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सकल मुनाफे की अवधारणा

सकल मुनाफे की अवधारणा
May 1, 2020

कुंजी लाभप्रदता संकेतक: सूत्र

निरंतर मूल्यांकन की जरूरत होती किसी भी कंपनी के लिए काम करते हैं। यह यह संभव वित्तीय, निवेश और संचालन के संगठन के कमजोर और मजबूत सुविधाओं का निर्धारण करने के लिए बनाता है। ऐसा करने के लिए, विश्लेषकों कई तकनीकों का उपयोग करें। मूल्यांकन प्रणाली में बहुत महत्वपूर्ण मार्जिन, सूत्र परिभाषाएँ जो उद्यम की व्यवहार्यता का मूल्यांकन करने के लिए अनुमति देते हैं पर कब्जा। यह दृष्टिकोण कई संकेतकों का अन्वेषण मान लिया गया है। इस वित्तीय संस्था के राज्य सकल मुनाफे की अवधारणा में एक व्यापक जानकारी मिलती है की अनुमति देगा। ठीक से मुनाफे के आंकड़े को समझने के लिए, यह उनकी गणना के फार्मूले की प्रकृति जांच करनी चाहिए।

मुनाफे की अवधारणा

लाभप्रदता संकेतक, सूत्र जिनमें से नीचे चर्चा की जाएगी, हमें कंपनी के रिश्तेदार प्रदर्शन संकेतक अनुमान लगाने के लिए अनुमति देते हैं। यह लागत की राशि और परिचालन की अवधि के दौरान उनके प्रभाव की तुलना द्वारा किया जा सकता है।

लाभप्रदता - है लाभप्रदता (लाभप्रदता) उद्यम की। विश्लेषकों, निवेशकों और प्रबंधन के लिए सबसे महत्वपूर्ण संकेतक में से एक। समझने के लिए कैसे प्रभावी कंपनी अपनी गतिविधि के विभिन्न क्षेत्रों के संदर्भ में समीक्षाधीन अवधि में काम किया है, लाभ के बुनियादी संकेतकों के फार्मूला लागू।

कंपनी के प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए, विश्लेषक संसाधन है कि यह गठन से लाभ संबंधित होने चाहिए। संकेतक उद्यम की लाभप्रदता की, सूत्र है कि प्रक्रिया में प्रयोग किया जाता है लाभ जो पूरी उत्पादन लाता है, या अपनी पूंजी में निवेश इकाई में में व्यक्त किया जा सकता है।

कंपनी के कुछ संसाधनों के साथ तुलना में लाभ की किस तरह के आधार पर, और मूल्यांकन के प्रकार अलग करते हैं। सर्वाधिक उपयोग होने वाले लोगों को 4 गुणांक हैं:

  • संपत्ति;
  • बिक्री;
  • प्रत्यक्ष लागत;
  • सामान्य गतिविधि।

तुम भी अपनी पूंजी के मुनाफे का विश्लेषण कर सकते हैं।

संपत्ति पर वापसी

गणना करने के लिए इस तरह के एक डेटा प्रपत्र संख्या 1, हकदार "शेष" और जो "लाभ और हानि" कहा सकल मुनाफे की अवधारणा सकल मुनाफे की अवधारणा जाता है प्रपत्र संख्या 2, के रूप में एक इकाई, की वित्तीय बयान पर विचार करना होगा।

संपत्ति पर फॉर्मूला वापसी निम्नलिखित अभिव्यक्ति है:

पीए = पीई / (VBnp VBkp +) सकल मुनाफे की अवधारणा / 2, जहां पीई - शुद्ध हानि या लाभ, VBnp, VBkp - शुरुआत में बैलेंस शीट और समीक्षाधीन अवधि के अंत में।

बिक्री पर लौट

बिक्री के मुनाफे का फॉर्मूला सूचक भी कंपनी के प्रभाव का अध्ययन में एक महत्वपूर्ण कारक कार्य करता है।

यह आप बिक्री की प्रत्येक इकाई के साथ लाभ कमाने की संगठन की क्या राशि का आकलन करने सकल मुनाफे की अवधारणा की अनुमति देता है।

