में जमा राशि पर बैंकों द्वारा ब्याज भी दिया जाता है हालांकि यह ब्याज दर हर बैंक में अलग अलग होती है और समय-समय पर बदलती भी रहती हैl बैंक के नियमों के अनुसार खाता धारक द्वारा बचत खाते में एक न्यूनतम शेष राशि (minimum balance) को बनाए रखा जाना चाहिए। बैंक इस प्रकार के खातों में जमा पर ब्याज प्रतिदिन की शेष राशि पर देता है l

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2. चालू जमा खाता (Current Deposit Account)

बड़े व्यवसायी, कंपनियों और संस्थान जैसे स्कूल, कॉलेज, और अस्पतालों को अपने बैंक खातों के माध्यम से भुगतान करना पड़ता है चूंकि बचत खाते के माध्यम से आप अनगिनत जमा या निकासी नही कर सकते इसलिए ऐसे बड़े खाता धारकों के लिए चालू जमा खाता खुलवाना अनिवार्य होता है, क्योंकि इस प्रकार के लोगों को दिन में कई बार पैसे की जरुरत पड़ती है इसलिए ये लोग इस प्रकार के खाते को खुलवाना पसंद करते हैंl चालू जमा खाता पर बैंक, खाता धारक को उसकी जमा राशि पर ब्याज नही देता है बल्कि प्रत्येक साल खाता धारक ही बैंक को एक निश्चित राशि का भुगतान बैंक को करता हैl ग्राहकों की सुविधा के लिए बैंक खाता धारकों को उनकी जमा राशि से अधिक की निकासी की सुविधा भी देता है इसको ओवरड्राफ्ट सुविधा (overdraft facility) के रूप में जाना जाता है।

3. सावधि जमा खाता या मियादी जमा खाता (Fixed Deposit Account or Term Deposit Account)

जिन लोगों के पास प्रचुर मात्रा में धन होता है लेकिन वे लोग शेयर बाजार के रिस्क को झेलना नही चाहते हैं और यदि ऐसे लोग लम्बी अवधि के लिए धन बचाना चाहते हैं तो वे सावधि जमा खाता या मियादी जमा खाता खुलवा लेते हैं l अब आप यहाँ पर यह सोच सकते हैं कि लोग बचत खाता में भी तो पैसे जमा करा सकते हैं फिर सावधि जमा खाता क्यों खुलवाते हैं ? इसका कारण यह है कि बचत खाता पर बैंक बहुत ही कम ब्याज देता है जैसे 3% से 5% वार्षिक परन्तु सावधि जमा खाता में 8% से 10% का ब्याज मिलता है l सावधि जमा खाता की विशेषता यह होती है कि इसमें धन एक निश्चित समय के लिए जमा हो जाता है जैसे 1 साल से लेकर 10 साल तकl यदि कोई खाता धारक किसी खास जरुरत के समय अपने इस सावधि जमा खाता में जमा राशि को निकालना चाहता है तो बैंक उस पर कुछ पेनाल्टी लगाकर उसका शेष धन वापस कर देता है l

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4. आवर्ती जमा खाता (Recurring Deposit Account)

इस प्रकार का खाता उन लोगों के लिए उपयुक्त है जो नियमित रूप से बचत कर सकते हैं और एक निश्चित समय में जमा राशि पर उचित रिटर्न अर्जित करने की उम्मीद करते हैं। इस प्रकार का खाता खोलते समय एक व्यक्ति को निश्चित अवधि के लिए (जैसे 1 साल या 5 साल तक) महीने में खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है एक बार एक निश्चित राशि जमा करनी पड़ती है। इसमें जमाकर्ता को अवधि पूरी होने के बाद पूरी जमा राशि पर ब्याज सहित मूल राशि लौटा दी जाती हैl जमाकर्ता अपने खाते को परिपक्वता से ही पहले बंद कर सकता है और जिस अवधि तक के लिए धन जमा था, पर ब्याज का भुगतान कर दिया जाता हैl इस प्रकार के खातों में जमा राशि पर ब्याज की दर बचत जमा से अधिक, लेकिन सावधि जमा की दर से कम होती है।

