भारतीय शहरों में चलने लगी विदेशी मुद्रा

इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने कहा कि बिना ड्राइवर के मेट्रो रेल परिचालन की उपलब्धि से हमारा देश दुनिया के उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया है, जहाँ इस प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। उन्होंने कहा कि इस मेट्रो रेल में ऐसी ब्रेकिंग प्रणाली का उपयोग किया जा रहा है, जिसमें ब्रेक लगाने पर 50 प्रतिशत ऊर्जा वापस ग्रिड में चली जाती है। आज दिल्ली मेट्रो में 130 मेगावाट सौर ऊर्जा का उपयोग किया जा रहा है, जिसे बढ़ाकर 600 मेगावाट कर दिया जाएगा।
53वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में ‘मैकेबर ड्रीम्स’ की भारतीय शहरों में चलने लगी विदेशी मुद्रा पेशकश के साथ हॉरर फिल्मों का एक विशेष पैकेज
“डर एक सार्वभौमिक भाषा है; हम सबको डर लगता है। हम जन्म से ही डरने लगते हैं, हमें हर चीज से डर लगता हैः मृत्यु, विकृति, प्रियजनों के खो जाने। हर उस चीज से जिससे मुझे डर लगता है, आप भी उससे डरते हैं; आप जिन चीजों से डरते हैं, मैं भी उनसे डरता हूं।” अमेरिकी फिल्म निर्माता भारतीय शहरों में चलने लगी विदेशी मुद्रा जॉन कारपेंटर, जिन्हें ‘हॉरर फिल्मों का उस्ताद’ कहा जाता है, वे जब अपनी पसंदीदा फिल्म विधा की बात करते हैं, तो वे भावनात्मक रूप से तनिक भी अतिशयता से काम नहीं लेते। कहां से शुरू किया जाये? ‘ड्रैकुला’ से लेकर ‘दि एक्जॉरसिस्ट’ तक या ‘हेरेडिटरी’ से लेकर ‘द कॉन्जरिंग’ तक, सनसनी पैदा कर देने वाली इन हॉरर फिल्मों ने दुनिया भर के सिने-प्रेमियों का ध्यान खींचा है। हर देश और हर भाषा यह दावा कर सकती है कि उसके पास कम से कम दर्जन भर हॉरर फिल्में तो जरूर होंगी, जो अपने दर्शकों को रोमांच से भर देती हैं और उन्हें बेचैन कर देती हैं। हमारे भीतर के डर को कुशलता से इस्तेमाल करके, इस विधा की फिल्मों ने विश्व सिनेमा में तरह-तरह का प्रभाव डाला है और खुद के लिये स्थान बनाया है।
भयावह फिल्मी विधा की लोकप्रियता के आधार पर, 53वें भारत अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (इफ्फी) ‘मैकेबर ड्रीम्स’ की पेशकश कर रहा है। इस गुलदस्ते में नई रिलीज होने वाली हॉरर फिल्में रखी गई हैं, जो सिनेमा हॉल से निकलने के बाद भी आपको विचलित करती रहेंगी। पारलौकिक फिल्मों के इस विशेष पैकेज में निम्नलिखित फिल्में शामिल हैं:-
शिक्षक को हुआ सिक्कों से प्यार, संग्रह किए 3 हजार भारतीय शहरों में चलने लगी विदेशी मुद्रा से अधिक पुराने सिक्के
बासनी (जोधपुर).
किसी भी कार्य को करने के लिए मेहनत, लगन व जुनून की आवश्यकता होती है, लेकिन अगर बात किसी शौक को पूरा करने की हो तो कैसी भी परिस्थतियां हो इंसान कुछ भी भारतीय शहरों में चलने लगी विदेशी मुद्रा करने को तैयार हो जाता है। पुराने समय की मुद्रा का संग्रह करने का एक ऐसा ही शौक आज से लगभग दस वर्ष पूर्व विजय प्रकाश पालीवाल को लगा। इसी शौक को परवान देने की चाह में विजय ने सैकड़ों गांवों, शहरों का भ्रमण कर बहुमूल्य भारतीय मुद्रा व विदेशी मुद्रा के सिक्कों का संग्रह किया। विजय भारतीय शहरों में चलने लगी विदेशी मुद्रा का इरादा यहीं रुकने का नहीं है, उन्हें और भी बहुमूल्य मुद्राओं का संग्रह करना है। आज के अंक में विजय पालीवाल के इसी शौक के बारे में.