बिक्री के मुनाफे के संकेतक हैं, जिनमें से सूत्र नीचे दिखाया गया है, हमें समझने के लिए कितना पैसा ऋण दायित्वों पर तैयार उत्पादों की लागत, करों के भुगतान और ब्याज के वित्तपोषण के बाद कंपनी रख सकते अनुमति देते हैं है। यह दृष्टिकोण बिक्री में अपने हिस्से का वजन की इजाजत दी, लाभप्रदता की रिहाई को दर्शाता है।

बिक्री पर फॉर्मूला वापसी:

आरपी = पीपी / बीपी जहां पीई - शुद्ध हानि या लाभ, बीपी - बिक्री से होने वाली आय।

प्रत्यक्ष लागत की लाभप्रदता

प्रत्यक्ष लागत के पक्ष में लाभप्रदता के विश्लेषण में अगले कदम के लिए। यह आप का आकलन करने के बदले किस तरह कंपनी है, जो इसे मालिक की कुल पूंजी लाता अनुमति देता है। ई यह आकलन और आय की राशि है कि उत्पादन और उत्पादों की बिक्री के संगठन में कंपनी द्वारा बनाए रखा है के बारे में निष्कर्ष आकर्षित करने के लिए एक अच्छा अवसर है।

लाभप्रदता, जो गणना सूत्र बाद में चर्चा की जाएगी, राजधानी डेटा का उपयोग की व्यवहार्यता प्रस्तुत करते हैं और दिखाने के संसाधनों का ज्यादा एक कंपनी के शुद्ध लाभ के लिए खर्च कैसे होगा।

सूत्र इस प्रकार है:

EBL = सपा / सी, जहां पीई - शुद्ध हानि या लाभ, सी - लागत मूल्य।

तुम भी शुद्ध लाभ, सकल लाभ की बिक्री से होने वाली आय के बजाय सूत्र में देख सकते हैं, और इतने पर। डी यह सब के लक्ष्यों पर निर्भर करता वित्तीय विश्लेषक।

कुल गतिविधि पर लौटें

समीक्षाधीन अवधि के दौरान कंपनी की लाभप्रदता का मूल्यांकन करने के लिए सबसे आसान तरीका उद्यम के मुनाफे की गणना है। सूत्र नीचे प्रस्तुत किया है। इस विधि का सार समझने के लिए, यह समझ की तुलना में आइटम का सार संख्या 2 के लिए फार्म आवश्यक है।

इस प्रणाली है, जो मुख्य लाभप्रदता संकेतक के रूप में एक बहुत ही महत्वपूर्ण तरीका है। फॉर्मूला समीक्षाधीन अवधि में माल की बिक्री से पूर्व कर लाभ और आय की राशि की तुलना में कंपनी की समग्र लाभप्रदता निर्धारित करने के लिए। यह इस तरह दिखता है:

ROD = पी एन / बी पी जहां सोमवार - लाभ (हानि), जो अपने कर देनदारियों, बीपी भुगतान करने के लिए कंपनी मिला - बिक्री से राजस्व (आय)।

खुद देनदारियों पर लौटें

आरएसी = बीपी / (VBnp VBkp +) / 2 जहां बीपी - मात्रा उत्पादन VBnp, VBkp - शुरुआत में मुद्रा संतुलन और अवधि के अंत।

कंपनी के वित्त पोषण के स्वयं के स्रोतों की लाभप्रदता अधिक पूरी तरह से सूत्र डुपोंट मई में वर्णित हैं। यह इस प्रकार है के रूप में व्यक्त किया जा सकता है:

DGC = पीपी / बीपी बीपी × / × पश्चिम बंगाल पश्चिम बंगाल / अनुसूचित जाति, जहां पीई - शुद्ध हानि या लाभ; पश्चिम बंगाल - संपत्ति की राशि; बीपी - बिक्री से राजस्व (आय); एसके - खुद देनदारियों।

क्या विचार करने के लिए

लाभप्रदता संकेतक, सूत्र जिनमें से ऊपर प्रस्तुत किए गए पहलुओं की संख्या पर विचार करने का सुझाव देते हैं।