RECURRING ACCOUNT DEPOSIT

5. बुनियादी बचत खाता (Basic Saving Accounts ): इन खातों को '' नो फ्रिल खाता 'भी कहा जाता था l इस प्रकार के खातों की शुरुआत रिज़र्व बैंक ने 2005 में समाज के वंचित और गरीब लोगों को बैंकिंग सुविधा देने के लिए शुरू की थी l इस प्रकार के खातों को बिना रुपये जमा किये (zero balance) खुलवाया जाता था और खाता धारक को न्यूनतम बैलेंस बनाये रखने की बाध्यता से भी छूट दी गयी थीl सन 2012 में भारतीय रिज़र्व बैंक ने 'नो फ्रिल खातों' को बुनियादी बचत खातों (BSBDA-Basic Savings Bank Deposit Account) में बदलने के निर्देश दिए थेl BSBDA दिशानिर्देश "भारत में सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों, और जिन विदेशी बैंकों की शाखाएं भारत में हैं सभी पर लागू होते हैंl इन बुनियादी बचत खातों धारकों पर खाता के ना चलाने पर या बैंक किसी भी तरह का शुल्क नही लगा सकता हैl बुनियादी बचत खाता धारकों को एक माह में अधिकतम चार निकासी की अनुमति दी जाएगी, जिसमें एटीएम के माध्यम से हुई निकासी भी शामिल है।

Basic-Saving-Accounts

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि भारत में बैंकिंग व्यवस्था को बहुत ही व्यवस्थित तरीके से बनाया गया है ताकि समाज के सभी वर्गों अमीर, गरीब, मध्यवर्ग और संस्थानों आदि के हितों की रक्षा की जा सके l

अंकेक्षण के प्रकार एवं वर्गीकरण (TYPES AND CLASSIFICATION OF AUDIT)

अंकेक्षण एक विधिवत् मूल्यांकन एवं परीक्षण प्रक्रिया है । जिसके द्वारा किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति हेतु किया जाता है । और अंकेक्षण कार्य के सम्बन्ध में अपनी राय प्रतिवेदन के रूप में सम्बन्धित पक्ष को प्रेषित की जाती है। तथा अंकेक्षण के सम्बन्ध में उपर्युक्त कथन, अंकेक्षण के प्रकारों का वर्णन को बताता है।

अंकेक्षण को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जाता है।

(1) व्यापारिक संस्था के संगठन के अनुसार
(2) व्यावहारिक दृष्टिकोण से

व्यापारिक संस्था के संगठन के अनुसार-
वैधानिक अंकेक्षण
निजी अंकेक्षण
सरकारी अंकेक्षण
आन्तरिक अंकेक्षण

व्यावहारिक दृष्टिकोण से अंकेक्षण –

चालू अंकेक्षण
वार्षिक अंकेक्षण
आंतरिम अंकेक्षण
लागत अंकेक्षण
प्रबंधकीय अंकेक्षण
कर अंकेक्षण
सामाजिकअंकेक्षण
पर्यावरणअंकेक्षण
रोकण अंकेक्षण
निपुणता अंकेक्षण
चिठ्हे का अंकेक्षण
संगामी अंकेक्षण
पूर्ण अंकेक्षण
आंशिक अंकेक्षण

वैधानिक अंकेक्षण (Statutory Audit)-

उन संस्थाओं में जिनमें किसी विधान के अनुसार सारा कार्य किया जाता है। अंकेक्षण भी उसी प्रकार उस विधान के अन्तर्गत अनिवार्य कर दिया गया है। जो भिन्न-भिन्न अधिनियमों के आधार पर चलने वाली संस्थाओं के लिए विधान के अनुसार अंकेक्षण अनिवार्य कर दिया गया है। इसे वैधानिक अंकेक्षण कहते हैं। ऐसे अंकेक्षण के निम्न उदाहरण हो सकते हैं।