शिक्षक को हुआ सिक्कों से प्यार, संग्रह किए 3 हजार से अधिक पुराने सिक्के
बासनी (जोधपुर).
किसी भी कार्य को करने के लिए मेहनत, लगन व जुनून की आवश्यकता होती है, लेकिन अगर बात किसी शौक को पूरा करने की हो तो कैसी भी परिस्थतियां हो इंसान कुछ भी करने को तैयार हो जाता है। पुराने समय की मुद्रा का संग्रह करने का एक ऐसा ही शौक आज से लगभग दस वर्ष पूर्व विजय प्रकाश पालीवाल को लगा। इसी शौक को परवान देने की चाह में विजय ने सैकड़ों गांवों, शहरों का भ्रमण कर बहुमूल्य भारतीय मुद्रा व विदेशी मुद्रा के सिक्कों का संग्रह किया। विजय का इरादा यहीं रुकने का नहीं है, उन्हें और भी बहुमूल्य मुद्राओं का संग्रह करना है। आज के अंक में विजय पालीवाल के इसी शौक के बारे में.
शिक्षक को हुआ सिक्कों से प्यार, संग्रह किए 3 हजार से अधिक पुराने सिक्के
बासनी (जोधपुर).
किसी भी कार्य को करने के लिए मेहनत, लगन व जुनून की आवश्यकता होती है, लेकिन अगर बात किसी शौक को पूरा करने की हो तो कैसी भी परिस्थतियां हो इंसान कुछ भी करने को तैयार हो जाता है। पुराने समय की मुद्रा का संग्रह करने का एक ऐसा ही शौक आज से लगभग दस वर्ष पूर्व विजय प्रकाश पालीवाल को लगा। इसी शौक को परवान देने की चाह में विजय ने सैकड़ों गांवों, शहरों का भ्रमण कर बहुमूल्य भारतीय मुद्रा व विदेशी मुद्रा के सिक्कों का संग्रह किया। विजय का इरादा यहीं रुकने का नहीं है, उन्हें और भी बहुमूल्य मुद्राओं का संग्रह करना है। आज के अंक में विजय पालीवाल के इसी शौक के बारे में.
भारतीय शहरों में चलने लगी विदेशी मुद्रा
भारत की पहली ड्राइवर रहित मेट्रो ट्रेन
भा रत भी अब उन चुनिंदा देशों की सूची में शामिल हो गया है, जहाँ बिना ड्राइवर मेट्रो ट्रेन संचालित होती है। देश को बिना ड्राइवर चलने वाली मेट्रो ट्रेन की सौगात दिल्ली मेट्रो ने दी है। दिल्ली मेट्रो की मैजेंटा लाइन पर भारत की पहली ड्राइवर रहित मेट्रो ट्रेन का परिचालन सोमवार को शुरू हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये ड्राइवर रहित इस मेट्रो ट्रेन का उद्घाटन किया है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि शहरीकरण को चुनौती के रूप में देखने के बजाय इसे बेहतर बुनियादी ढांचे के निर्माण के अवसर के रूप में उपयोग किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जहाँ वर्ष 2014 में सिर्फ पाँच शहरों में मेट्रो रेल थी, वहीं आज 18 शहरों में मेट्रो ट्रेन भारतीय शहरों में चलने लगी विदेशी मुद्रा उपलब्ध है। वर्ष 2025 तक 25 से अधिक शहरों में मेट्रो ट्रेन का विस्तार करने की योजना है। वर्ष 2014 में देश में केवल 248 किलोमीटर लंबी मेट्रो लाइनें थीं। लेकिन, आज 700 किलोमीटर से अधिक मेट्रो लाइनें परिचालित हो रही हैं। इस प्रकार इसमें तीन गुना बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2025 तक, मेट्रो ट्रेन लाइनों का विस्तार 1700 किलोमीटर तक करने का प्रयास किया जा रहा है।