  • विश्लेषण समय। इन प्रक्रियाओं को ध्यान में लंबी अवधि के निवेश के उपयोग से लंबे समय में प्रभाव नहीं लेते। बेहतर गतिशीलता में कारकों का आकलन।
  • मौद्रिक इकाइयों की तुलनीयता का अभाव। लाभ वर्तमान गतिविधि के परिणामों को दर्शाता है, और पूंजी (संतुलन) पिछले कुछ वर्षों में बनाई गई थी। सटीकता के लिए मूल्यांकन खाते में कंपनी की संपत्ति के बाजार मूल्य लेना चाहिए।
  • उच्च लाभप्रदता जोखिम में एक उल्लेखनीय वृद्धि के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए यह संबंधित संकेतक की संख्या (वित्तीय, गणना करने के लिए आवश्यक है परिचालन लीवर, संरचना वर्तमान व्यय की और वित्तीय स्थिरता)।

रुझान सूत्रों मूल्यांकन के कई पहलुओं के संदर्भ में प्रस्तुत किया गया है, कंपनी की वांछनीयता सुझाव देते हैं। उन्हें करने के लिए धन्यवाद प्राप्त परिणामों के मूल्य के लागत की राशि की तुलना करके, हम समझ सकते हैं लाभदायक उद्यमों या प्रशासकों की गतिविधियों का विश्लेषण किया अवधि में अप्रभावी था। इसी तरह की एक सर्वेक्षण में उद्देश्य पहलुओं की संख्या को ध्यान में रखते, विश्लेषकों काफी सटीक परिणाम हैं। गणना के आधार पर तैयार की गई निष्कर्ष प्रत्येक संगठन की हालत में सुधार करने में सक्षम हैं।

सकल मुनाफे की अवधारणा

आयकर या income tax एक प्रत्यक्ष कर है, जिसे सभी करदाताओं द्वारा सकल उनकी सकल आय या उनके द्वारा एक वित्तीय वर्ष में किए गए मुनाफे पर लगाया जाता है. आयकर को व्यवसायों के मुनाफे या राजस्व पर भी लगाया जाता है परन्तु इसे व्यवसायिक द्वारा की गई आपूर्ति पर नहीं जोड़ा जाता है. अलग अलग देशों में कर पात्रता के लिए कुछ मानदंड और नियम बनाये जाते हैं.

ज्यादातर देशों में, आयकर उनके देश के कर्मचारियों की सैलरी से पहले ही काट लिया जाता है और उसका भुगतान आयकर विभाग को कर दिया जाता है. भारत के निवासियों के साथ-साथ गैर-निवासियों द्वारा भी आयकर का भुगतान करने का प्रावधान है।

इनकम टैक्स को व्यक्ति के वेतन, किसी अन्य प्रकार के आमदनी के स्रोत, घर / संपत्ति, पूंजीगत लाभ, व्यवसाय और अन्य व्यवसायों से अर्जित आय पर भी लगाया जाता है.

Ankita Shukla

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May 1, 2020

आर्थिक संवृद्धि और आर्थिक विकास क्या है, विशेषताएं, कारक ( Economic growth and economic development in hindi upsc)

आर्थिक संवृद्धि क्या है (What is economic growth in hindi) –

अर्थव्यवस्था में आर्थिक संवृद्धि से अभिप्राय आर्थिक विकास (economic development) से है! आर्थिक संवृद्धि को ऐसी प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसमें किसी देश की वास्तविक आय और प्रति व्यक्ति आय में दीर्घ अवधि तक वृद्धि होती है! वृद्धि, वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में वृद्धि के रूप में होनी चाहिए, केवल विद्यमान वस्तुओं की बाजार कीमत में नहीं!

कुछ अर्थशास्त्रियों के अनुसार आर्थिक संवृद्धि एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी अर्थव्यवस्था का सकल घरेलू उत्पाद लगातार दीर्घकल तक बढ़ता रहता है! इस संदर्भ में सकल राष्ट्रीय उत्पाद और सकल घरेलू उत्पाद में अंतर ध्यान रखना जरूरी है! इसलिए सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि की बात करना अधिक तर्कसंगत है! राष्ट्रीय आय में अल्पकालीन, मौसमी या अस्थाई वृद्धि को आर्थिक संवृद्धि नहीं माना जाना चाहिए!