कम्पनियों का अंकेक्षण (Audit of Companies) –

भारत में सन् 1913 से ही भारतीय कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत सीमित दायित्व वाली कम्पनियों के हिसाब-किताब का अंकेक्षण अनिवार्य कर दिया गया है। कम्पनी अधिनियम, 1956 के अनुसार अंकेक्षण से सम्बन्धित कुछ परिवर्तन भी किये गये हैं। प्रत्येक कम्पनी के लिए यह निर्धारित कर दिया गया है कि वह अपने हिसाब-किताब का वार्षिक अंकेक्षण कराने के लिए एक निश्चित योग्यता रखने वाला अंकेक्षक को नियुक्त करे। कम्पनियों के अंकेक्षण की रिपोर्ट अंकेक्षक द्वारा अंशधारियों को दी जाती है जिसमें वे वित्तीय लेखों की शुद्धता एवं सत्यता को प्रमाणित करते हैं।

प्रन्यासों का अंकेक्षण (Audit of Trust)—

जायदातर प्रन्यास (trusts) जो कि नाबालिगों, विधवाओं तथा असहाय व्यक्तियों के लिए बनाये जाते हैं। और जो इन प्रन्यासों के हिसाब-किताब न तो अच्छी तरह समझ सकते हैं। और न उसकी आलोचना और छानबीन ही कर सकते हैं।ऐसे कुछ प्रन्यास जो अपना हिसाब-किताब नहीं रखते और यदि रखते भी हैं तो वे गलतियों तथा छल-कपट से पूर्ण होते हैं। इस प्रकार प्रन्यासी अपने कोषों का दुरुपयोग भी किया करते हैं। अतः भारत में कुछ राज्यों ने सार्वजनिक प्रन्यास अधिनियम (Public Trusts Act) बना दिया है ।

अन्य संस्थाओं का अंकेक्षण (Audit of other Organisations) –

सरकार ने कुछ ऐसे अधिनियम भी बनाये हैं जिनके अनुसार कम्पनी तथा प्रन्यास के अतिरिक्त अन्य सार्वजनिक संस्थाएं चलती हैं। जैसे बिजली तथा गैस कम्पनियां अपने-अपने अधिनियमों के आधार पर कार्य करती हैं। इन अधिनियमों के अन्तर्गत इन संस्थाओं के लिए हिसाब-किताब का अंकेक्षण अनिवार्य किया गया है।

सार्वजनिक संस्थाओं का एक दूसरा वर्ग भी है जो अपने-अपने विधि विधान के अनुसार अंकेक्षण कार्य करवाता है।

निजी अंकेक्षण (Private Audit)

जिन संस्थाओं के हिसाब-किताब के अंकेक्षण के लिए किसी प्रकार का वैधानिक बन्धन नहीं होता है। ऐसे अंकेक्षण निजी अंकेक्षण कहलाता है। ये संस्थाएं अपनी इच्छानुसार अंकेक्षण करवाती हैं । और अंकेक्षण का क्षेत्र भी निश्चित करती हैं।

इनके तीन वर्ग हो सकते हैं ।

एकाकी व्यापार का अंकेक्षण (Audit of account of sole trader) –

एकाकी व्यापारी के हिसाब-किताब का अंकेक्षण स्वयं उसकी इच्छा पर निर्भर करता है उसमे कितने खातों का कब और कितना अंकेक्षण किया जाए यह स्वयं निश्चित करता है। इसमे अंकेक्षक का कार्य, उसके अधिकार तथा दायित्व आदि सभी बातें एकाकी व्यापारी तथा अंकेक्षक के बीच होने वाले समझौते के अनुसार ही निश्चित की जाती हैं। अंकेक्षक के लिए यह आवश्यक है कि वह शर्त प्रारम्भ में तय कर लिया जाता है। और लिखित रूप में सारे आदेश प्राप्त करने के पश्चात् ही अपना कार्य सुरू किया जाता है।