आर्थिक संवृद्धि के उदाहरण –

(1) किसी सकल मुनाफे की अवधारणा अर्थव्यवस्था में सड़क नेटवर्क में एक दशक या फिर किसी समय अंतराल में हुई वृद्धि का पता किलोमीटर या मील की लंबाई से चल सकता है!

(2) किसी अर्थव्यवस्था में एक दशक के दौरान खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि को मापा जा सकता है और टन में मापा जा सकता है!

(3) ठीक इसी तरह, किसी अर्थव्यवस्था में हुई वृद्धि का आकलन कुल उत्पादन के मूल्य से लगाया जा सकता है! किसी समय अवधि के दौरान प्रति व्यक्ति आय में मुनाफे का आकलन भी किया जा सकता है!

इस हिसाब से आर्थिक वृद्धि को एक तरह से मात्रात्मक प्रगति भी कह सकते हैं!

आर्थिक विकास क्या है (What is economic development in hindi) –

आर्थिक विकास (economic development) की धारणा आर्थिक संवृद्धि की धारणा से अधिक व्यापक है! आर्थिक विकास सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, गुणात्मक एवं परिणामात्मक सभी परिवर्तनों से संबंधित है! आर्थिक विकास तभी कहा जाएगा जब जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो!

आर्थिक विकास की माप में अनेक चर सम्मिलित किए जाते हैं, जैसे – आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक संस्थानों के स्वरूप में परिवर्तन, शिक्षा तथा साक्षरता दर, जीवन प्रत्याशा, पोषण का स्तर, स्वास्थ्य सेवाएं प्रति व्यक्ति उपभोग वस्तुएं! अत: आर्थिक विकास मानव विकास ही है! आर्थिक विकास मात्रात्मक और गुणात्मक प्रगति है!

आर्थिक विकास की विशेषताएं (economic growth ki visheshta)-

(1) आर्थिक विकास एक सतत प्रक्रिया है!

(2) आर्थिक विकास में वास्तविक राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है! यह वृद्धि निरंतर ग्रह काल तक चलती रहती है!

(3) आर्थिक विकास के फलस्वरुप जन सामान्य के जीवन स्तर तथा आर्थिक कल्याण में वृद्धि होती है!

(4) उत्पत्ति के साधनों का कुशलतापूर्वक विद्वान होता है!

आर्थिक संवृद्धि और आर्थिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक –

आर्थिक विकास और आर्थिक संवृद्धि को प्रभावित करने वाले कारक इस प्रकार हैं – पूंजी निर्माण, प्राकृतिक संसाधन, औद्योगिकरण की तीव्र वृद्धि दर, तकनीकी उन्नति, आर्थिक प्रणाली, राजनीतिक कारक, अर्थव्यवस्था में सेवा क्षेत्र की बढ़ती भूमिका,,उद्यमशीलता आदि!

(1) तकनीकी उन्नति –

आर्थिक संवृद्धि को प्रभावित करने में तकनीकी उन्नति एक महत्वपूर्ण कारक है! अच्छी तकनीक के प्रयोग से दिए गए संसाधनों की सहायता से अधिक उत्पादन करना या संसाधनों की कम मात्रा से ही पर्याप्त उत्पादन करना संभव हो पाता है! तकनीक उन्नति प्राकृतिक संसाधनों का पूर्ण प्रयोग करने की योग्यता में सुधार लाती है!

सकल मुनाफे की अवधारणा

समाचार पत्रों में आमतौर पर ऐसी सुर्खियां देखने को मिलती रहती हैं जिनमें देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) विकास दर गिरकर 4.5 फीसदी पर आने अथवा एसऐंडपी द्वारा देश की वृद्घि दर का अनुमान कम करने की बात लिखी रहती है। आम भारतीयों के दिल की धड़कनें बढ़ाने वाली ये खबरें देश की आधुनिक जीवन शैली का हिस्सा बन गई हैं। इन सब बातों को देखते हुए यही अंदाजा लगता है कि जीडीपी की उच्च दर हासिल करना किसी भी सरकार का एकसूत्री एजेंडा होना चाहिए।

जीडीपी के बारे में इतनी ढेर सारी बातों को सुनते हुए, जीडीपी की मूल अवधारणा को ही भुला बैठना कोई कठिन बात नहीं है। देश की ताकत और समृद्घि के कारक के रूप में इसका इस्तेमाल करना एकदम नई परंपरा है। इससे पहले किसी देश की ताकत का अंदाजा उसके नियंत्रण वाले भू-क्षेत्र के आधार पर लगाया जाता था। इंगलैंड जैसे देशों को समस्याओं से घिरे होने के बावजूद उनके नियंत्रण में उपनिवेश होने के कारण सम्मान से देखा जाता था। इसके बाद आए सिमोन कुजनेत्स। नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री सिमोन पिन्स्क (पहले रूस और सकल मुनाफे की अवधारणा अब बेलारूस में) में जन्मे और आज के यूक्रेन में पलने-बढऩे के बाद अंतत: अमेरिका जा बसे।

सन 1930 के दशक में कुजनेत्स ने अमेरिका के लिए एक ऐसी लेखा व्यवस्था की खोज की जो राष्टï्रीय स्तर पर सभी स्रोतों से होने वाली आय का आकलन करती थी। विश्व बैंक और अंतरराष्टï्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) द्वारा अपनाए जाने के बाद उनकी मापन व्यवस्था यानी जीडीपी को वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त हो गई। उन संस्थानों ने इस विधि को विकास परियोजनाओं की गुणवत्ता का आकलन करने के लिए अपनाया। बहरहाल, प्राय: इस बात को भुला दिया जाता है कि ऊंची जीडीपी दर कैसे हासिल की जाए। वर्ष 1928 से 1937 के बीच सोवियत संघ की जीडीपी 5.4 फीसदी की दर से विकसित हुई और वह जवाहरलाल नेहरू समेत विकासशील देशों के तमाम नेताओं की नजरों में नायक का दर्जा पा गया। सोवियत संघ ने यह विकास दर किस तरह हासिल की थी, इसकी सच्चाई बहुत बाद में लोगों के सामने आ पाई।

सोवियत संघ ने अपने किसानों पर दबाव डालकर उनको निजी खेती त्यागने पर मजबूर किया और उनको सामूहिक खेती से जोड़ा। उनके द्वारा उपजाए गए अन्न को कम दाम पर सोवियत सरकार को बेचा गया। इसके बाद सरकार ने इस अनाज को अच्छे मुनाफे के साथ शहरी आबादी को बेचा। इस मुनाफे से हासिल हुए धन को उद्योग धंधों में निवेश किया गया। कुल मिलाकर इससे ऊंची विकास दर तो हासिल हुई लेकिन अगली आधी सदी तक देश के कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन लडख़ड़ाया रहा। ऐसा वक्त आ गया कि एक समय दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा अनाज उत्पादक और निर्यातक देश अब अपनी आबादी का पेट भरने लायक अनाज तक नहीं उगा पा रहा था।

इसके बाद पूर्वी एशिया में जीडीपी विकास के 'चमत्कार का दौर आया। वर्ष 1966 से आरंभ हुए 30 साल के इस दौर में हॉन्गकॉन्ग, इंडोनेशिया, जापान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, ताइवान और थाइलैंड जैसे देशों ने 7 फीसदी की चकित करने वाली विकास दर हासिल की। विश्व बैंक ने तत्काल इसे अपनी उस सलाह का असर बताया जिसके तहत उसने इन देशों को निर्यात आधारित नीति अपनाने की सलाह दी थी। लेकिन सन 1997 में पूर्वी एशियाई संकट नमूदार हुआ और यह विकास अपने आप रुक गया। इस संकट की शुरुआत थाइलैंड में उस वक्त हुई जब वहां की मुद्रा बहत अचानक धराशायी हो गई। उसके बाद यह संकट तेजी से अन्य पूर्वी एशियाई मुल्कों में फैल गया। इन देशों की मुद्राओं का भी अवमूल्यन होने लगा और शेयर बाजार तथा अचल संपत्ति बाजार लडख़ड़ा गए। कंपनियां दिवालिया होने सकल मुनाफे की अवधारणा लगीं और 7 फीसदी की विकास दर शून्य पर आ गई। संकट को टालने के लिए आईएमएफ को दखल देना पड़ा और उसने बाजार में 40 अरब डॉलर की नकदी डाली।