साझेदारी फर्मों का अंकेक्षण साझेदारी अधिनियम के अनुसार साझेदारी फर्म का अंकेक्षण होना अनिवार्य नहीं होता है। पर सभी साझेदारों के साथ फर्म के लिए यह लाभदायकहोगा कि फर्म का अंकेक्षण होना आवश्यक है। साझेदारी अनुबन्ध में इस बात का उल्लेख होना चाहिए कि साझेदारी के खातों का अंकेक्षण किस प्रकार किया जाये । जिससे साझेदारों तथा अंकेक्षक के मध्य अंकेक्षण का अनुबन्ध होना चाहिए जो कार्य की शर्तों व दायित्वों के अनुसार किया जाता है। यदि कोई और समझौता न हो तो साझेदारी अधिनियम का पालन करना चाहिए।

प्राइवेट व्यक्तियों के हिसाब–किताब का अंकेक्षण (Audit of accounts of private individuals)-

इसमे उन व्यक्तियों के हिसाब-किताब का अंकेक्षण होता है जिनकी आमदनी जादा होती है तथा साथ ही साथ उनके व्यय भी पर्याप्त होते हैं। इन व्यक्तियों के खातों का अंकेक्षण होने से हिसाब-किताब रखने वाले कर्मचारियों पर नैतिक दबाव होता है। और साथ ही आयकर आदि के लिए भी अंकेक्षित खातों से अधिक सहायता मिलती है। जो व्यक्ति अपने एजेण्टों के सहारे काम करता है उसके लिए भी अंकेक्षण लाभदायक होता है।

रोकड़ अंकेक्षण (Cash Audit)-

इस प्रकार के ऑडिट मे जब कोई संस्था किसी निश्चित अवधि के लिए रोकड़ के लेन-देनों की जाँच करने के लिए अंकेक्षक की नियुक्ति करती है तो इसे रोकड़ अंकेक्षण के नाम से जाना जाता है। इस खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है प्रणाली के अन्तर्गत आवश्यक प्रमाणों की सहायता से अंकेक्षक के द्वारा आय-व्यय के नकदी लेन-देनों का ही अंकेक्षण किया जाता है। यह रोकड़ बही तक ही सीमित होता है।

सरकारी अंकेक्षण (Government Audit)-

सरकारी विभागों के हिसाब-किताब की जाँच करना सरकारी अंकेक्षण के अंतर्गत आता है। इस कार्य के लिये जिन अंकेक्षकों की नियुक्ति की जाती है। उनके अधिकार एवं कर्त्तव्य सरकारी नियमों के अनुसार ही होते हैं। केन्द्रीय सरकार के विभागों के वित्तीय खातों के अंकेक्षण के लिये अलग -अलग विभाग होता है। जिसका सबसे बड़ा अधिकारी कम्पट्रोलर एण्ड आडीटर जनरल कहलाता है।

अन्तरिम या मध्य अंकेक्षण (Interim Audit)-

वित्तीय वर्ष के बीच में किसी विशेष उद्देश्य से लेखा-पुस्तकों का किया जाने वाला अंकेक्षण अन्तरिम अथवा मध्य अंकेक्षण कहलाता है।

चिट्ठा अंकेक्षण (Balance Sheet Audit)-

इस अंकेक्षण से आशय चिट्ठे की विभिन्न मदों के अंकेक्षण से है। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते है कि चिट्टे के सम्पत्ति एवं दायित्व दोनों पक्षों की विभिन्न मदों का अंकेक्षण ही चिट्ठा अंकेक्षण कहलाता है।

प्रमाण अंकेक्षण (Standard Audit)

प्रमाण अंकेक्षण का आशय उस अंकेक्षण से है । जिसके अंतर्गत कुछ विशेष मदों की पूर्ण जाँच की जाती है। तथा शेष मदों की जाँच सरसरी निगाह (Test Checking) से की जाती है ।

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