जल्दी ही 'विकृत पूंजीवाद और 'भ्रष्टाचार में इस संकट की वजह तलाशी जाने लगी। अर्थशास्त्री पाल क्रुगमैन द्वारा इसकी असल वजह तलाश की गई। उन्होंने कहा कि पूर्वी एशियाई चमत्कार मूलतया विदेशी पूंजी की जबरदस्त आवक पर आधारित था (जिसे भारत में संस्थागत विदेशी निवेश कहा जाता है)। इस पूंजी को प्रचुर मात्रा में उपलब्ध स्थानीय श्रम का समर्थन हासिल था और इसने मिलकर जबरदस्त विकास दर को अंजाम दिया। वहीं दूसरी ओर प्रति व्यक्ति उत्पादन अथवा उत्पादकता में कोई वृद्घि देखने को नहीं मिल रही थी। इस उत्पादकतारहित विकास के साथ समस्या यह थी कि एक बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निवेश का माहौल बदलने और विदेशी पूंजी के पलायन के बाद विकास अपने आप रुक गया।

सच्चा सतत विकास केवल उत्पादकता में बढ़ोतरी करके ही हासिल किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो जब अर्थव्यवस्था में प्रति व्यक्ति उत्पादकता बढ़े तो ही सही अर्थों सकल मुनाफे की अवधारणा में विकास होगा। उत्पादकता में यह बढ़ोतरी नवाचार के जरिये ही लाई जा सकती है। यह नवाचार तकनीकी और संगठनात्मक होगा और इसे अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों उद्योग, सेवा और कृषि में लाना होगा।

इस समय हमारे देश में जो बहस चल रही है वह भी विदेशी पूंजी जुटाने पर आधारित है। माना जाता है कि इस पूंजी का घरेलू सकल मुनाफे की अवधारणा स्तर पर निवेश करने से देश की विकास दर में बढ़ोतरी होगी और सेंसेक्स में उछाल आएगी। जाहिर है यह सब देखकर कुजनेत्स की आत्मा व्याकुल हो रही होगी। वह जीडीपी द्वारा विकास आंकने के पैमाने के आविष्कारक थे लेकिन वह इसे किसी राष्ट्र कुशलता का आकलन करने का पैमाना बनाने के हामी नहीं थे। उनका मानना था कि जीडीपी का पैमाना विकास की गुणवत्ता और उसकी मात्रा में भेद नहीं करता। उदाहरण के लिए, जीडीपी के लक्ष्य में इजाफा करने से वन क्षेत्र में कमी आ सकती है क्योंकि बहुत संभव है कि किसी वन को काटने से जीडीपी में अधिक तेजी से विकास हो। लेकिन यह भी सच है कि उक्त वन को न काटने के पर्यावरण सकल मुनाफे की अवधारणा संबंधी ढेर सारे फायदे हों। इससे झीलों व नदियों में जल की गुणवत्ता सुधर सकती है, ऑक्सीजन पैदा हो सकती है आदि। इनमें से कोई भी लाभ जीडीपी के आकलन में नहीं आएगा। कुछ अर्थशास्त्री कहेंगे कि अमेरिका में घरों और अचल संपत्ति के लिए ऋण आसान करके जीडीपी बढ़ाने की कोशिशों ने ही वैश्विक वित्तीय संकट को जन्म दिया।

जीडीपी विकास को गति देने का इकलौता विश्वसनीय तरीका है अर्थव्यवस्था में उत्पादकता को बढ़ावा देना। जाहिर है समय आ गया है कि हम अपने समाचार पत्रों और टेलीविजन परिचर्चाओं में ऐसे सांस्थानिक बदलावों की बात करें जिनके जरिये देश के विनिर्माण, सेवा और कृषि क्षेत्र की उत्पादकता बढ़ाई जा सके। ऐसा करने से हमारी विकास दर में जरूर बढ़ोतरी होगी।

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